Rahul Gandhi Bungalow: लगातार चार बार के सांसद रहे राहुल गांधी अब पूर्व सांसद हो गए हैं. लिहाजा उन्हें सांसद के तौर पर मिला बंगला खाली करना है. वो इसके लिए राजी भी हो गए हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि अब राहुल रहेंगे कहां, क्योंकि उनके पास अपना कोई घर नहीं है.


यहां हम इस सवाल का ही जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे. इसके साथ ही ये भी बताएंगे कि 1977 में जब इंदिरा गांधी लोकसभा का चुनाव हार गई थीं तो उन्हें भी बंगला खाली करना पड़ा था. तब उनके पास भी कोई घर नहीं था तो वो कहां रह रहीं थीं.


'मेरे पास खुशहाल यादें हैं'


12 तुगलक लेन एक सरकारी बंगले का पता है. इसमें राहुल गांधी पिछले करीब 19 साल से रह रहे हैं. जब साल 2004 में राहुल गांधी अमेठी से पहली बार सांसद बने थे तो बतौर सांसद उन्हें ये बंगला अलॉट हुआ था. तब से राहुल गांधी का यही स्थाई घर रहा है, क्योंकि तब से ही वो लगातार सांसद बनते आए हैं.


अब मानहानि केस में सजा होने के बाद राहुल गांधी की सांसदी चली गई है. अब वो सांसद नहीं है. इस वजह से 12 तुगलक लेन का बंगला भी उनके पास नहीं रहेगा. बीजेपी सांसद सीआर पाटिल की अगुवाई वाली लोकसभा आवास समिति ने उन्हें खाली करने का नोटिस भेज दिया है. उन्हें 22 अप्रैल तक बंगला खाली करना होगा. वो इसके लिए तैयार भी हैं.


उन्होंने लोकसभा के डिप्टी सेक्रेटरी मोहित रंजन के नाम एक चिट्ठी लिखी है. इसमें उन्होंने 12 तुगलक लेन पर उनके आवास वापस लिए जाने को लेकर 27 मार्च, 2023 को लिखी चिट्ठी के लिए धन्यवाद लिखा है. इसमें राहुल ने ये भी लिखा है कि पिछले चार बार से लोकसभा सांसद के तौर पर जनता का दायित्व पूरा करते हुए यहां बिताए वक्त की मेरे पास खुशहाल यादें हैं. अपने अधिकारों के प्रति बिना किसी पूर्वाग्रह के मैं आपकी चिट्ठी में लिखी बातों का पालन करूंगा.


ये सवाल आसान और पेचीदा भी है
जाहिर है कि राहुल गांधी बंगला खाली कर रहे हैं. अब वो रहेंगे कहां, तो इसका जवाब आसान भी हो सकता है और पेचीदा भी. आसान सा जवाब तो ये है कि राहुल गांधी 12 तुगलक लेन बंगला खाली करने के बाद 10 जनपथ में रह सकते हैं. ये उनकी मां और रायबरेली से सांसद सोनिया गांधी का सरकारी आवास है.


राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के घर भी रह सकते हैं. उनके पास सरकारी तो नहीं, लेकिन उनका अपना घर है. बाकी देश में फिलहाल कांग्रेस के 51 लोकसभा सांसद हैं और 31 राज्यसभा सांसद हैं. ऐसे में वो इनमें से किसी के घर भी रह सकते हैं.


दादी को भी खाली करना पड़ा था बंगला


इतिहास के थोड़े पन्ने पलटकर देखें तो राहुल के साथ जो हुआ है, वो कभी इंदिरा गांधी के साथ भी हुआ था. उनके पोते तो सिर्फ चार बार के सांसद रहे हैं और संसद सदस्यता जाने पर उन्हें बंगला खाली करना पड़ रहा है. दादी इंदिरा तो दो-दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी थीं. इसके बाद भी तब लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्हें बंगला खाली करना पड़ा था.


ये इमरजेंसी के बाद देश में लोकसभा के चुनाव का दौर था. इंदिरा गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ा था. उन्हें राजनारायण के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. तब सरकार जनता पार्टी की बनी थी और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने थे. उस वक्त इंदिरा गांधी 1 सफदरजंग रोड वाले बंगले में रहती थीं. वो वहां तब से रह रहीं थी, जब वो लाल बहादुर शास्त्री की कैबिनेट में सूचना और प्रसारण मंत्री बनीं थीं.


कैबिनेट मंत्री की हैसियत से उन्हें वो बंगला मिला था. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी इंदिरा ने उसी बंगले में रहना चुना, क्योंकि तब- तक वो बंगला और उसका पता देश की सत्ता का प्रतीक बन चुका था. हालांकि प्रधानमंत्री की हैसियत से उन्हें 11 अकबर रोड का भी बंगला मिला था, ताकि वो वहां पर अपना दफ्तर बना सकें. लोकसभा चुनाव हारने और मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनसे वो सरकारी मकान छीनने की तैयारी थी.


जब इंदिरा थी परेशान


पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर अपनी किताब "जीवन जैसा जिया" में लिखते हैं, ''मैं इंदिरा गांधी से मिला. वो बेहद परेशान थीं. उनको अपने परिवार की चिंता थी. कहने लगीं कि बहुत परेशानी है. लोग आकर बताते हैं कि संजय गांधी को जलील किया जाएगा. दिल्ली में घुमाया जाएगा. मुझे मकान नहीं मिलेगा. हमारी सुरक्षा खत्म कर दी जाएगी.''


चंद्रशेखर लिखते हैं कि उन्होंने इंदिरा गांधी को आश्वासन दिया कि ऐसा कुछ नहीं होगा और फिर वो प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के पास पहुंच गए. उन्होंने पीएम से पूछा कि क्या आप उनको मकान भी नहीं देंगे. तो मोरारजी भाई ने कहा कि नहीं देंगे, नियम में नहीं आता है. तो मैंने उन्हें बताया कि जाकिर हुसैन, लाल बहादुर शास्त्री और ललित नारायण मिश्र आदि के परिवार को मकान मिला हुआ है.


मोरारजी भाई देसाई ने कहा कि उनका भी कैंसिल करवा दूंगा. इस पर चंद्रशेखर ने कहा, "जो महिला इतने लंबे वक्त तक देश की प्रधानमंत्री रही, उनको रहने के लिए आप मकान तक नहीं देंगे." इस मसले पर मोरारजी देसाई और चंद्रशेखर के बीच लंबी बहस हुई. पीएम ने आखिर में चंद्रशेखर से कहा कि आप कहते हैं तो मैं इंदिरा गांधी को एक मकान दे दूंगा.


 इंदिरा गांधी के पास नहीं था खुद का घर


इंदिरा गांधी के पास अपना कोई मकान नहीं था. तब के इलाहाबाद और अब के प्रयागराज की पैतृक संपत्ति आनंद भवन को 1970 में ही इंदिरा गांधी ने पार्टी को दे दिया था. उनके पति फिरोज गांधी का दिल्ली के छतरपुर में एक फॉर्म हाउस था, जो उस वक्त बन रहा था.


राजीव गांधी उसे बनवाने में लगे हुए थे. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह को लगता था कि इंदिरा गांधी ने उस प्लॉट के नीचे करोड़ों रुपये और सोने-गहने दबा रखे हैं. इसे ही राजीव तब बनवा रहे थे. इस वजह से उसकी खुदाई करवा दी गई.


सागरिका घोष ने अपनी किताब, "इंदिरा : इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर" में इस बात का विस्तार से जिक्र किया है कि कैसे महरौली वाले प्लॉट में मेटल डिटेक्टर लगाकर सोना-चांदी की तलाश की जा रही थी, लेकिन मिला कुछ भी नहीं. वहीं इंदिरा गांधी को 1 सफदरजंग रोड वाला बंगला भी खाली करना पड़ा.


पीएम मोरारजी देसाई ने निभाया वादा


जैसा कि मोरारजी देसाई ने चंद्रशेखर से वादा किया था कि वो इंदिरा गांधी को एक मकान दे देंगे. इसके मुताबिक, इंदिरा गांधी को तब के 12 विलिंगडन क्रिसेंट और अब के मदर टेरेसा मार्ग पर एक बंगला आवंटित किया गया. ये वो बंगला था, जिसे इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए राजनयिक मोहम्मद यूनुस को दिया गया था. वो तब पीएम इंदिरा के पर्सनल इनवॉय यानी कि व्यक्तिगत प्रतिनिधि हुआ करते थे.


वो अपने दोनों बेटों राजीव और संजय के साथ ही अपनी दोनों बहुओं सोनिया और मेनका के साथ इसी बंगले में शिफ्ट हुईं, लेकिन ये दौर लंबा नहीं चला. 1980 के चुनाव में जब वो दोबारा सत्ता में लौटीं तो उन्हें फिर से वही 1 सफदरजंग रोड वाला पुराना बंगला मिला. उनकी हत्या के बाद उस बंगले को इंदिरा गांधी के स्मारक के रूप में तब्दील कर दिया गया. 


ये भी पढ़ें: सरकारी बंगला खाली करने के नोटिस पर राहुल गांधी का जवाब- आदेश की तामील करेंगे