नई दिल्ली: राफेल लड़ाकू विमान खरीद सौदे पर जारी सियासी जंग के बीच इस मुद्दे को लेकर संसद में हुई बहस भी किसी घमासान से कम नहीं रही. करीब तीन दिनों में पूरी हुई इस बहस के दौरान आरोपों के तीर चले, गड़े मुर्दे उखाड़े गए, सदन में कागज के विमान उड़े तो वहीं कार्यवाही बाधित करने की सजा में तीन दर्जन से ज्यादा सदस्यों को कुछ बैठकों के लिए निलंबित भी किया गया. बहस के जवाब में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने जहां कांग्रेस के आरोपों का सिलसिलेवार जवाब दिया तो साथ ही पलटवार में सवालों के तीर भी दागे. हालांकि सरकार पर आरोपों की अगुवाई कर रही कांग्रेस पार्टी ने इसे नाकाफी बताते हुए कहा कि उसे जेपीसी जांच से कम कुछ मंजूर नहीं.
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राफेल सौदे पर कांग्रेस के आरोपों को बेबुनियाद करार देते हुए कहा कि सवाल इसलिए उठाए जा रहे हैं क्योंकि इसमें उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. गंभीर आरोप लगाते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने मनमाफिक फायदा न हो पाने के कारण ही इस सौदे को पूरा नहीं होने दिया. जबकि एनडीए सरकार ने वायुसेना की जरूरत को पूरा करने के लिए ही इसे अंजाम दिया.
126 बनाम 36
रक्षा मंत्री ने बहस में बार बार उठाए जा रहे इस सवाल का जवाब दिया कि आखिर 126 के आंकड़े को घटाकर 36 कैसे और क्यों किया गया. निर्मला सीतारमण ने कहा कि यूपीए सरकार के राज में चल रही 126 लड़ाकू विमान खरीद की कवायद कुछ ऐसी स्थिति में थी कि वो पूरी हो ही नहीं सकती थी. लिहाजा एनडीए सरकार ने सत्ता संभालने के बाद इस अधूरी कवायद को पूरा करते हुए एमरजेंसी परचेज नियमों के तहत दो स्क्वाड्रन यानी 36 विमान खरीदने का फैसला किया. खरीद के लिए 36 का आंकड़ा भी वायुसेना की सलाह पर एमरजेंसी खरीद की पुरानी परिपाटी के मद्देनजर लिया गया. इससे पहले 1982, 1985 और 1987 में भी आपातकानील खरीद प्रावधानों के तहत दो स्क्वाड्रन विमान लिए गए. इतना ही नहीं सरकार ने शेष जरूरत के विमानों के लिए भी अलग से खरीद प्रक्रिया को शुरु किया.
सीतारमण के मुताबिक अटल बिहारी वाजपेयी के राज में शुरु हुए 126 लड़ाकू विमान खरीद की कवायद को यूपीए सरकार दस साल में भी अंजाम तक नहीं पहुंचा पाई. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने जानबूझकर इस सौदे को लटकाए रखा ताकि वो इससे अपने लिए मुनाफा निकाल सके. रक्षा मंत्री ने कहा कि यूपीए सरकार जहां 18 विमान तैयार हालत में खरीद रही थी वहीं एनडीए ने 36 विमान फ्लाय अवे स्थिति में खरीदने का सौदा किया. इन विमानों की डिलेवरी सितंबर 2019 से शुरु भी हो जाएगी और 2022 तक सभी 36 विमान भारत को हासिल हो जाएंगे.
526 बनाम 1600 करोड़
राफेल विमान ज्यादा दामों पर खरीदे जाने के आरोपों को भी रक्षा मंत्री ने खारिज किया. उनका कहना था कि कांग्रेस जिस 526 करोड़ प्रति राफेल विमान मूल्य के जिस आंकड़े को आधार बना रही है वो यूपीए सरकार के राज की एमएमआरसीए खरीद फाइलों में कहीं है ही नहीं. जबकि सितंबर 2016 में एनडीए सरकार के दौरान हुए नए सौदे में कोरे राफेल विमान का दाम 670 करोड़ रुपये है जो रक्षा मंत्रालय पहले की संसद में बता चुका है.
राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण हथियार समेत विमान की कीमत बताई नहीं जा सकती. ऐसे में 1600 करोड़ रुपए का आंकड़ा केवल एक आकलन है. इतना ही नहीं रक्षा मंत्री ने दावा किया कि यदि यूपीए राज में चल रहे एमएमआरसीए सौदे की शर्तों और प्रवाधानों को आधार बनाएं तो मौजूदा स्थिति में उसकी प्रति विमान कीमत करीब 737 करोड़ रुपये होती जो 670 करोड़ रुपये से 9 फीसद ज्यादा है. ऐसे में एनडीए सरकार ने ज्यादा बेहतर शर्तों पर इस विमान को खरीदा.
हालांकि कांग्रेस औऱ विपक्षी सांसदों को इन सवालों का जवाब नहीं मिल पाया कि आखिर दासौ एविएशन फिर कैसे भारत को बेचे गए विमानों का दाम अपनी सालाना रिपोर्ट में बता रही है?
सीतारमण ने पूर्व रक्षामंत्री एके एंटनी के एक बयान का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर सवाल दागा कि आखिर क्यों उन्होंने फरवरी 2014 में कहा कि इस सौदे के लिए पैसे कहां है? कांग्रेस बताए कि आखिर वो किस पैसे की बात कर रहे थे? रक्षा मंत्रालय में तो खरीद प्रक्रिया के साथ ही धन व्यवस्था सुनिश्चित करने की प्रक्रिया है ऐसे में तत्कालीन रक्षा मंत्री क्या कांग्रेस के कोष की चिंता कर रहे थे?
एनडीए सौदा बनाम यूपीए सौदा
रक्षा मंत्री के मुताबिक एनडीए सरकार ने विमानों के डिलिवरी शेड्यूल में भी पांच महीने कम करवाए जो यूपीए सरकार के दौरान चल रहे एमएमआरसीए सौदे से बेहतर है. इसके अलावा एमएमआरसीए सौदे में केवल एक स्क्वाड्रन के लिए परफार्मेंस बेस्ड लॉजिस्टिक सपोर्ट फ्रांस देने को राजी था वहीं नए करार में दो स्क्वाड्रन के लिए वो यह सुविधा देगा. इतना ही नहीं 45 साल की तुलना में 50 साल के लिए औद्योगिक सपोर्ट और सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले तीन विमानों के लिए अतिरिक्त वारंटी भी ली गई है.
एचएएल से क्यों छीना सौदा?
रक्षा मंत्री के मुताबिक एमएसआरसीए सौदा इस शर्त पर अटका था कि फ्रेंच कंपनी भारत में बनने वाले 108 विमानों के लिए गारंटी देने को तैयार नहीं थी. साथ ही एचएएल में बनने वाले विमानों के निर्माण में ढाई गुना से अधिक मानव श्रम समय लग रहा था. लिहाजा एनडीए सरकार ने फ्रांस से एक की बजाए दो स्क्वाड्रन फ्लाय अवे स्थिति में खरीदने का फैसला किया. रक्षा मंत्री ने यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों की सेहत को लेकर भी कांग्रेस को आड़े हाथों लिया.
क्यों नहीं ली गारंटी?
कांग्रेस की तरफ से राफेल सौदे में परफारमेंस या सॉवरिन गारंटी न लिए जाने के सवाल का जवाब देते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि अमेरिका औऱ रूस के साथ हो रहे अंतर सरकारी समझौतों में इस तरह की गारंटी नहीं ली जा रही. वहीं अंतर सरकारी समझौते में फ्रांस सरकार की सहभागिता ही गारंटी है. कांग्रेस पार्टी ने इस बात को लेकर सवाल उठाए थे कि राफेल सौदे में दासौ एविएशन को एनडीए सरकार ने परफार्मेंस व सॉवरिन गारंटी में रियायत दी.
चोर औऱ झूठा कहने पर भड़कीं रक्षा मंत्री
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण इस बात पर भी बिफरीं कि उनके लिए सदन में झूठी और प्रधानमंत्री के लिए चोर जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि नेहरू-गांधी खानदान के नेता साधारण परिवार से आए उनके और प्रधानमंत्री जैसे नेताओं की मेहनत से बनाई प्रतिष्ठा को खिलौना समझते हुए तोड़ रहे हैं.
बेनतीजा रही बहस
राफेल मुद्दे पर हुई बहस के बाद किसी समाधान की उम्मीद नहीं है. न ही इस बहस के बाद विपक्ष और सत्ता पक्ष के सियासी संवाद से इसका पटाक्षेप होगा. बहस खत्म होने के बाद सदन से बाहर निकले राहुल गांधी ने इसकी बानगी भी दे दी. वो सदन से मीडिया कैमरों के आगे वो जेपीसी-जेपीसी कहते निकले. इससे साफ है कि कांग्रेस न तो इस मुद्दे को छोड़ेगी और न ही राफेल पर संयुक्त संसदीय समिति जांच की अपनी मांग में कोई रियायत देगी. लिहाजा चुनावों तक सियासी आसमान में आरोपों के राफेल उड़ते रहेंगे.
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