सफर में सर्दी से बचाने के लिए 57 ट्रेनों में ऑनबोर्ड कंबल दे रहा रेलवे, जानें कितनी है कीमत
रअसल रेलवे ने कोविड के कारण ट्रेन की रिज़र्व बर्थों पर भी बेड रोल यानी कंबल, चादर देना बंद कर दिया है. ऐसे में जो यात्री अपने साथ चादर ले जाना भूल जाते हैं उन्हें सारी रात ठिठुर कर बितानी पड़ रही है.
नई दिल्ली: रेलवे बोर्ड ने ट्रेनों में ठिठुरते यात्रियों के लिए कंबल देने की सत्कार परम्परा तो फिर से शुरू नहीं की है. लेकिन इस बीच रेलवे के दिल्ली डिविज़न ने रात्रि सेवा वाली 57 ट्रेनों में कंबल किट बेंचना ज़रूर शुरू कर दिया है. ठंड से बचने के लिए यात्री इस 300 रूपए के बेड रोल को ख़ूब ख़रीद भी रहे हैं. इस बेड रोल में एक सिंथेटिक कंबल, 2 डिस्पोज़ेबल चादरें, तकिया, कंघी, तेल, पेपर सोप, टिशू पेपर और सैनेटाईज़र दिया जा रहा है. इसे यात्री ख़रीदे गए सामान की तरह घर के जा सकते हैं.
ट्रेनों में ठिठुर रहे हैं यात्री
अक्टूबर जाने वाला है, नवंबर आहट दे रहा है ऐसे में बारिश ने सर्दी के मौसम की औपचारिक घोषणा कर दी है. लेकिन सर्दियों की इस शुरुआत भर ने ही रेल यात्रियों की मुसीबत बढ़ा दी है. दरअसल रेलवे ने कोविड के कारण ट्रेन की रिज़र्व बर्थों पर भी बेड रोल यानी कंबल चादर तकिया देना बंद कर दिया है. ऐसे में जो यात्री अपने साथ चादर ले जाना भूल जाते हैं उन्हें सारी रात ठिठुर कर बितानी पड़ रही है.
कंबल चादर की मांग बढ़ी, रेलवे कर रहा है विचार
सर्दी के कारण रेल यात्रियों की ओर से कंबल चादर की मांग काफ़ी बढ़ गई है. लेकिन फिर भी रेलवे बोर्ड ने अभी तक ट्रेनों में बेड रोल देने को हरी झंडी नहीं दी है. रेलवे अधिकारियों का कहना है कि अभी यात्रियों की इस मांग पर विचार चल रहा है.
रेलवे देश भर में अपना सकता है दिल्ली डिविज़न का कंबल बिक्री मॉडल
माना जा रहा है कि रेलवे दिल्ली डिविज़न में 300 रूपए के अपने कंबल किट की सफलता को देखते हुए अब पूरे देश में इस बिज़नेस मॉडल को अपना सकती है. फ़िल्हाल देश भर के स्टेशनों पर 150 रूपए में कंबल मिल रहे हैं. रेलवे की इस किट में कंबल के अलावा डिस्पोज़ेबल चादर, तकिया, टूथ ब्रश, कंघी, तेल, टिशू पेपर और सैनेटाईज़र भी है.
95% ट्रेनें फिर से चलने लगी हैं
रेलवे अभी भी ट्रेनों को स्पेशल ट्रेनों के नाम से ही चला रहा है लेकिन कोविड पूर्व की क्षमता के लिहाज़ से 95% यात्री ट्रेनें फिर पटरी पर दौड़ने लगी हैं. इनमें क़रीब 4750 मेल एक्सप्रेस ट्रेनें इस वक़्त शुरू हो चुकी हैं.
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