वॉशिंगटनः रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने नोटबंदी और जीएसटी को देश की आर्थिक विकास दर की राह में आने वाली ऐसी दो बड़ी अड़चन बताया जिसने पिछले साल विकास की रफ्तार पर असर डाला. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सात फीसदी की मौजूदा विकास दर देश की जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त नहीं है.
रघुराम राजन ने बर्कले में शुक्रवार को कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में कहा कि नोटबंदी और जीएसटी इन दो मुद्दों से प्रभावित होने से पहले 2012 से 2016 के बीच चार साल के दौरान भारत की आर्थिक विकास काफी तेज रही.
भारत के भविष्य पर आयोजित भट्टाचार्य व्याख्यान में रघुराम राजन ने कहा, ‘नोटबंदी और जीएसटी के दो लगातार झटकों ने देश की आर्थिक वृद्धि पर गंभीर असर डाला. देश की वृद्धि दर ऐसे समय में गिरने लग गयी जब वैश्विक आर्थिक विकास दर गति पकड़ रही थी.’
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हालांकि, नोटबंदी की दूसरी सालगिरह पर आठ नवंबर 2016 के सरकार के फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि इससे प्रलय की भविष्यवाणी कर रहे लोग गलत साबित हुए. उन्होंने कहा कि पिछले दो साल के आंकड़ों से पता चलता है कि टैक्स का दायरा बढ़ा है, अर्थव्यवस्था अधिक औपचारिक हुई है और लगातार पांचवें साल भारत सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली मुख्य अर्थव्यवस्था बना हुआ है.
जेटली ने ‘नोटबंदी के प्रभाव’ नाम से डाले गये अपने फेसबुक ब्लॉग में कहा, ‘‘जब तक हमारी सरकार के पांच साल पूरे होंगे तब तक देश में टैक्सपेयर्स का दायरा लगभग दोगुना होने के करीब पहुंच चुका होगा.’’
राजन ने कहा कि 25 साल तक सात फीसदी की आर्थिक वृद्धि दर बेहद मजबूत वृद्धि है लेकिन कुछ मायनों में यह भारत के लिये वृद्धि की नयी सामान्य दर बन चुकी है जो कि पहले साढ़े तीन फीसदी हुआ करती थी. उन्होंने कहा, ‘‘सच यह है कि जिस तरह के लोग लेबर मार्केट से जुड़ रहे हैं उनके लिये सात फीसदी पर्याप्त नहीं है और हमें अधिक रोजगार सृजित करने की जरूरत है. हम इस स्तर पर संतुष्ट नहीं हो सकते हैं.’’
राजन ने वैश्विक वृद्धि के प्रति भारत के संवेदनशील होने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि भारत अब काफी खुली अर्थव्यवस्था है. यदि विश्व विकास करता है तो भारत भी वृद्धि करता है.
उन्होंने कहा, ‘‘2017 में विश्व की विकास दर के गति पकड़ने के बाद भी भारत की रफ्तार सुस्त पड़ी. इससे पता चलता है कि इन झटकों (नोटबंदी और जीएसटी) वास्तव में गहरे झटके थे. इन झटकों के कारण हमें ठिठकना पड़ा.’’
राजन ने पुन: रफ्तार पकड़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की चुनौती के बाबत ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिये तेल आयात पर देश की निर्भरता का जिक्र किया. पूर्व गवर्नर ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से घरेलू अर्थव्यवस्था के समक्ष परिस्थितियां थोड़ी मुश्किल होंगी, भले ही देश नोटबंदी और जीएसटी की रुकावटों से उबरने लगा हो.
बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के बारे में उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति को साफ सुथरी बनाना ही बेहतर होगा. राजन ने कहा, यह जरूरी है कि बुरी चीजों से निपटा जाए ताकि बैलेंस शीट साफ हो और बैंक वापस पटरी पर लौट सकें. भारत को बैंकों को साफ करने में लंबा वक्त लगा है इसका आंशिक कारण है कि प्रणाली के पास बैड लोन से निपटने के साधन नहीं थे. राजन ने कहा कि देश में एनपीए की चुनौती से निपटने के लिये बहुस्तरीय रुख अपनाने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘‘यदि हम सात फीसदी से कम दर से वृद्धि करते हैं तो निश्चित तौर पर कुछ गड़बड़ियां हैं.’’ उन्होंने कहा कि भारत को इस आधार पर कम से कम अगले 10-15 साल तक विकास दर हासिल करनी होगी. उन्होंने कहा कि भारत को श्रम बल से जुड़ रहे नये लोगों के लिये प्रति माह 10 लाख रोजगार के अवसर सृजित करने की जरूरत है.
राजन ने कहा कि देश के सामने अभी तीन दिक्कतें हैं. पहली दिक्कत उबड़-खाबड़ बुनियादी संरचना है. उन्होंने कहा कि निर्माण वह उद्योग है जो अर्थव्यवस्था को शुरुआती चरण में चलाता है. उसके बाद बुनियादी संरचना से वृद्धि का सृजन होता है. उन्होंने कहा कि दूसरा अल्पकालिक लक्ष्य बिजली क्षेत्र की स्थिति को बेहतर बनाना हो सकता है. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि सालाना उत्पन्न बिजली उनके पास पहुंचे जिन्हें इसकी जरूरत है. तीसरा मुद्दा बैंकों के कर्ज खातों को साफ सुथरा बनाना है.