नागरिकता संशोधन बिल का कांग्रेस करेगी विरोध, हम किसी से भी भेदभाव के खिलाफ- राहुल गांधी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुरुवार को कहा कि उनकी पार्टी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने से संबंधित विवादित नागरिकता (संशोधन) विधेयक का विरोध करेगी.
कोझिकोड (केरल): कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बृहस्पतिवार को कहा कि उनकी पार्टी नागरिकता (संशोधन) विधेयक का विरोध करेगी. पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब यह विधेयक संसद में पेश होने के लिये तैयार है. इस विधेयक का पूर्वोत्तर राज्यों में भी पुरजोर विरोध हो रहा है. केन्द्रीय मंत्रिमंडल बुधवार को विधेयक के मसौदे को मंजूरी भी दे चुका है.
राहुल गांधी ने कहा, "कांग्रेस पार्टी इस देश में किसी के साथ किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ है. लिहाजा, जो भी किसी भारतीय के साथ भेदभाव करता है, हम उसके खिलाफ हैं. यही हमारा मानना है. हमारा मानना है कि भारत सभी समुदायों, धर्मों और संस्कृतियों के लिये है."
बता दें कि कई विपक्षी दल नागरिकता (संशोधन) विधेयक का विरोध कर रहे हैं. उनका मानना है कि यह विधेयक सांप्रदायिक और विभाजनकारी है. कांग्रेस ने प्रस्तावित विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात भी कही है.
नागरिकता संशोधन विधेयक अब सोमवार को लोकसभा में होगा पेश-सूत्र
क्या है नागरिकता संशोधन बिल?
भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया. मोदी सरकार इसी कानून में संशोधन करने वाली है जिसे 'नागरिकता संशोधन बिल 2016' नाम दिया गया है. नागरिकता संशोधन बिल में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध यानी कुल 6 समुदायों के लोगों को नागरिकता दी जाएगी. इसमें मुसलमानों का जिक्र नहीं है. नागरिकता के लिए पिछले 11 सालों से भारत में रहना अनिवार्य है, लेकिन इन 6 समुदाय के लोगों को 5 साल रहने पर ही नागरिकता मिल जाएगी. इसके अलावा इन तीन देशों के 6 समुदायों के जो लोग 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए हों, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा.
विपक्ष का विरोध में है ये तर्क
विपक्षी दलों का दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. ये विधेयक 19 जुलाई 2016 को पहली बार लोकसभा में पेश किया गया था. इसके बाद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. जेपीसी रिपोर्ट में विपक्षी सदस्यों ने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है. इस बिल में संशोधन का विरोध करने वाले नेताओं का कहना है कि अगर बिल लोकसभा से पास हो गया तो ये 1985 के 'असम समझौते' को अमान्य कर देगा.
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