डिजिटिल प्लेटफॉर्म पर बढ़ते खबरों के दायरों के साथ जहां जनता और जम्हूरियत को ज्यादा जागरुक होने का मौका मिला है वहीं इसके साथ कुछ दुश्वारियों का सामना भी सभी को करना पड़ा. सभी मतलब की सभी को. सरकार को, सिस्टम को भी, पत्रकारों को भी और उन डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को भी जिनकी वजह से खबरें अब जनता के जेब में 24 घंटे मौजूद रहती हैं.


लेकिन इस सहूलियत के साथ दुश्वारियां रिपोर्टिंग को लेकर आईं. कई बार डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की तरफ से सीमाएं लांघ दी गईं और कई बार सिस्टम ने अपने खिलाफ खबरों को पढ़कर सीमाओं को लांघ दिया. आज राज की बात में हम आपको बताने जा रहे हैं कि इन समस्याओं से निपटने के लिए सरकार ने आखिर क्या कदम उठाएं हैं. राज की बात में हम आपको ये भी बताएंगे कि आखिर इन कदमों का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय असर क्या होगा.


इन्ही दुश्वारियों को खत्म करने के लिए सरकार Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Codes 2021 लेकर आई है. इसके अंतर्गत डिजिटल पब्लिशर्स और ओ.टी.टी प्लेटफॉर्म्स के लिए नियम तय किए गए हैं. ओ.टी.टी प्लेटफॉर्म्स को जहां उम्र के आधार पर 5 कैटेगरी निर्धारित करने होंगे. वहीं ग्रीवियांस रिड्रेसल मेकेनिज्म के लिए डिजिटल पब्लिशर्स को मेनस्ट्रीम मीडिया की तरह स्वनियमन यानि कि सेल्फ रेग्युलेशन का अधिकार दिया गया है.


हालंकि ये टाइम बाउंड भी होगा और सरकार की नजर भी होगी. लेकिन जो सबसे अहम बात डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड में सरकार ने डाली है वो ये कि इसमें स्पष्ट किया गया है कि ‘’जो भी नियम बनाए गए हैं उस पर किसी कार्रवाई के अधिकार केवल सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के हाथ में होंगे. ये अधिकार राज्य सरकार, जिलाधिकारी या पुलिस कमिश्नर्स को नहीं दिए गए हैं.‘’


अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये कदम उठाने की जरूरत केंद्र सरकार को क्यों पड़ी. दरअसल एक तरफ कुछ डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अतिवाद के आरोप लगे तो वहीं दूसरी तरफ सच दिखाने की सजा पत्रकारों को मिली और उन्हें अधिकारियों की बद्तमीजी और हेकड़ी को झेलना पड़ा. ऐसी कई घटनाएं सामने आई. मणिपुर में एक पत्रकार की रिपोर्टिंग से खफा डीएम ने पत्रकार के साथ बद्दमीजी की और उसे जेल में डाल दिया गया. वहीं उत्तरप्रदेश में मिडडेमील की बदहाली दिखाने पर एक पत्रकार को अधिकारियों ने सलाखों के पीछे भेज दिया.


इन घटनाओं का असर ये हुआ कि मनमानी का खेल लालफीताशाही ने किया और छवि सरकार की खराब हुई और वो भी राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर. हालात ऐसे बन गए कि वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग लगातार गिरने लगी और दुनिया भर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले में भारत की छवि खराब होनी शुरू हो गई.


यही वजह रही कि सरकार ने फैसला किया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए एथिक्स बने और उसके नियमन का अधिकार केवल केंद्र के पास हो ताकि मनमानी की हवा सरकार के लिए छवि का बवंडर न खड़ा कर सके. राज की बात ये भी है इन एथिक्स को बनाने से जहां सरकार के प्रति नाकारात्मक नजरिया घटेगा तो वहीं राज्य के स्तर पर पत्रकारों की प्रताड़ना में कमी आएगी और वैश्विक स्तर पर बिगड़ी छवि में सुधार आ पाएगा.


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