अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद उस मुल्क में पीढी दर पीढ़ी रहते चले आ रहे लोग भी रहना नहीं चाहते. भगदड़ मची हुई है. जो लोग प्रवासी हैं, वे अपने मुल्क जाना चाहते हैं. जो अफगानी नागरिक हैं और तालिबान की क्रूरता का युग देखा है, वे अपना मुल्क छोड़ दूसरी जगह जाना चाहते हैं.


भारत ने पहले से ही अपने लोगो को निकालना शुरू कर दिया था, जो फंसे हैं उन्हें निकालने के प्रयास चल रहे हैं. मगर राज की बात ये है कि तमाम भारतीय मूल के अफगानिस्तानी नागिरक वो मुल्क तो छोड़ना चाहते हैं, लेकिन भारत से पहले अन्य देशों में जाने की उनकी प्राथमिकता है.


अपने लोगों को वापस लाने में भाारत की हर मुमकिन कोशिश जारी


राज की बात ये है कि भारत उन्हें निकालकर यहां लाने को तैयार है. काबुल एयरपोर्ट पर तालिबान का कब्जा और उनकी अपनी प्राथमिकताओं के बीच भी भारत कूटनीतिज्ञ चैनल से अपने लोगों को वतन लाने में की कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है. इतना ही नहीं तालिबानी हुकूमत उन्हें एयरपोर्ट तक पहुंचने दे, इसके लिए भी बैक चैनल बातचीत चल ही रही है. इन दुश्वारियों से जूझकर भारत सरकार किसी भी तरह से अपने लोगों को निकालकर ला रही है. मगर आपको जानकर शायद हैरानी होंगे, भारतीय मूल के तमाम अफगानी नागरिकों की पहली पसंद भारत नहीं.


खासतौर से पीढ़ियों से बसे सिख परिवार इन हालात में अफगानिस्तान नहीं रहना चाहते, लेकिन भारत उनकी प्राथमिकता में छठवें नंबर पर आ रहा है. राज की बात ये है कि काबुल में विदेश मंत्रालय के मिशन से जो सूची आव्रजन यानी इमीग्रेशन को भेजी गई थी, उसमें लगभग ढाई हजार से ज्यादा लोग थे जो अफगानिस्तान छोड़ना चाहते थे. इस लिहाज से दिल्ली में विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने तैयारियां भी कर ली थीं. मगर ऐन वक्त पर कई सिख परिवार जो ग्लोब मास्टर सी-17 में आने थे वो नहीं आए. हमारे काफी प्लेन खाली दिल्ली पहुंचे.


अफगानी सिख सबसे पहले अमेरिका और कनाडा जाना चाहते हैं


राज की बात ये है कि ज्यादातर अफगानी सिख सबसे पहले अमेरिका और कनाडा जाना चाहते हैं. इसके बाद वे जर्मनी और स्पेन में शरणार्थी का दर्जा ढूढ़ रहे हैं. जब इनमें से कहीं भी जगह नहीं मिलेगी तो वे भारत आएंगे. आव्रजन विभाग से जुड़े सूत्रों ने बताया कि विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर हमने जो सूची तैयार की थी, उनको लाने के प्रयास हुए. कई दुश्वारियां आ रहीं हैं. हमारे प्लेन उतारने की चुनौती और फिर लोगों को एयरपोर्ट तक लाने देने के लिए तालिबान से बातचीत. सारी चीजें हमारे लोगों ने की अपने लोगों को लाने के लिए, लेकिन अभी वो और विकल्प भी देख रहे हैं.


राज की बात ये है कि अफगान मूल के इन भारतीय नागरिकों के अमेरिका या कनाडा समेत अन्य देशों में जो रिश्तेदार बसे हैं, वे इस आपदा में शरणार्थी का दर्जा लेकर इन्हीं देशों में उन्हें लाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. इसीलिए, ऐन वक्त पर भारतीय वायुसेना के विमान पर चढ़ने से पहले भी कई लोग नहीं आए. हालांकि, भारत का रुख साफ है कि जो भी भारतीय मूल का नागरिक वतन आना चाहेगा, उसे लाने में कोई भी हीला-हवाली नहीं की जाएगी. बाकी ये अफगानी सिखों या भारतीय मूल के अन्य नागरिकों पर है कि वे कहां जाना चाहते हैं.


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