Rahul Gandhi Bharat Jodo Yatra: राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' समाप्त हो गई है. यात्रा एक दर्जन राज्यों से होकर गुजरी और करीब 4 हजार किलोमीटर का सफर तय किया. सितंबर में यात्रा कन्याकुमारी से शुरू हुई थी, जो 29 जनवरी को श्रीनगर के लाल चौक पर राहुल गांधी के तिरंगा फहराने के साथ समाप्त हो गई. 


इस जन-संपर्क कार्यक्रम का घोषित उद्देश्य देश को एकजुट करना था. इसी के साथ, एक उद्देश्य राहुल गांधी की ब्रांडिग भी रहा. ऐसे में ये समझना बेहद जरूरी हो जाता है कि इस यात्रा से राहुल गांधी और कांग्रेस को क्या मिला? यात्रा के पीछे यह विचार था कि यह अपने दोहरे राजनीतिक लक्ष्यों के माध्यम से कांग्रेस के चुनावी भाग्य को बदल देगी, अब ऐसा होगा या नहीं यह तभी पता चलेगा जब 2023 के 9 राज्यों के चुनाव फरवरी में शुरू होंगे. बता दें कि इस साल जम्मू और कश्मीर में भी चुनाव हो सकते हैं. 


विपक्षी पार्टियों ने बनाई कांग्रेस से दूरी


अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) के पास शून्य लोकसभा सांसद हैं, लेकिन यह एकमात्र बीजेपी विरोधी पार्टी है जो राज्यों में अपने पदचिह्न का विस्तार कर रही है. केजरीवाल ने खुद को पीएम मोदी का विकल्प भी बताया है. कांग्रेस और आप दोनों के कामकाजी संबंध अच्छे नहीं हैं.
ममता, नीतीश और केसीआर के साथ भी संबंध अच्छे नहीं


इसके बाद, कांग्रेस के टीएमसी और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ भी अच्छे समीकरण नहीं हैं. ममता बनर्जी को भी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके तेलंगाना समकक्ष के. चंद्रशेखर राव भी कुछ समय पहले प्रधानमंत्री पद की रेस में बने हुए थे. 


राजद, सपा और बसपा ने भी यात्रा से दूरी बनाई


हैरानी की बात तो यह भी है कि बिहार में कांग्रेस के सहयोगी होने के बावजूद सीएम नीतीश यात्रा में शामिल नहीं हुए. यहां तक ​​कि उन्होंने केसीआर की विपक्षी एकता रैली में भी हिस्सा नहीं लिया. बिहार में कांग्रेस की एक और सहयोगी राजद भी राहुल के लॉन्ग मार्च से दूर रही. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी भारत जोड़ो यात्रा से दूरी बनाए रखी.


कांग्रेस को कर दिया साइडलाइन?


कांग्रेस ने यात्रा के समापन दिवस पर श्रीनगर में रैली का आयोजन किया और कई राजनीतिक दलों को न्योता भेजा. हालांकि, बहुत से दलों ने रैली को ज्वाइन नहीं किया. ऐसे में साफ है कि विपक्षी पार्टियों ने कहीं ना कहीं कांग्रेस को साइडलाइन कर दिया है. हालांकि, ये कहना बिल्कुल गलत होगा कि कांग्रेस के पास कोई उम्मीद नहीं है. कांग्रेस को एक बार फिर संगठन का निर्माण करना होगा और मतदाताओं के दिलों को जीतना होगा, तभी बीजेपी का मुकाबला किया जा सकता है.


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