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राज की बात: मछुआरों के साथ समुद्र में छलांग लगाकर राहुल गांधी ने चलाया सिसायत का ब्रह्मास्त्र

आंकड़ों पर जाए तो फिशरीज डिपार्टमेंट का कुल बजट 1220 करोड़ का है. इसमें से लगभग 80 फीसदी राशि इनलैंड रिसोर्सेज में खर्च की जाती है जबकि 20 फीसदी खर्च समुद्री मछली उद्योग के लिए होता है.

कहते हैं कि तस्वीरें बोलती हैं. एक तस्वीर मौन होकर भी हजार शब्दों की कहानी बयां कर देती है और कहीं वो तस्वीर सियासत या सियासतदां से जुड़ी हो तो फिर बात दूर तलक जाती है. क्योंकि राजनीति में जो पिक्चर बनाई जाती है वो कुछ और होती है लेकिन उसके पीछे का मंत्व्य और मैसेज कहीं और निशाना साध रहा होता है. तस्वीरों के इसी तारतम्य में कोल्लम से आए इस वीडियो को देखिए.

2 मछुआरों के साथ राहुल ने समुद्र में छलांग लगा दी. काफी देर तक समंदर के अथाह जल में अठखेलियां करते रहे. जाल बिछाकर मछुआरों के साथ मछली पकड़ने में उन्होंने भी हाथ बटाया.

तस्वीर तो बस इतनी सी है लेकिन अब इसके पीछे राज की बात क्या है चलिए वो हम आपको बताते हैं. दरअसल न तो राहुल की समुद्र में छलांग कोई सामान्य चीज थी और न ही मछुआरों के साथ जाल बिछाकर मछली पकड़ने भर की कोशिश. दरअसल ये छलांग की साउथ की सियासत में गोता मारकर उस वोटबैंक को पकड़ने की थी जो दक्षिण भारत के मछुआरों और मछली उद्योग से जुड़े लोगों से सीधे जुड़ा हुआ है. आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि 10 मिनट के समुद्र स्नान से भला सियासत का कौन से ब्रह्मास्त्र चल जाएगा दक्षिण भारत में...तो इसका जवाब अब हम आपको तथ्यों के साथ समझाते हैं.

उत्तर भारत मे सियासी जमीन पर लगभग शून्य हो चली कांग्रेस को दक्षिण भारत से भारी उम्मीदें हैं. वजह ये कि पहला तो ये कि केरल के वायनाड से राहुल सांसद हैं और दूसरा ये कि जब उत्तर विरोधी लहर चल रही हो तो दूसरी दिशा को साध कर दशा बदलने की कवायद ही रंग ला सकती है. सियासी आकड़ों पर जाएं तो समुद्री तट से जुड़े राज्यों और लोकसभा सीटों पर कांग्रेस फोकस कर रही है. गुजरात को छोड़ दें को तटवर्ती राज्यों की 155 सीटों पर कांग्रेस का फोकस हैं.

अब आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर तटवर्ती राज्यों और लोकसभा सीटों से राहुल की समुद्र में छलांग के क्या मायने हैं. साथ ही इस छलांग से पहले राहुल बार-बार क्यों क़ह रहे हैं कि देश में कोई मत्स्यपालन यानी फ़िशर मंत्रालय नहीं है? जबकि तथ्य यह है कि एक मंत्रालय है और बीजेपी के बड़े नेता और इस विभाग के मंत्री गिरिराज सिंह लगातार राहुल पर प्रहार कर रहे हैं कि वे झूठ और भ्रम फैला रहे हैं. इसके बाद भी राहुल ये बोल रहे हैं तो इसके पीछे क्या राज है? यही समझने की ज़रूरत है क्योंकि सियासत में आपके बयान और रणनीति आपको उल्टी या सीधी तो पड़ सकती है, लेकिन उसके पीछे एक सुविचारित योजना या सोच ज़रूर होती है.

दरअसल इस बयान के साथ कोल्लम में राहुल गांधी की समुद्री छलांग जीत का सिलसिला ख़ड़ा करने की थी, बीजेपी के मिशन साउथ की नांव डुबोने के लिए थी और मछली पालन से जुड़े देश भर के लोगों से कांग्रेस को जोड़ने की थी.

आंकड़ों पर जाए तो फिशरीज डिपार्टमेंट का कुल बजट 1220 करोड़ का है. इसमें से लगभग 80 फीसदी राशि  इनलैंड रिसोर्सेज में खर्च की जाती है जबकि 20 फीसदी खर्च समुद्री मछली उद्योग के लिए होता है. ये आंकड़ा इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अगर भारत के एक्सपोर्ट की बात की जाए तो कुल एक्सपोर्ट का लगभग 20 फीसदी हिस्सा केवल एग्रीकल्चर और फिश से जुड़ा हुआ है. इस 20 फीसदी एक्सपोर्ट में 10 फीसदी केवल 50 तरह की समुद्री मछलियों का है. लगभग 1 लाख करोड़ वाले मछली उद्योग को विस्तार देकर 2022 में 200 लाख टन एक्सपोर्ट का लक्ष्य सरकार की तरफ से रखा गया है.

इन आँकड़ों को देखकर आप समझ ही गए होंगे कि राहुल की छलांग और ग़लत बयान का मतलब क्यूबा है? तो राज की बात यही है कि कांग्रेस दक्षिण भारत में मछुआरों को ये मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि उनकी मेहनत और उपलब्धि के हिसाब से केंद्र की मोदी सरकार मदद नहीं दे रही है. मामला केवल मदद तक ही सीमित नहीं है. मामला मछली पकड़ने के जाल पर जीएसटी लगाने से लेकर समुद्री सीमा में CZR बनाने तक को लेकर है. दरअसल जिस तरह से समुद्र तटो पर पोर्ट्स का निर्माण और विकास किया जा रहा है उसकी वजह से जो मछुआरे लगभग 4 किलोमीटर के दायरे में ही मछलियां पकड़ लिया करते थे अब उन्हें 8 किलोमीटर तक के दायरे में मछली पक़ड़ने की मनाही हो गई है. मतलब ये कि उन्हें 8 किलोमीटर के दायरे से आगे जाकर अपना काम करना होगा. जिसमें मेहनत भी ज्यादा लगेगी, संसाधन भी ज्यादा लगेंगे और जो रिस्क बढ़ेगा वो अलग.

तो राज की बात ये है कि भले ही 2021-22 के बजट में मोदी सरकार ने ब्लू रिवोल्यूशन को बढ़ाने के लिए कई सार्थक कदम उठाए हैं. लेकिन उन्हीं कदमों में से लूपहोल्स को तलाश कर....बीजेपी को दक्षिण में हार का गोता लगवाने के लिए राहुल समुद्र में कूद गए. ये तो रही बात केवल बिजनेस की. साउथ से सियासत में वापसी की मुहिम में लगी कांग्रेस को बुलंद करने के लिए राहुल गांधी ने सेंटीमेट्स को भी साधने का कदम बढ़ाया है. इस पहलू को साधने के लिए उन्होने दक्षिण भारतीयों को ज्यादा विश्लेषणात्मक बताया जिससे मीडिया के जरिए काफी सकारात्मक छवि बनी है.

मतलब साफ है कि राहुल की समुद्र में लगाई गई छलांग और दक्षिण भारतीयों के विश्लेषक होने का बयान एकदम नपा तुला और सियासी रूप से नियोजित था. चाहे जाल पर जीएसटी की बात हो, चाहे बात समुद्र में मछली पक़ड़ने वालों की कम बजट की बात हो या फिर CZR की बात हो...ये वो मसले हैं जिनके जरिए कांग्रेस एक बड़े वोट बैंक को साधकर बीजेपी को दक्षिण में झटका देना चाहती है. अब देखने वाली बात होगी कि राहुल की राजनैतिक छलांग का जवाब बीजेपी किस तरह से देती है और सियासत के समंदर के बीच से सत्ता की संभावना को कौन ज्यादा मजबूती से पक़ड़ पाता है.

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