पूर्व पीएम को सड़क पर रखना पड़ा था सामान; जानिए लुटियंस दिल्ली में कब-कब हुई बंगलों पर सियासत?
19 साल बाद राहुल गांधी को सरकारी बंगला खाली करने का नोटिस मिला है. यह पहली बार नहीं है, जब लुटियंस दिल्ली का सरकारी बंगला सुर्खियां बटोर रही है. कई नेताओं का बंगला खाली करना चर्चा में आ चुका है.
लुटियंस दिल्ली का सरकारी बंगला एक बार फिर सियासी सुर्खियों में है. वजह है- कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का 12 तुगलक लेन वाला घर. पिछले 19 साल से कांग्रेस का पावर सेंटर बन चुके इस बंगला को लोकसभा सचिवालय की हाउसिंग कमेटी ने खाली कराने का नोटिस दिया है.
राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के बाद से ही उनके बंगले खाली कराए जाने को लेकर अटकलें तेज थी. 2004 में अमेठी से सांसद चुने जाने के बाद राहुल गांधी को मनमोहन सरकार ने 12 तुगलक लेन का बंगला आवंटित किया था. 12 तुगलक लेन का बंगला टाइप-8 की श्रेणी में आता है, जिसे बहुत 12 तुगलक आवास माना जाता है.
राहुल के बंगला खाली करने के नोटिस पर सियासत तेज हो गई है. दिल्ली कांग्रेस सेवा दल के अकाउंट से ट्वीट कर लिखा गया है कि भारत के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के बाद देश के पुनर्निर्माण के लिए अपनी संपत्ति का 98% यानी 196 करोड़ रुपए का दान किए. आज उनके नाती राहुल गांधी को मोदी सरकार से बंगला खाली करने का नोटिस मिला है.
यह पहली बार नहीं है, जब लुटियंस दिल्ली का सरकारी बंगला सुर्खियां बटोर रही है. आजादी के बाद से कई नेताओं का बंगला खाली करना देश भर में चर्चा का विषय बन गया था. आइए लुटियंस दिल्ली का ऐसा ही किस्सा जानते हैं...
कब बना था लुटियंस दिल्ली का बंगला?
कोलकाता से नई दिल्ली को राजधानी बनाए जाने की घोषणा के बाद 1912 में ब्रिटिश शिल्पकार एड्विन लैंडसियर लुटियंस ने नई दिल्ली की रूपरेखा बनाई. 1922 तक नई दिल्ली पूरी तरह तैयार हो गई, जिसे आज भी लुटियंस दिल्ली के नाम से जाना जाता है.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक लुटियंस दिल्ली में करीब 1000 बंगले अभी हैं, जिसमें से 65 प्राइवेट है. बाकी के बंगले में सरकार के अधिकारी और सांसद-मंत्री रहते हैं.
इसमें 8 टाइप का सरकारी बंगला है, जबकि संसद भवन, राष्ट्रपति हाउस, प्रधानमंत्री निवास, उपराष्ट्रपति और लोकसभा स्पीकर आवास जैसे आलिशान घर भी बनाए गए हैं. लुटियंस दिल्ली को देश का पावर सेंटर माना जाता है, क्योंकि नेताओं से लेकर बड़े-बड़े अधिकारियों का निवास स्थान यहीं पर है.
पूर्व पीएम को सड़क पर रखना पड़ा था सामान
पंडित जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री का जिम्मा संभाल चुके गुलजारी लाल नंदा कांग्रेस के कद्दावर नेता थे. 1977 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, जिसके बाद उन्होंने 1978 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद नंदा दिल्ली में ही एक किराए के घर में रहने लगे.
गुलजारी लाल नंदा के कार्यकाल को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन शर्मा बताते हैं- 1993 में एक दिन मुझे जानकारी मिली कि एक नेता को मकान मालिक ने किराया नहीं देने पर घर से निकाल दिया है, जिसके बाद वे सामान के साथ सड़क पर ही डेरा जमाए हुए हैं. जानकारी मिलने के बाद दक्षिणी दिल्ली के उस कॉलोनी में मैं जब गया तो नंदा साहब सड़क पर बैठकर चाय पी रहे थे.
चूंकि पूर्व पीएम का मामला था तो मैंने उनसे बात कर अपने अखबार में एक खबर पब्लिश कर दी. अगले दिन यह खबर कई बड़े अंग्रेजी अखबारों में भी आई और सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया. आनन-फानन में नरसिम्हा राव की सरकार ने उन्हें एक आवासीय परिसर में रहने का ऑफर दिया, लेकिन गुलजारी लाल नंदा ने इनकार कर दिया.
इस घटना के बाद गुलजारी लाल नंदा दिल्ली छोड़कर अपनी बेटी के पास चले गए. 1997 में भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्माानित किया गया.
किराए के घर में रहने को मजबूर हुई थीं कृपलानी
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और लोकसभा की सांसद रहीं सुचेता कृपलानी अंतिम समय में किराए के घर में रहने को मजबूर हुई थीं. 1971 के चुनाव में सुचेता और उनके पति जेपी कृपलानी दोनों चुनाव हार गए. इसके बाद ग्रीन पार्क में दोनों एक किराए के घर में रहने लगे.
मनमोहन शर्मा बताते हैं- 1974 में एक मित्र के साथ मैं जेबी कृपलानी जी से मिलने ग्रीन पार्क स्थित उनके किराए के घर में गया. घर का किराया करीब 850 रुपए था. हालांकि, उस वक्त सांसदों के लिए पेंशन देने की शुरुआत नहीं हुई थी.
कभी कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके जेबी इंदिरा और नेहरू के धुर-विरोधी माने जाते थे. हालांकि, उसी साल 1974 में सुचेता का निधन हो गया और जेबी अकेले रहने लगे. आपातकाल लगा तो जेबी को पुलिस ने पकड़ कर जेल में रख दिया. 1982 में जेबी का भी निधन हो गया.
32 साल बाद पासवान परिवार को खाली करना पड़ा था 12 जनपथ
रामविलास पासवान को 1990 में लुटियंस दिल्ली का 12 जनपथ बंगला अलॉट किया गया था. पासवान उस वक्त केंद्रीय मंत्री थे. इसके बाद 2022 तक हर सरकार में उनके नाम पर यह बंगला अलॉट रहा. यह बंगला टाइप-8 का था, जो काफी बड़ा माना जाता है.
2009 में जब पासवान लोकसभा का चुनाव हार गए तो बंगला खाली करने की अटकलें शुरू हो गई, लेकिन लालू यादव ने अपने कोटे से उन्हें राज्यसभा भेज दिया और बंगला बच गया. हालांकि, 2020 में उनके निधन के बाद केंद्र ने बंगला खाली करने का नोटिस दे दिया. पासवान परिवार ने इस बंगला को स्मृति स्थल बनाने की मांग कर रहे थे.
हालांकि, मार्च 2022 में पासवान परिवार को यह बंगला खाली करना पड़ा. सरकार को बंगला खाली कराने के लिए अधिकारियों की एक टीम भेजनी पड़ी थी. यह बंगला अभी केंद्रीय रेल मंत्री अश्विणी वैष्णव के पास है.
शरद यादव को खाली करना पड़ा था 7 तुगलक लेन
राज्यसभा की सदस्यता जाने के बाद जून 2022 में समाजवादी नेता शरद यादव को दिल्ली स्थित 7 तुगलक लेन का बंगला खाली करना पड़ा था. बंगला खाली करते वक्त शरद यादव ने कहा था कि यह आवास देश के कई आंदोलन का केंद्र रहा है.
दरअसल, 2017 में जेडीयू ने पार्टी विरोधी गतिविधियों का हवाला देते हुए शरद यादव की सदस्यता रद्द करवा दी थी. इसके बाद हाईकोर्ट में उनका केस चलता रहा. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बंगला खाली करने का निर्देश दिया था.
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शरद यादव को 7 तुगलक लेन वाला बंगला आवंटित हुआ था. शरद यादव करीब 6 बार लोकसभा के सांसद और एक बार राज्यसभा के सांसद रहे. शरद यादव का बंगला खाली करना भी सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना रहा.
प्रियंका से भी खाली करवाया गया था 35 लोधी एस्टेट
साल 2020 में प्रियंका गांधी को लुटियंस दिल्ली के 35 लोधी एस्टेट वाला बंगला खाली करना पड़ा था. उस वक्त कांग्रेस ने सरकार पर सवाल उठाए थे. कांग्रेस का कहना था कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को सरकार ने बंगला अभी भी दे रखा है, जबकि वो गैरकानूनी है.
प्रियंका गांधी को 21 फरवरी 1997 में लोधी एस्टेट स्थित बंगला अलॉट हुआ था. उस वक्त उन्हें एसपीजी सुरक्षा मुहैया कराई गई थी. प्रियंका बंगला खाली करने के बाद एक निजी आवास में अभी रह रही हैं. राजनीतिक मीटिंग के लिए कांग्रेस के वार रूम रकाबगंज का सहारा लेती हैं.
किसे मिलता है बंगला, सरकार कैसे करती है अलॉट?
दिल्ली में सरकारी बंगला को मूलत: 8 भागों में बांटा गया है. 1 से लेकर 4 टाइप तक के बंगला को सरकारी कर्मचारियों को अलॉट किया जाता है. टाइप 5 से लेकर 7 तक सांसदों को वरिष्ठता के आधार पर मिलता है, जबकि टाइप 8 का बंगला केंद्रीय मंत्री, पूर्व पीएम, पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व उपराष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के जजों को आवंटित किया जाता है.
एसपीजी सुरक्षा प्राप्त व्यक्तियों को भी टाइप-8 का बंगला अलॉट किया जाता है. इसे अलॉट करने और देखरेख के लिए शहरी विकास मंत्रालय के अधीन एक विभाग संपदा निदेशालय (डीओई) बनाया गया है. 2021 में एक आरटीआई से खुलासा हुआ था कि लुटियंस जोन में देश के 9 मुख्यमंत्रियों को भी बंगला अलॉट किया गया है. इनमें बिहार, आंध्र और तेलंगाना के मुख्यमंत्री का नाम शामिल हैं.
वहीं आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के बंगले को लेकर जब विवाद बढ़ा तो गृह-मंत्रालय ने सुरक्षा का हवाला दिया था. मंत्रालय का कहना था सुरक्षा कारणों से उनका बंगला नहीं खाली कराया गया है. यानी विशेष मामलों में केंद्र सरकार किसी को भी बंगला आवंटित कर सकती है.
सभी सांसदों को सरकारी आवास में सालाना 4 हजार किलोलीटर पानी और 50 हजार यूनिट तक की बिजली फ्री मिलती है. अगर सांसद किसी साल बंगला में ज्यादा पानी और बिजली का इस्तेमाल कर लेते हैं, तो उसको अगले साल के कोटे में एडजस्ट किया जाता है.
बंगला खाली कराने को लेकर मोदी सरकार ने बनाया था सख्त नियम
साल 2019 में मोदी सरकार ने बंगला खाली कराने को लेकर एक सख्त नियम लागू किया. सरकार ने 2019 में सार्वजनिक परिसर बेदखली अधिनियम लागू किया था. इसके तहत नोटिस मिलने के बाद अगर 8 महीने तक कोई नेता बंगला खाली नहीं करते हैं, तो उनसे 10 लाख रुपए का जुर्माना लिया जा सकता है.
साथ ही सरकार नोटिस मिलने के 3 दिन बाद जबरदस्ती बंगला खाली करवा सकती है. हालांकि, पिछले दिनों कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद के बंगला नहीं खाली करवाने पर कांग्रेस ने इन नियमों को लेकर तंज कसा था. आजाद 2022 में ही राज्यसभा से रिटायर हो गए थे, लेकिन अब तक दिल्ली के सरकारी बंगला में रह रहे हैं.