Raja Bhaiya News: उत्तर प्रदेश की लोकसभा की 80 सीटें हर दल के लिए बहुत ही ज्यादा मायने रखती हैं. यही वजह है कि हर पार्टी अपनी ओर से एक-एक सीट पर अपना दम लगाती है. पूर्वांचल की कुछ सीटों पर अभी वोटिंग नहीं हुई है और यहां सातवें चरण में एक जून को मतदान होने वाला है. ऐसी ही एक सीट से मिर्जापुर है, जहां कुंडा के बाहुबली विधायक और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने समाजवादी पार्टी का खेल बिगाड़ दिया है. 


केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी के कद्दावर नेता अमित शाह से बेंगलुरु में मुलाकात कर जब राजा भैया लौटे तो लगा कि वह बीजेपी को समर्थन देने वाले हैं. हालांकि, फिर उन्होंने तटस्थ रहने का ऐलान कर दिया और कहा कि वह किसी भी दल को समर्थन नहीं देंगे. फिर कुछ दिनों खबर आई कि उन्होंने अपने समर्थकों से कहा है कि वे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को प्रतापगढ़, कौशाम्बी और मिर्जापुर जैसी सीटों पर समर्थन दें, लेकिन अब कुछ और ही हो गया है. 


कैसे समाजवादी पार्टी की बढ़ गई मुसीबत?


दरअसल, मिर्जापुर में एनडीए की उम्मीदवार अनुप्रिया पटेल मैदान में हैं, जिनका मुकाबला सपा के रमेश बिंद से हैं. अनुप्रिया पटेल ने हाल ही में कहा कि राजा अब रानी के पेट से पैदा नहीं होता है, बल्कि राजा ईवीएम के बटन से पैदा होता है. राजा भैया ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि ईवीएम से जनसेवक और जनप्रतिनिधि पैदा होते हैं, जिनकी उम्र सिर्फ पांच साल होती है. उन्होंने यहां तक कह दिया कि अनुप्रिया पटेल का बयान गैरजरूरी है. 


हालांकि, क्षत्रिय और राजपूत वोटर्स में पकड़ रखने वाले राजा भैया के बयान से जो दलित-पिछड़ा वोटर पहले सपा के साथ जाने का मन बना रहा था. अब वह अनुप्रिया पटेल को वोट करने का इरादा कर रहा है. क्षत्रिय और राजपूत वोटर्स भी बीजेपी के साथ जाते हुए नजर आ रहे हैं. मिर्जापुर में 2.5 लाख पटेल, 1.95 लाख दलित, 1 लाख मौर्या-कुशवाहा-सैनी, 1.60 लाख ब्राह्मण, 1.29 लाख मुस्लिम, 1.40 लाख बिंद, 1.30 लाख वैश्य वोटर हैं. 


राजा भैया के बयान से पिछड़ा और दलित समाज जो पहले समाजवादी पार्टी को वोट करने वाला था, वो अब धीरे-धीरे अनुप्रिया पटेल की तरफ शिफ्ट हो रहा है, जिसका नुकसान सपा उम्मीदवार रमेश बिंद को होने वाला है. पटेल वोटर तो पहले से ही अनुप्रिया के साथ था, मगर अब क्षत्रिय और राजपूत वोटर्स के साथ-साथ दलित और पिछड़ा समाज भी बीजेपी समर्थित उम्मीदवार के साथ हो सकता है. इसका नुकसान सीधे तौर पर अखिलेश यादव की पार्टी को हो रहा है. 


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