नई दिल्ली: कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने हिंदुस्तान को हिलाकर रख दिया. संक्रमण की रफ्तार पर सवार होकर मौत ने जो तांडव भारत में मचाया, उसके सामने पूरी व्यवस्था भरभरा कर औंधे मुंह हो गई. हालात ऐसे हुए कि ऑक्सीजन की कमी से देश का दम घुट कर रह गया. दूसरी लहर आकर अब अवसान की तरफ है, लेकिन तीसरी लहर के तांडव की आशंकाएं बरकरार हैं और विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की मानें तो इस बार महामारी के दायरे में बच्चों को खतरा ज्यादा है. चूंकि खतरा देश के भविष्य पर है लिहाजा चिंता भी ज्यादा है और मंथन भी.
कोरोना की पहली परीक्षा देश ने कम नुकसान झेलकर पास कर ली थी, लेकिन दूसरी लहर की परीक्षा ने व्यवस्था के पसीने छुड़ाकर रख दिए. लिहाजा केंद्र सरकार ने फैसला किया कि तीसरी लहर में जिनपर खतरा सबसे ज्यादा है उनको इस साल बोर्ड की परीक्षा से मुक्त रखा जाएगा और इस बात का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में हुआ. तय किया गया कि सीबीएसई की 12वीं बोर्ड की परीक्षा इस साल रद्द की जाएगी, जो बच्चे परीक्षा देना चाहते हैं उन्हें हालात सामान्य होने पर मौका दिया जाएगा.
ये खबर देश के अभिभावकों और परीक्षार्थियों के लिए राहत की बात है, लेकिन इसमें राज की बात क्या है वो आपको बताते हैं. राज की बात ये है कि केंद्र की मोदी सरकार ने बोर्ड परीक्षा को रद्द करने का फैसला कोई एक घंटे की मीटिंग या एक-दो दिन के विचार में नहीं लिया. राज की बात ये है कि इस फैसले के पीछे देश विशेषज्ञों, नीति नियंताओं, संस्थानों और वैश्विक रिपोर्ट्स के आधार पर लिया गया है.
इस बड़े विचार विमर्श के पीछे भी एक बड़ी राज की बात है. दरअसल कोरोना की पहली लहर में केंद्र सरकार ने व्यवस्था अपने हाथ में रखी लेकिन दूसरी लहर की दस्तक में निर्णय का बड़ा अधिकार राज्यों को दिया. उसके परिणाम ये हुए कि दूसरी लहर इतनी बेकाबू हुई कि उसे संभालते संभालते आफत आ गई और सरकार की छवि पर जो डेंट लगा सो अलग. लिहाज तीसरी लहर की आहट मिलते ही पीएम मोदी एक्शन में आए और देश के बड़े संस्थानों से उन्होंने खुद विचार विमर्श शुरू किया. महामारी से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे आई.सी.एम.आर से लेकर देश के विकास की नीति बनाने वाले नीति आयोग जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों के विशेषज्ञों से राय ली गई.
इनके साथ ही साथ अलग-अलग विषय विशेषज्ञों से परीक्षा के क्रियान्वयन और उसके इफेक्ट और साइडइफेक्ट पर बात की गई. बातचीत के सिलसिले में कई विशेषज्ञों की तरफ से राय आई कि बोर्ड की परीक्षाएं करवाई जा सकती हैं और कुछ ऐसा करने के पक्ष में नहीं थे. इतना ही नहीं शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियान निशंक ने भी परीक्षाओं के संबंध में तारीखों के एलान की बात कही थी, लेकिन अंतत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बच्चों के मामले पर कोई रिस्क न लेने का फैसला किया. सरकार ने तय किया कि चूंकि तीसरी लहर में बच्चों पर खतरा ज्यादा है, बच्चों की जान बचाने की परीक्षा ज्यादा बड़ी है, लिहाजा बोर्ड परीक्षा को रद्द कर देने में कोई बुराई नहीं है.
एक लंबे मंथन और चर्चा के बाद जैसे ही 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के रद्द होने का एलान हुआ, उसके बाद अलग अलग राज्यों ने भी ये फैसला लेना शुरू कर दिया. एक तरफ तीसरी लहर में बच्चों पर आने वाले खतरे को लेकर जहां स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा तैयार किया जा रहा है, वहीं उन एहतियाती कदमों पर भी फैसले शुरू हो गए हैं, जो देश को कोरोना संक्रमण से बचा सकें और उन्हीं फैसलों में से एक महत्वपूर्ण फैसला है सीबीएसई की 12वीं बोर्ड की परीक्षा को रद्द करना, जिसे लंबे विचार विमर्श के बाद तय किया गया.
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