Rahul Gandhi Defamation Case: मोदी सरनेम मामले में दोषी ठहराए गए राहुल गांधी की क्या जाएगी संसद सदस्यता? जानें एक्सपर्ट्स की राय
Defamation Case: UPA-2 सरकार ने 2013 में जनप्रतिनिधित्व कानून के एक प्रावधान को दरकिनार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने का प्रयास किया था.
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Rahul Gandhi Defamation Case: कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत की कोर्ट की ओर से दो साल कैद की सजा सुनाए जाने की पृष्ठभूमि में कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अपीलीय कोर्ट उनकी सजा पर स्थगनादेश पारित कर देती है तो वह लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य नहीं होंगे. बता दें कि गुजरात के सूरत जिले की एक कोर्ट ने ‘मोदी’ उपनाम को लेकर की गई टिप्पणी के संबंध में 2019 में दायर आपराधिक मानहानि के मुकदमे में राहुल को दो साल कैद की सजा सुनाई है.
वरिष्ठ अधिवक्ता और संवैधानिक कानून के विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी ने लिलि थॉमस और लोक प्रहरी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के क्रमश: वर्ष 2013 और 2018 के फैसलों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि सांसदों/विधायकों के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अयोग्यता से बचने के वास्ते सजा का निलंबन और दोषी करार दिए जाने के फैसले पर स्थगनादेश आवश्यक है.
राहुल गांधी को स्थगनादेश की जरूरत होगी
चुनाव आयोग के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी और चुनावी कानून विशेषज्ञ का मानना है कि राहुल गांधी को अपनी दोष सिद्धि पर भी स्थगनादेश की आवश्यकता होगी. विशेषज्ञ अपनी पहचान सार्वजनिक करने के इच्छुक नहीं हैं. उन्होंने कहा कि सजा का निलंबन दोष सिद्धि के निलंबन से अलग है.
तो अयोग्यता स्वत: निलंबित हो जाएगी
विशेषज्ञ ने कहा, "लिलि थॉमस फैसले के अनुसार, ऐसी दोष सिद्धि जिसमें तहत दो साल या ज्यादा की सजा सुनाई जाती है, उसके तहत जनप्रतिनिधि स्वत: अयोग्य हो जाएगा. बाद में लोक प्रहरी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर अपील करने पर दोष सिद्धि निलंबित हो जाती है, तो अयोग्यता भी स्वत: निलंबित हो जाएगी," उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता को ऊपरी अदालत से दोष सिद्धि पर भी स्थगनादेश लेना होगा.
'राहुल गांधी अपील करने के लिए स्वतंत्र हैं'
लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ पी. डी. टी. आचारी ने कहा कि सजा का ऐलान होने के साथ ही अयोग्यता प्रभावी हो जाती है. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी अपील करने के लिए स्वतंत्र हैं और अगर अपीलीय अदालत दोष सिद्धि और सजा पर रोक लगा देती है, तो अयोग्यता भी निलंबित हो जाएगी.
अयोग्यता की अवधि छह साल
गौरतलब है कि सजा पूरी होने या सजा काटने के बाद अयोग्यता की अवधि छह साल की होती है. आचारी ने कहा, "(अगर वह अयोग्य घोषित कर दिए गए तो) अयोग्यता आठ साल की अवधि के लिए होगी." उन्होंने कहा कि अयोग्य घोषित किया गया व्यक्ति न तो चुनाव लड़ सकता है और न ही उस समयावधि में मतदान कर सकता है.
'अयोग्यता प्रभावी नहीं होगी'
आचारी का विचार है कि अयोग्यता अकेले दोष सिद्धि से नहीं, बल्कि सजा के कारण भी होती है. उन्होंने कहा, "इसलिए, अगर निचली कोर्ट द्वारा ही सजा को निलंबित कर दिया जाता है, तो इसका अर्थ है कि उनकी सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. अयोग्यता प्रभावी नहीं होगी."
लोक प्रहरी मामले में सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2018 में कहा था कि अपीलीय कोर्ट द्वारा अगर सांसद की दोष सिद्धि निलंबित कर दी जाती है, तो अयोग्यता ‘अपुष्ट’ मानी जाएगी. इस पीठ में भारत के वर्तमान प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ भी थे.
'यह समर्थन योग्य नहीं है कि...'
2018 के फैसले के मुताबिक, "यह समर्थन योग्य नहीं है कि दोष सिद्धि के कारण हुई अयोग्यता अपीलीय कोर्ट द्वारा दोष सिद्धि पर रोक लगाए जाने के बाद भी जारी रहेगी. दोष सिद्धि पर रोक लगाने की अपीलीय कोर्ट को प्राप्त शक्ति सुनिश्चित करती है कि अपुष्ट या हल्के (जो गंभीर नहीं हैं) आधार पर हुई दोष सिद्धि कोई गंभीर दुराग्रह पैदा ना करे. लिलि थॉमस फैसले में जिस प्रकार से स्पष्ट किया गया है, दोष सिद्धि पर स्थगन व्यक्ति को जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 8 के उप-प्रावधान 1, 2 और 3 के प्रावधानों के तहत अयोग्यता के परिणाम भुगतने से राहत देता है."
गौरतलब है कि 2013 के लिलि थॉमस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 8(4) को खारिज कर दिया था, जो दोषी सांसद/विधायक को इस आधार पर सत्ता में बने रहने का अधिकार देता था कि अपील तीन महीने के भीतर दाखिल कर दी गई है.
राहुल गांधी ने ही अध्यादेश का विरोध किया था
कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने 2013 में जनप्रतिनिधित्व कानून के एक प्रावधान को दरकिनार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने का प्रयास किया था लेकिन उस दौरान राहुल गांधी ने ही संवाददाता सम्मेलन में इस अध्यादेश का विरोध किया था और विरोध स्वरूप उसकी प्रति फाड़ दी थी.
जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान के मुताबिक, दो साल या उससे ज्यादा की सजा पाने वाला व्यक्ति ‘‘दोष सिद्धि की तिथि’’ से अयोग्य हो जाता है और सजा पूरी होने के छह साल बाद तक अयोग्य रहता है. जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान आठ में उन अपराधों का जिक्र है, जिनके तहत दोष सिद्धि पर सांसद/विधायक अयोग्य हो जाएंगे.
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