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हाथियों को ट्रेन हादसे से बचाने की रेलवे की अनोखी पहल, तैयार किया प्लान 'बी'
रेलवे ने हाथी बहुल जंगली इलाकों की ट्रेन की पटरियों के पास ऐसे लाउडस्पीकर लगाने शुरू किए हैं जिनसे मधुमक्खियों के झुंड की आवाज निकलती है.
नई दिल्लीः देश के कई जंगली इलाको से हो कर गुजरने वाली ट्रेन की पटरियों पर आए दिन जंगली हाथी ट्रेन हादसे का शिकार होकर अपनी जान गवां देते हैं. इनमें ज्यादातर कम उम्र के छोटे हाथी होते हैं. दरअसल, हाथी झुंड के साथ चलते हैं और जंगली इलाकों की रेलवे ट्रैक को पार करते समय, अक्सर ये आती हुई ट्रेन की चपेट में आ कर दर्दनाक मौत के शिकार हो जाते हैं.
हाथियों को बचाने का रेलवे का प्लान ‘बी’ (Bee)
रेलवे को इन हाथियों को बचाने का एक नया विचार सूझा है. दरअसल, हाथियों को 'मधुमक्खी' की भनभनाहट की आवाज पसंद नहीं होती. इसलिए वो इस आवाज से दूर भागते हैं. हाथियों के इसी स्वभाव को देखते हुए रेलवे ने हाथी बहुल जंगली इलाकों की ट्रेन की पटरियों के पास ऐसे लाउडस्पीकर लगाने शुरू किए हैं जिनसे मधुमक्खियों के झुंड की आवाज निकलती है. असम के रांगिया डिविजन में अब तक सिर्फ 12 जगहों पर इन लाउडस्पीकरों को लगाया गया है जिसके बाद वहां हाथियों के मरने की संख्या में तेजी से गिरावट देखी जा रही है.
कितना आसान होगा ये प्रयोग
रेलवे के राष्ट्रीय प्रवक्ता आर डी वाजपेयी के ने एबीपी न्यूज को बताया कि इस प्लान 'बी' में महज दो हजार रुपए का खर्च आ रहा है. लिहाजा इसे ऐसी दूसरी जगहों पर भी लगाया जाएगा जहां हाथियों का झुंड ट्रेन ट्रैक से गुजरता हो. आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच सालों में रेलवे ड्राइवरों ने अपनी सावधानी से करीब 570 हाथियों की जान ट्रेनों को समय रहते रोक कर बचाई है.
पूरे देश में ट्रेन से दर्जनों हाथी मरते हैं हर साल
सिर्फ असम में ही हर साल औसतन 12 हाथी ट्रेन की टक्कर से मरते हैं. पिछले पांच साल में यहां 61 हाथी ट्रेन की चपेट में आकर मर चुके हैं. जबकि असम में हाथियों की कुल संख्या महज 5620 है.
यहां भी होती है ट्रेन से हाथियों की मौत
असम के अलावा झारखंड, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी हर महीने ट्रेन दुर्घटना में हाथियों की मौत होती रहती है.
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प्रशांत कुमार मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक
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