Modi Surname Defamation Case: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 'मोदी सरनेम' वाले आपराधिक मानहानि मामले में गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उन्होंने शनिवार (15 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. गुजरात हाई कोर्ट ने 7 जुलाई को मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था. इस मामले की वजह से ही राहुल की संसद सदस्यता चली गई थी. 


गुजरात हाई कोर्ट की ओर से दोषसिद्धि पर रोक से इनकार किए जाने के फैसले को चुनौती देते हुए राहुल गांधी ने शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका दायर की है. राहुल गांधी ने शीर्ष अदालत में अपनी याचिका में किन आधार पर राहत मांगी है, आइये जानते हैं.


'मोदी' एक अपरिभाषित समूह है'


लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिका में कहा गया है कि 'मोदी' एक ऐसा अपरिभाषित समूह है जिसका कोई आकार नहीं है. इसके करीब 13 करोड़ लोग देश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं और वे अलग-अलग समुदायों से ताल्लुक रखते हैं. वहीं, भारतीय दंड संहिता की धारा 499/500 के तहत मानहानि का अपराध सिर्फ एक परिभाषित समूह के संबंध में माना जाता है. इसमें कहा गया है कि आईपीसी की धारा 499 के तहत 'मोदी' शब्द लोगों के संघ या संग्रह की किसी भी कैटेगरी में नहीं आता है.


'स्पेसिफाइड लोगों के संबंध में था बयान'


याचिका में कहा गया है कि राहुल गांधी का बयान शिकायतकर्ता के खिलाफ नहीं था. इसमें कहा गया है कि राहुल गांधी ने ललित मोदी और नीरव मोदी का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की थी कि सभी चोरों का सरनेम एक जैसा क्यों होता है? इसमें कहा गया है कि टिप्पणी साफ तौर पर स्पेसिफाइड व्यक्तियों के संबंध में थी, इसलिए उससे शिकायतकर्ता पूर्णेश ईश्वरभाई मोदी को बदनाम नहीं किया जा सकता है, टिप्पणी को विशिष्ट व्यक्तियों के संदर्भ में एक विशिष्ट संदर्भ में संबोधित किया गया था.


'मोढ़ वणिक समाज से है शिकायतकर्ता'


याचिका में कहा गया है कि शिकायतकर्ता ने यह नहीं दिखाया है कि वह कैसे प्रभावित हुआ है. शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया है कि वह मोढ़ वणिक समाज से आता है. यह शब्द मोदी के साथ इंटरचेंज नहीं होता है और मोदी सरनेम विभिन्न जातियों में मौजूद है.


'शिकायतकर्ता को बदनाम करने का कोई इरादा नहीं था'


याचिका में कहा गया है कि किसी को बदनाम करने का कोई इरादा नहीं है. टिप्पणी 2019 के लोकसभा अभियान के दौरान एक राजनीतिक भाषण का हिस्सा थी और शिकायतकर्ता को बदनाम करने का कोई इरादा नहीं था. इसलिए अपराध के मानवीय कारण का अभाव है.


'यह कदम लोकतांत्रिक मुक्त भाषण के लिए हानिकारक'


याचिका में कहा गया है कि एक लोकतांत्रिक राजनीतिक गतिविधि के दौरान एक राजनीतिक भाषण में आर्थिक अपराधियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना को नैतिक कदाचार का कृत्य माना गया, जिसके लिए कठोरतम सजा की जरूरत बताई गई. राजनीतिक अभियान के बीच इस तरह का कदम लोकतांत्रिक मुक्त भाषण के लिए गंभीर रूप से हानिकारक है. यह किसी भी प्रकार के राजनीतिक संवाद या बहस को खत्म करने वाली एक विनाशकारी मिसाल कायम करेगा.


'नैतिक कदाचार शामिल नहीं'


याचिका में कहा गया है कि अपराध में नैतिक कदाचार शामिल नहीं है. नैतिक कदाचार शब्द ऐसे अपराध पर लागू नहीं हो सकता है जहां विधायिका ने अधिकतम केवल 2 साल की सजा का प्रावधान उचित समझा. यह अपराध जमानती और गैर-संज्ञेय है, इसलिए इसे जघन्य नहीं माना जा सकता है.


'हाई कोर्ट ने बेसिक क्राइटेरिया की अनदेखी की'


याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने के बेसिक क्राइटेरिया की अनदेखी की है. दो बुनियादी सिद्धांतों के आधार पर दोषसिद्धि का निलंबन हो सकता था. पहला कि इसमें ऐसा कोई गंभीर अपराध शामिल नहीं है जिसके लिए मृत्युदंड, आजीवन कारावास या दस साल से कम अवधि के कारावास की सजा मिलती हो, दूसरा कि मामले को नैतिक कदाचार के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए. मामले में याचिकाकर्ता की ये दोनों शर्तें पूरी होती हैं. फिर भी हाई कोर्ट ने मामले को नैतिक कदाचार से जुड़ा मानकर दोषसिद्धि को निलंबित नहीं करने का फैसला दिया. 


'...लोकतंत्र की नींव को पूरी तरह से नष्ट कर देगा'


याचिका में कहा गया कि मामले में हाई कोर्ट का फैसला अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है. इसमें कहा गया कि अगर इस विवादित फैसले पर रोक नहीं लगी तो यह स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र बयान का गला घोंटेगा. अगर राजनीतिक व्यंग्य को आधार माना जाएगा तो कोई भी सरकार की आलोचना करने वाला कोई भी राजनीतिक भाषण नैतिक कदाचार का काम बन जाएगा. यह लोकतंत्र की नींव को पूरी तरह से नष्ट कर देगा.


यह भी पढ़ें- न सपा, न जेडीयू, न आरजेडी, जानिए MLA के आधार पर कौन सी हैं देश की 5 बड़ी पार्टियां