दस साल बाद संसद को नेता प्रतिपक्ष मिल गया है. कांग्रेस ने मंगलवार (25 जून, 2024) को ऐलान किया कि राहुल गांधी सदन में नेता प्रतिपक्ष होंगे. पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कल शाम बताया कि प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब को चिट्ठी लिखकर बताया गया है कि पार्टी ने राहुल गांधी को लीडर ऑफ ऑपोजिशन बनाने का फैसला किया है. 


संसद में नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मिनिस्टर के बराबर सैलरी और तमाम सुविधाओं के साथ कई महत्वपूर्ण फैसले लेने का भी हक मिलता है. कई संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुखों का चयन प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष साथ मिलकर करते हैं. ऐसे में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा जब पीएम मोदी और राहुल गांधी ऐसे मुद्दों पर चर्चा करेंगे और साथ मिलकर फैसला लेंगे.


नेता प्रतिपक्ष को केंद्रीय मंत्री के बराबर सुविधाएं और सैलरी मिलती है. साथ ही सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (CBI), प्रवर्तन निदेशालय (ED), सेंट्रव विजिलेंस कमीशन (CVC) और केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) जैसी संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुखों का चयन करने वाली कमेटी में नेता प्रतिपक्ष भी शामिल होता है. कमेटी में प्रधानमंत्री भी होते हैं. तो अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी साथ में बैठकर तय करेंगे कि कौन पद पर नियुक्त होगा. ऐसे में यह बहुत दिलचस्प होगा. 


संसद में नेता प्रतिपक्ष का काम सरकार की नीतियों को लेकर सवाल खड़े करना और विपक्ष की बात रखना होता है. स्पीकर पर यह निर्भर होता है कि वह नेता प्रतिपक्ष का पद देना चाहते हैं या नहीं. संविधान में लीडर ऑफ ऑपोजिशन पोस्ट का कोई जिक्र नहीं है. इसका जिक्र सैलरी एंड अलाउंसेज ऑफ एलओपी पार्लियामेंट एक्ट 1977 में मिलता है. यह पोस्ट संविधान से नहीं आई है, पार्लियामेंट कन्वेंशन से आई है. स्पीकर के पास यह पावर होती है कि वह एलओपी की पोस्ट देना चाहते हैं या नहीं.


लीडर ऑफ ऑपोजिशन के लिए नियम ये है कि विपक्षी दल के पास देशभर की 543 सीटों में से 10 फीसदी पर जीत मिलनी चाहिए. इस हिसाब से पार्टी के सदन में 55 सांसद होने चाहिए, लेकिन 2014 में कांग्रेस को 44 और 2019 में 52 सीटों पर ही जीत मिली, जिसकी वजह से संसद में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली था. इस बार 99 सीटों पर जीत मिली इसलिए राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बनने जा रहे हैं.


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