नई दिल्लीः राहुल गांधी ने पिछले ही हफ़्ते संगठन में महिलाओं को बराबरी का हक़ देने का वादा किया था. दिल्ली में महिला अधिकार सम्मेलन में उन्होंने कहा था “महिलाओं की पचास प्रतिशत आबादी है. उनको इस संगठन में भी हर लेवल पर उतनी जगह मिलनी चाहिए”. कांग्रेस अध्यक्ष ने जब ये बात कही तो पंडाल में मौजूद महिलाओं ने ख़ूब तालियां बजाई. लेकिन राहुल गांधी के वादे और हक़ीक़त की सच्चाई क्या है ? इसके लिए किसी ख़ास जांच पड़ताल की ज़रूरत नहीं है.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संविधान के आठवें पन्ने पर लिखा है. पार्टी में हर तरह की कमेटी में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें रिज़र्व होंगी. राहुल गांधी चाहते हैं कि संगठन में पचास फ़ीसदी पदों पर महिला नेता हों. लेकिन काश ऐसा होता. हर बार चुनावी मौसम में ऐसे वादे किये जाते हैं. मंचों से बड़े बड़े नेता महिलाओं की तक़दीर और तस्वीर बदलने के इरादे जताते हैं. लेकिन कथनी और करनी में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है.
कांग्रेस में ग़ुलाम नबी आज़ाद, अशोक गहलोत, सीपी जोशी, हरीश रावत और मल्लिकार्जुन खड़गे समेत 11 महासचिव हैं. लेकिन इस लिस्ट में इकलौती महिला महासचिव अंबिका सोनी हैं. संविधान के हिसाब से तो कम से कम तीन महिला नेताओं को ये ज़िम्मेदारी मिलनी चाहिए थी. राहुल गांधी के फ़ार्मूले पर तो 5 महिलाओं के महासचिव बनाना चाहिए था. लेकिन 11 में सिर्फ़ 1 महासचिव महिला हैं. कांग्रेस के एक राज्य सभा सांसद ने कहा कि विवाद न हो, इसीलिए टीम में महिला को एक जगह मिल गई.
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिवों की बात करें तो प्रणव झा, प्रकाश जोशी, के एल शर्मा, हरीश चौधरी, नसीब सिंह और जेडी स्लम समेत 58 सचिव हैं. लेकिन इनमें महिलाओं की संख्या बस 7 हैं. प्रिया दत्त, रंजीत रंजन, विजयलक्ष्मी, वर्षा गायकवाड, सोनल पटेल, प्रभा किशोर और यशोमती चंद्र ठाकुर महिला सचिव हैं. फ़िल्म अभिनेता संजय दत्त की बहन प्रिया पूर्व सांसद हैं. जबकि बिहार के बाहुबली नेता पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन बिहार से लोकसभा की एमपी हैं. कांग्रेस के संविधान के मुताबिक़ तो पार्टी में कम से कम 17 महिला सचिव की जगह बनती है. राहुल गांधी के 50 प्रतिशत के लक्ष्य के हिसाब से 29 महिला नेताओं को सचिव पद की ज़िम्मेदारी दी जा सकती थी.
प्रदेश प्रभारियों को देखें तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 13 नेताओं को अब तक इस पद पर तैनात किया है. उनके क़रीबी नेताओं रणदीप सिंह सुरजेवाला, गौरव गोगोई, जितेन्द्र सिंह, पी एल पुनिया और राजीव साटव को अलग अलग राज्यों का प्रभारी बनाया गया है. लेकिन इस टीम में सिर्फ़ दो महिलाओं को जगह मिल पाई है. आशा कुमारी को पंजाब - चंडीगढ़ और रजनी पटेल को हिमाचल प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है. पार्टी के संविधान से तो चार महिला नेताओं को प्रदेश प्रभारी बनाना चाहिए था.
सीडब्लूसी यानी कांग्रेस वर्किंग कमेटी पार्टी की सबसे बड़ी संस्था होती है. पार्टी से जुड़े सभी बड़े फ़ैसले सीडब्लूसी की मीटिंग में ही होते हैं. इसका मेंबर बनना कांग्रेस के हर नेता के लिए एक सपना होता है. कांग्रेस वर्किंग कमेटी में 22 सदस्य हैं. राहुल गांधी इसके अध्यक्ष हैं. सोनिया गांधी, अंबिका सोनी और कुमारी शैलजा कमेटी के मेंबर हैं. वर्किंग कमेटी के 22 स्थायी सदस्यों में से सिर्फ़ 3 महिला हैं. पार्टी के संविधान से तो 7 महिला नेताओं को स्थायी सदस्य बनाना चाहिए था.
राजनीतिक मेला और मंचों पर महिलाओं को बराबरी का हक़ देने के ख़ूब वादे होते हैं. लेकिन जब उनके लिए कुछ करने की बारी आती है. तो फिर कई बहाने और तर्क गढ़ लिए जाते हैं. हर पार्टी और उसके नेता इस टेस्ट में अब तक फ़ेल ही रहे हैं.