नई दिल्ली: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज एक बार फिर चीन सीमा पर चल रहे विवाद को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा प्रहार किया है. इसके साथ ही कांग्रेस ने चीन की पीएलए सेना की तैनाती को लेकर एक ग्राफिक-मैप भी जारी किया.‌ खास बात ये है कि ये मैप ओपन-सोर्स प्रोवाइडर, 'डि-एटैस' ने 6 जुलाई को अपने ट्वीटर एकाउंट पर पोस्ट किया था.


ग्राफिक्स के जरिए इस मैप में दिखाया गया है कि पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी पर कहां-कहां चीन की पीएलए सेना के बड़े कैंप हैं और कहां-कहां से उसकी सप्लाई-लाइन आ रही है.


आपको बता दें कि पूर्वी लद्दाख में एलएसी के करीब चीन की पीएलए सेना के छह बड़े कैंप हैं. या यू कहें कि इन छह जगह पर हेवी बिल्ट-अप है. इनमें गलवान घाटी, डेपसांग प्लेन, हॉट स्प्रिंग, फिंगर एरिया के ठीक पीछे सिरिजैप और खुरनाक फोर्ट, और डेमोचक शामिल हैं.



इन छह जगहों पर चीनी सेना ने बड़ी तादाद में सैनिक, टैंक, तोप, हेवी-मशीनरी का जमावड़ा कर रखा है. एक अनुमान के मुताबिक, चीन के करीब 30-40 हजार सैनिक इस वक्त एलएसी के 30-40 किलोमीटर के दायरे में तैनात हैं. सैटेलाइट इमेज से चीनी सेना की तैनाती के बारे में जानकारी मिल रही है.


लेकिन आपको बता दें कि भारतीय सेना ने भी एलएसी पर मिरर-डिप्लोयमेंट कर रखी है. यानि जितनी संख्या चीनी सैनिकों की है उतनी है भारतीय सैनिकों की है. लेह स्थित 14वीं कोर के अंतर्गत कारू में पूरी एक डिवीजन (3 डिव) स्थायी तौर से पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी की सुरक्षा में तैनात रहती है. एक डिवीजन में करीब 10 हजार सैनिक होते हैं. इस डिवीजन में इंफेंट्री सैनिकों के साथ साथ पूरी एक आर्मर्ड यानि टैंकों की ब्रिगेड और आर्टेलेरी यानि तोपखाना भी है जो एलएसी की सुरक्षा में 12 महीने तैनात रहता है. सुरक्षा कारणों से हम आपको इन टैंक और तोपों की तैनाती कहां कहां है नहीं बता सकते हैं.



इसके साथ ही भारतीय सेना ने अपनी एक स्ट्राइक कोर की एक पूरी डिवीजन को भी लद्दाख में तैनात किया है जो उत्तरी भारत के मैदानी-क्षेत्रों से यहां भेजी गई है. जानकारी के मुताबिक, इसके अलावा एक और डिवीजन को लद्दाख में चीन से तनाव के शुरूआत में ही तैनात कर दिया गया था.


आपको यहां पर ये भी बता दें कि भारतीय सेना ने पहले से ही राशन, तेल और खाने पीने का सामान स्टॉक करना शुरू कर दिया है. क्योंकि भारत को पूरा अंदेशा है कि चीन से एलएसी पर विवाद अगले तीन-चार महीने और खिंच सकता है और सेना इसके लिए पूरी तरह तैयार है. क्योंकि फिंगर एरिया,गलवान और डेपसांग प्लेन के लिए भारत को मुख्य तौर से चांगला-पास पर निर्भर रहना पड़ता है, जो दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा दर्रा है (साढ़े सत्रह हजार फीट ऊंचाई) जहां से सड़क गुजरती है. यहां बर्फ और एवलांच का खतरा भी रहता है इसलिए सेना ने लंबे-तनाव के लिए अपनी तैयारी पूरी कर रखी है.



आपको यहां पर ये भी बता दें कि भारत और चीन के कोर कमांडर स्तर की जो डिसइंगेजमेंट बातचीत चल रही है उसमें गलवान घाटी, गोगरा और हॉट-स्प्रिंग में तो चीनी सेना पीछे हट गई है, लेकिन फिंगर एरिया और डेपसांग प्लेन में अभी भी चीनी सेना का बड़ा जमावड़ा है‌. फिंगर एरिया में चीनी सेना ने अपना कैंप फिंगर 4 से फिंगर 5 पर तो कर लिया है लेकिन उसके कुछ सैनिक अभी भी फिंगर4 की रिज-लाइन पर मौजूद हैं. इसको लेकर भारतीय सेना कड़ी आपत्ति जता चुकी है.


यही वजह है कि 17 जुलाई को लद्दाख दौरे के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा था कि चीन से चल रही बातचीत कितनी सफल होगी उसकी "कोई गारंटी नहीं है."


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