Raaj Ki Baat: तीनों कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसान आंदोलन की मियाद जैसे जैसे बढ़ रही है. वैसे-वैसे नए-नए तथ्य और फरेबों का भी खुलासा हो रहा है. किसान आंदोलन और इस आंदोलन को समर्थन दे रही सरकारों और पार्टियों की फेहरिस्त लंबी है. किसान नेताओं की फेहरिस्त तो इतनी लंबी है कि संयुक्त किसान मोर्चा का बैनर टांगना पड़ा. लेकिन लंबे होते आंदोलन और लंबी होती आंदोलन पर सियासत के बीच से बड़ी राज की बात सामने आई है.
राज की बात ये है कि जिस आंदोलन को आप किसानों की लड़ाई मान रहे हैं, जिस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे नेताओ को आप किसानों का मसीहा मान रहे हैं, जिन पार्टियों और सरकारों को आंदोलन के समर्थन मे खड़ा हुआ देख आप किसानों का हितैषी मान रहे हैं.
दरअसल वो सब किसानों को नाम पर खेल कर रहे हैं. खेल भी कोई छोटा मोटा नहीं बल्कि इतना बड़ा कि अन्नदाता को कभी बिचौलियों के मकड़जाल से मुक्ति ही न मिले. राज की बात ये है कि जिन आढ़ातियो को नाम पर आंदोलन खड़ा करने वाला वर्ग नाक-भौं सिकोड़ता आपको नजर आता रहा है. यही वर्ग आढ़तियों के समर्थन में बैकडोर से लोहा ले रहा है.
'बात किसानों की चिंता आढ़तियों की'
राज की बात ये है कि हित की बात जरूर किसानों की हो रही है लेकिन असल चिंता आढ़तियों की है, असल चिंता आढ़तियों के फैलाए कमीशनखोरी के सिस्टम को सलामत रखने की है. जी हां, सही सुना आपने. ये बात हम कोई हवा हवाई नहीं कर रहे बल्कि पुख्ता जानकारी के आधार पर कर रहे हैं.
सबसे पहले बात करते हैं किसान नेताओं की. दिल्ली की सीमाओं पर मोर्चा खोलने वाले तमाम नेताओं में से एक नेता हैं डॉ. दर्शन पाल. किसानों की बीच मसीहा की छवि बनाने के लिए हर प्लेटफॉर्म पर आढ़तियों को अन्नदाताओ का दुश्मन बताते आए हैं और उनपर लगाम लगाने की मांग से भी कभी पीछे नहीं हटे.
जब कृषि कानूनों के जरिए किसानों तक सीधा फायदा पहुंचाने की बात केंद्र सरकार ने की तो दर्शन साहब के मन में दबा आढ़तियों का प्रेम खुल कर सामने आ गया. क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष दर्शन पाल आढ़तियों के हित पर अड़ने लगे. किसानो के हित के नाम पर आंदोलन और आंदोलन के समर्थन के फरेब की ये तस्वीर बानगी भर है.
'कांग्रेस सियासी खेल में मशगूल'
इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए हम आपको एक और राज की बात बताते हैं. राज की बात ये है कि किसानों के समर्थन के नाम पर हल्ला बोल रही कांग्रेस भी अन्नदाताओं के हित के नाम पर केवल सियासी खेल में मशगूल है.
आढ़तियों का पंजाब में सबसे बड़े नेटवर्क है और नए निर्देश के खिलाफ आढ़तियों ने आंदोलन का आह्वान भी किया था. शायद यही वजह रही कि सियासत के लिए अन्नदाताओं का समर्थन करने वाली कांग्रेस अपने शासन वाले राज्य में आढ़तियों के साथ खड़ी हो गई.
ऐसे में सवाल सीधा सा है कि क्या किसान आंदोलन के नाम पर केवल सियासी जोर आजमाइश चल रही है. कोई सत्ता पक्ष को कमजोर करने के लिए आंदोलन का समर्थन कर रहा है, कोई किसान नेता से मेनस्ट्रीम राजनीति में दाखिल होने के लिए आंदोलन का समर्थन कर रहा है. ...और ये सवाल इसलिए क्योंकि जब चिंता किसानों की है, आंदोलन किसानों का और किसानों के लिए है फिर आढ़तियों की चिंता हावी कैसे हो रही है.
इस राज की बात के सामने आने के बाद कहा जा सकता है कि किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर सूरमा अपनी सियासत साध रहे हैं, नेता अपनी नेतागिरी चमका रहे हैं और किसानों की आर्थिक समृद्धि के नाम पर आढातियों के कमीशन नेटवर्क को बचाए रखने की मुहिम बैकडोर से जारी है.
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