तमाम चुनौतियों के बीच देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक रफ्तार तेज करने और रोज़गार मुहैया कराने की है. ये एक ऐसा मोर्चा है जिस पर कभी सियासत तो कभी मंदी और अभी कोरोना जैसी महामारी ने लगातार भारत को झटका दिया है.
वैसे तो कोरोना महामारी की मार से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं हिल गईं है. 130 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले देश की सरकार के सामने चुनौतियां और भी गंभीर और बड़ी हैं. चुनौती, इतने बड़े देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की है. चुनौती निवेश को लाने की है. चुनौती, नए और बड़े उद्योग लगाने की है और चुनौती, बेरोजगारी से निपटने के लिए रोजगार के साधन बनाने की है. चुनौतियां चौतरफा हैं, संसाधन सीमित हैं लिहाजा केंद्र की मोदी सरकार ने तय कर लिया है कि देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर किस तरीके से लाना है.
आज राज की बात में हम आपको बताएंगे सरकार को वो आर्थिक सुधार वाला प्लान जिसके परिणाम जल्द आएंगे और दूरगामी होंगे. राज की बात ये है कि आत्मनिर्भर भारत का निर्माण स्पष्ट आर्थिक नीति की राह पर चलकर होगा. राज की बात ये है कि नए भारत का निर्माण प्राइवेटाइजेशन और इनवेस्टमेंट के पहिए पर चलकर रफ्तार पकड़ेगा. इसका इशारा राजग सरकार के मौजूदा बजट में हो चुका है. साफ है कि समाजवाद और पूंजीवाद की बहस या भ्रम को पीछे छोड़कर मोदी सरकार ने निजीकरण की राह पर आगे बढ़ने की तैयारी कर ली है.
इसको अमली जामा पहनाने और रास्ते में कोई बाधा न आए यह सुनिश्चित करने के लिए पीएम ने खुद कमर कस ली है. खासतौर से नीतिगत शिथिलता दूर करने के साथ-साथ देश की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा लालफ़ीताशाही को लेकर पीएम का रवैया बेहद सख्त है. पीएम की नीति, तेवर और प्रतिबद्धता खुलकर आई पिछले हफ्ते हुई एक हाईलेवल मीटिंग से छनकर. इस बैठक में ऊर्जा, सड़क परिवहन, कॉर्पोरेट अफेयर्स, कॉमर्स जैसे अर्थ और विकास से सीधे जुड़े मंत्रालयों के मंत्री और सचिव और मौजूद थे.
केवल पीएम, मंत्री और सचिव ही नहीं बल्कि देश के बड़े औद्यौगिक समूहों को भी बैठक में आनलाइन जोड़ा गया था जिनमें टाटा, बिड़ला, अंबानी, अडानी, रहेजा जैसे ग्रुप शामिल थे. इस बैठक में पीएम ने साफ किया कि निवेशकों और प्राइवेट कंपनियों को उनकी क्षमता के हिसाब से काम करने दिया जाए और लालफीताशाही उसमें अड़ंगा कतई न बने. न नियमों के नाम पर, न निरीक्षण के नाम पर और न ही कागजी कोरम के नाम पर. इस बैठक में पीएम ने साफ निर्देश दिया की नए कानून बनाने से बचें और पुराने खत्म करें ताकि उद्योंगों की स्थापना में किसी भी तरह की व्यवस्था द्वारा पैदा की गई देरी न हो.
इसी बैठक में एक छोटी से घटना भी हुई जिससे ये साफ हो गया कि देश के विकास में प्राइवेट प्लेयर्स और इनवेस्टर्स की भूमिका को सरकार कितने महत्व के साथ लेकर चल रही है. राज की बात ये है कि मीटिंग में जिस वक्त पॉवर प्रोजेक्ट्स को लेकर पीएम कुछ बोल रहे थे उसी समय ऊर्जा सचिव आलोक कुमार बोल उठे.आलोक कुमार ने कहा कि हम कॉपरेट करेंगे इसपर पीएम ने नाराजगी के साथ कहा कि- आप कुछ नहीं करें तो ज्यादा बेहतर होगा.-पीएम ने दो टूक कहा कि-जो लोग परियोजना में निवेश कर रहे हैं, वे अपने काम में दक्ष हैं. उन पर अच्छे प्रदर्शन और चूंकि उनका पैसा लगा है तो निवेश रिटर्न का भी दबाव है.
ख़ास बात है कि पीएम जब बोल रहे थे तो ऊर्जा मंत्री आर.के.सिंह ने भी बोलने का उपक्रम किया, लेकिन पीएम ने हाथ के इशारे से उन्हें वहीं चुप करा दिया. ध्यान रहे कि ऊर्जा सचिव वही आलोक कुमार हैं जिन्हें उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में बिलों को लेकर हो रही गड़बड़ियों पर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के सख्त तेवरों के बाद हटाया गया था.
दरअसल प्रधानमंत्री की ये नाराजगी नौकरशाही के उस एप्रोच को लेकर थी जिसमें नियमों और नीतियों के नाम पर किसी बड़े प्रोजेक्ट का शुभारंभ दूर की कौड़ी बनकर रह जाता है. प्रधानमंत्री ने इस मीटिंग में साफ किया कि अगर कोई प्राइवेट प्लेयर एक बड़ा इनवेस्टमेंट कर रहा है तो वो अपने काम में पहले से ही दक्ष है ऐसे में सिस्टम उसे सपोर्ट करे, न कि नियमों में उलझाए. पीएम ने साफ कहा कि -सरकार का काम व्यापार करना नहीं, बल्कि नियम बनाना और उनको ईमानदारी व कड़ाई से अमल में लाना और भ्रष्टाचार न होने देना है. उन्होंने ऊर्जा सचिव की क्लास ली, लेकिन संदेश सभी मंत्रालयों या विभागों को दे दिया.
राज की बात ये है कि इसी मीटिंग में रेल मंत्रालय से भी प्रधानमंत्री ने प्राइवेट सेक्टर से मदद लेने की संभावनाओं के बारे में टटोलने को कहा. उन्होंने कहा कि कंटेनर कारपोरेशन आफ इंडिया और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का उपयोग कर निजी क्षेत्र कैसे आर्थिक रफ्तार बढ़ाने में मदद कर सकते हैं, ये संभावनायें खोजी जाएं. उनका साफ निर्देश था कि फाइलबाजी और निवेश व परियोजना में देरी करने वाली हर बाधा समाप्त ही होनी चाहिए.
मतलब साफ है कि सरकार का विजन स्पष्ट है कि सीमित संसाधनों के दौर में इनवेस्टर्स और प्राइवेट कंपनियों को सरकार पूरा सपोर्ट देगी. सरकार की मंशा है कि तेजी से निवेश आए, तेजी से उद्योग स्थापित हों और तेजी से देश आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़े. इसके कई फायदे तभी तेजी से मिल पाएंगे . चाहे वो फायदा आर्थिक तरक्की और आर्थिक सुधार की राह पर देश को ले जाने का हो या फिर रोजगार के सृजन का. इन चुनौतियों से तभी पार पाया जा सकता है जब उद्योग धंधों की धार रफ्तार पकड़ेगी और ये रफ्तार बिना निवेश के संभव नहीं.
लिहाजा सरकार का विजन साफ है कि देश के विकास में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बढ़ाई जाएगी और उदारवाद की लीक से हटकर व्यवहारिक परिस्थितियों को समझते हुए निवेशकों को वो माहौल देना होगा जो लालफीताशाही की फांस में फंसकर रह जाते थे और विकास भी उसी फंदे पर झूलने लगता था. स्पष्ट है कि आने वाले वक्त में उद्योगपतियों के लिए और सकारात्मक माहौल बनेगा, लेकिन निगरानी पूरी होगी.
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