Raghav Chaadha On Judiciary: आप नेता और राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने न्यायपालिका को लेकर संसद में प्रस्ताव पेश किया. ये न्यायिक नियुक्तियों में केंद्र सरकार के दखल और उच्च न्यायपालिका पर दबाव बनाने के कोशिशों पर केंद्रित है. इसमें भारत सरकार से देश में न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया गया.
इस प्रस्ताव में राज्य सभा को सरकार से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए ज्ञापन प्रक्रिया को जल्द आखिरी रूप देने की मांग करने को कहा गया है
क्या है बिल में?
राघव चड्ढा ने प्रस्ताव में मांग की है कि भारत सरकार के सभी अवलोकनों और टिप्पणियों को कॉलेजियम के सिफारिश किए जाने के 30 दिनों के अंदर कॉलेजियम के सामने पेश किया जाए.
इसमें ये भी कहा गया है कि भारत सरकार को या तो कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूर करना चाहिए या 30 दिनों की पहले से दी गई अवधि के अंदर कॉलेजियम की सिफारिश को पुनर्विचार के लिए वापस कर देना चाहिए.
इस दौरान यदि भारत सरकार 30 दिनों के अंदर कार्रवाई करने में नाकाम रहती है, तो नियुक्ति का वारंट जारी करने के लिए भारत के राष्ट्रपति को 7 दिनों की अवधि के अंदर सचिव, न्याय विभाग कॉलेजियम को सिफारिश भेजेगा.
इसके अलावा प्रस्ताव में कहा गया है कि यदि भारत सरकार पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम को एक सिफारिश वापस करती है और कॉलेजियम सिफारिश को दोहराता है, तो सचिव, न्याय विभाग, 15 दिनों के अंदर न्यायाधीशों की नियुक्ति के वारंट जारी करने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश भेजेगा.
प्रस्ताव में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2016) 5 एससीसी 1 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि भारत के संविधान में 99वां संशोधन और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 भारत के संविधान की शक्तियों से परे है. मतलब ये अतिवादी है.
अदालत ने सरकार को भारत के सीजेआई के सलाह से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति के लिए मौजूदा प्रक्रिया ज्ञापन को पूरक बनाने यानी कमी पूरी करने का निर्देश दिया, हालांकि, इसकी कमी को पूरा करने के लिए अभी तक कदम नहीं उठाए गए हैं.