एम्स में प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने अभी बीते दिनों कोरोना वैक्सीन ली है. ये वो तस्वीरें है जो पूरे देश ने देखी, पूरी दुनिया ने देखी. इन तस्वीरों में बहुतों को आत्मनिर्भर भारत के सशक्त प्रधानमंत्री की झलक दिखी, बहुतों को इन तस्वीरों में कोरोना वैक्सीन पर भरोसा कर लेने की वजह मिली, बहुतों को बिना देर किए वैक्सीन लगवाने की प्रेरणा मिली.


लेकिन पीएम के वैक्सिनेशन की तस्वीर हर किसी को अच्छी लगी ऐसा भी नहीं है. हालात ऐसे बने की इंजेक्शन पीएम को लगा और चुभन एक बड़े वर्ग को महसूस हो गई. बहुतों को इन तस्वीरों ने सियासी धोबीपछाड़ के दर्द का एहसास करा दिया. बहुतों का खेल इन तस्वीरों बिगाड़ दिया. आज राज की बात में आपको यही बताने जा रहे हैं कि आखिर कौन हैं वो लोग और वर्ग जिन्हें पीएम का वैक्सीन लगवाना अच्छा नहीं लगा. राज की बात में हम आपको आज बताने जा रहे हैं कि वैक्सीन वाली सियासत में कैसे रणनीति का रंग ट्रैप में तब्दील कर दिया गया था.


तो वैक्सीन पर सियासी सुख-दुख की कहानी शुरु होती है वैक्सिनेशन करवाने या न करवाने की बहस से. जब देश में वैक्सिनेशन की शुरुआत हुई तब राजनैतिक वर्ग ने हायतौबा मचा दिया. सवाल उठाए गए कि जब कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष खुद पहले वैक्सीन लगवा रहे हैं तो फिर भारत की सरकार फ्रंटलाइन वर्कर्स को खतरे में क्यों झोंक रही है. इन सवालों के जवाब ने सरकार ने साफ किया कि जिन्होंने खतरे को सबसे पहले और करीब से झेला है उन्हें ही सुरक्षा कवच हासिल करने का पहला हक है.


बात यहां से खत्म हुई तो सियासत ने नया प्लान प्रधानमंत्री को घेरने के लिए गढ़ दिया. राज की बात ये है कि पीएम को वैक्सिनेशन की राजनीति में घेरने के लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने बड़ा गेम किया. राज की बात ये है कि राज्य सरकार के अस्पतालों में कोवीशील्ड वैक्सिनेशन के लिए मंगवाई गई और दिल्ली में स्थित 4 केंद्रीय अस्पतालों एम्स, सफ़दरजंग, आरएमएल और लेडी हार्डिंग में कौवैक्सीन का ऑर्डर दिया गया. आगे की कहानी बताने के लिए आपके लिए ये जानना जरूरी है कि राज्य सरकारों को ये अधिकार दिया गया है कि वो अपने यहां किस वैक्सीन का प्रयोग करना चाहते हैं.


दिल्ली में केंद्रीय अस्पतालों में कोवैक्सीन और राज्य के अस्पतालों में कोविशील्ड के प्रयोग के फैसले के पीछे की राज की बात क्या है अब आपको हम वो बताते हैं


दरअसल कोविशील्ड का ट्रायल इफीसियेंसी लेवल तक हो गया था लेकिन कोवैक्सीन का थर्ड स्टेज ट्रायल नहीं हो पाया था. ये माना जा रहा था कि कोविशील्ड वैक्सीन, कोवैक्सीन के मुकाबले ज्यादा असरदार और सुरक्षित है. जहां कोविशील्ड को लगवाने के बाद आधे घंटे का ऑब्जर्वेशन होता है वहीं कोवैक्सीन लगवाने के बाद का ऑब्जरवेशन पीरियड 7 दिनों का है और जो एक फॉर्म भरना पड़ता है सो अलग. यानि के भरोसे के स्तर पर कोविशील्ड को ज्यादा पुख्ता माना जा रहा था.


इसीलिए, आम आदमी पार्टी ने ये सोचा था कि चूंकि कोवैक्सीन विश्वसनीयता और सुरक्षा के पैमाने पर कमजोर है और एम्स में उसे ही प्रयोग में लाया जा रहा है लिहाजा पीएम वैक्सिनेशन नहीं करवाएंगे या कोई वैक्सीन लगवायेंगे तो इसे ही मुद्दा बना दिया जाएगा. लेकिन पीएम एम्स पहुंचे भी, वैक्सीन भी लगवाई और वैक्सीन वाले ट्रैप को टांय टाय फुस कर दिया. वैसे आप और कांग्रेस की तरफ से पीएम के खुद वैक्सीन न लेने पर पीएम के कोवैक्सीन लगवाने के बाद केवल सियासी ट्रैप ही नहीं टूटा बल्कि डर वाला ट्रैप भी टूट गया.


पीएम के वैक्सीन लगवाते ही भरोसा की डोरी मजबूत हुई और जो लोग डर कर वैक्सीन से भाग रहे थे वो डिमांड करके कोविशील्ड की जगह कोवैक्सीन लगवा रहे हैं. मतलब ये कि मोदी के जादू को वैक्सिनेशन के नाम पर कम करने की विपक्ष की रणनीति तो औंधे मुंह हुई थी. वैक्सिनेशन की रफ्तार में भी तेजी आ गई है. अब वैक्सीन लगवाने वालों का आंकड़ा रोज़ाना १० लाख के क़रीब पहुँच रहा है. तो पीएम की वैक्सिनेशन की तस्वीरों ने एक बाऱ फिर से ये साबित कर दिया है कि देश में अभी भी भरोसे का दूसरा नाम पीएम नरेंद्र मोदी हैं और यही वजह है कि विपक्ष की हर सियासी बाजी हमेशा उल्टी पड़ती है.


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