नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार को मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात करेंगे. सूत्रों के मुताबिक बुधवार को दोपहर बाद होने वाली इस मुलाकात में करीब दर्जन भर मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल होंगे. सूत्रों के मुताबिक इनमें प्रमुख रूप से प्रोफेसर जोया हसन, योजना आयोग की पूर्व सदस्य सईदा हमीद, सच्चर कमिटी के पूर्व सदस्य महमूद जफर जैसे नाम शामिल हैं. सूत्रों ने बताया कि इस दौरान मौजूदा राजनीतिक हालात खास तौर पर 'मॉब लिंचिंग' यानी भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा, अल्पसंख्यकों से जुड़े मामले, धर्मनिरपेक्षता आदि विषयों पर चर्चा हो सकती है.


इस मुलाकात को 2019 के आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों से जोड़ कर देखा जा रहा है. अहम बात ये है कि इसमें धर्मगुरुओं, मौलानाओं को आमंत्रित नहीं किया गया है. सूत्रों ने बताया कि आने वाले दिनों में मुस्लिम समाज के कुछ और प्रगतिशील बुद्धिजीवियों जैसे जावेद अख्तर, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से राहुल गांधी मिल सकते हैं. यानी मुस्लिम समाज के उदारवादी, विद्वान तबके के जरिए राहुल मुस्लिम समाज में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं.


2014 में हुई कांग्रेस की हार को मुस्लिम तुष्टिकरण से जोड़ कर देखा गया था. ऐसे में ये साफ नजर आ रहा है कि कांग्रेस अपनी इस छवि से छुटकारा चाहती है. पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में राहुल ने जमकर मंदिरों का दर्शन किया. इसे सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति के तौर पर देखा गया. लेकिन कांग्रेस को लगता है कि देश में मुस्लिम समाज को सन्देश देने की भी जरूरत है क्योंकि पिछले कुछ सालों में मुस्लिमों ने बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस की बजाय दूसरे विकल्पों के रुख किया है. ऐसे में राहुल मुस्लिम बुद्धिजीवियों से संवाद कर जहां एक तरफ मुस्लिम समाज को संदेश देना चाहते हैं वहीं इस मुलाकात से मौलानाओं को दूर रख कर राहुल कोशिश कर रहे हैं कि विरोधी यानी बीजेपी को ध्रुवीकरण का मौका ना मिले.


इस मुलाकात के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन नदीम जावेद ने कहा कि "अगर राहुल गांधी मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों से मिल रहे हैं तो ये लगातार चलने वाली प्रक्रिया का हिस्सा है." इसमें धर्मगुरुओं को ना बुलाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसकी उन्हें जानकारी नहीं है लेकिन ये कहना गलत होगा कि धर्मगुरु कट्टरपंथी होते हैं. उन्होंने कहा कि "आजादी की लड़ाई में गांधी, नेहरू के साथ मौलाना आजाद खड़े थे. धर्म का जानकार भी प्रगतिशील हो सकता है. पार्टी अलग अलग समुदाय से संवाद करती रहती है. सिविल सोसाइटी के सदस्यों से मुलाकात इसी प्रक्रिया का हिस्सा है. आज के माहौल में मुख्य मुद्दा संविधान बचाने का है."


हाल में ही राहुल ने दलित समाज के नुमाइंदों से भी मुलाकात की थी. सूत्रों की माने तो राहुल गांधी की ऐसी मुलाकातों के दौरान आने वाली राय को कांग्रेस अपने घोषणापत्र में भी शामिल कर सकती है. बहरहाल ये देखने वाली बात होगी कि अलग अलग वर्गों के बीच अपनी पैठ बनाने में राहुल कितने कामयाब हो पाते हैं?