राज की बात: शाहीन बाग पर धरना और फिर किसानों का आंदोलन, दोनों की है क्रोनोलोजी एक, जानें कैसे
किसान नेताओं को दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर बैठे बिठाए समर्थन मिल रहा था वो अब देश भर में घूम रहे हैं. आंदोलन को सियासी अभियान में तब्दील कर चुके हैं.
कृषि कानूनों के खिलाफ दिनों और तारीखों का सैकड़ा मार चुका किसान आंदोलन का रूप और रंग अब तेजी से बदल रहा है. आंदोलन के बदलते स्वरूप के साथ सरकार से बातचीत के रास्ते भी रुके तो जनता की सहानुभूति भी मिलनी बंद हो गई. अब हालात ये हैं कि जिन किसान नेताओं को दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर बैठे बिठाए समर्थन मिल रहा था वो अब देश भर में घूम रहे हैं. आंदोलन को सियासी अभियान में तब्दील कर चुके हैं. बावजूद इसके तवज्जों के तकाजे पर तलवार चलती ही जा रही है.
आज हम आपको एक खास राज की बात बताने जा रहे हैं. राज की बात ये कि किसान आंदोलन की आड़ में अराजकता का आलम दिल्ली, दिल्लीवासियों और दिल्ली-यूपी बॉर्डर की कानून व्यवस्था के लिए खतरा बन चुका है. आंदोलन की आड़ में बॉर्डर पर कील लगाने का विरोध करने वाले पक्के बैरकनुमा घर तैयार कर रहे हैं. राज की बात ये है कि किसानों से सख्ती करके सुर्खियों में आने वाला प्रशासनिक तंत्र आंदोलन के नाम पर हो रही मनमानी पर मौन बैठा हुआ है. हालात खतरनाक हैं जिन्हें दरकिनार किया जाना आने वाले वक्त में बड़ी मुश्किलें पैदा कर सकता है.
आंदोलन के नाम पर लोग संकड़ों पर हैं
टिकरी बॉर्डर की सामने आयी तस्वीरें आंदोलन के नाम पर पब्लिक प्लेस पर पक्का निर्माण शुरु किया जा चुका है. इन्हें नहीं फर्क प़डता की आस-पास रहने वाले लोगों को इससे क्या दिक्कत होगी, इन्हें नहीं फर्क पड़ता कि इनका काम पूर्ण रूप से गैरकानूनी है. एमएसपी के नाम पर हायतौबा मचाने वाले लोग दिल्ली की सड़कों पर लाखों रुपए पानी की तरह बहा रहे हैं. आंदोलन के नाम पर जारी मनमानी के बीच टीकरी बॉर्डर पर जलजमाव की समस्या ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है.
टीकरी बॉर्डर पर पैसे पानी की तरह बहाए जा रहे हैं तो वहीं सिंघु बॉर्डर पर पानी की बोतलें, कप प्लेटों के कूड़े का पहाड़ खड़ा कर दिया गया है. और पानी की आपूर्ति को ज्यादा दिनों तक बनाए रखने के लिए बोरिंग करवा दी गई है जिसके लिए अलग नियम कानून हैं. मतलब ये कि मनमानी खुल कर जारी है और कानून व्यवस्था ठेंगे पर.
गाजीपुर बॉर्डर पर मनमानी और शानशाही के रिकॉर्ड तोड़े जा रहे हैं. सड़क को घेर कर शानदार टेंट लगा लिए गए. एसी लग गया और हर सुख सुविधा को देने वाले इलेक्ट्रानिक उपकरण. आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि क्या किसानों ने अपने अवैध निर्माण पर बिजली का कनेक्शन ले लिया. तो जवाब है कि कनेक्शन नहीं बल्कि दिनदहाड़डे बिजली की चोरी की जा रही है.
मतलब ये कि किसानों का आंदोलन अब लड़ाई से आगे निकलकर आफत का सबब बन चुका है. किसान नेताओं ने इस अराजकता को मौन सहमति दे रखी है और जिन पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है वो मौन हैं. सवाल सीधा सा है कि जिन्हें कृषि कानून में खामियां ही खामियां नजर आती हैं क्या उन्हें ये नहीं पता कि सार्वजनिक स्थान पर किसी भी तरह का निर्माण करना गैरकानूनी है. सवाल सीधा सा है कि जो आंदोलन के लिए दिल्ली के बॉर्डर पर आए है वो आखिर किस लिए पक्के निर्माण में लगे हुए हैं, आखिर इस हरकत के पीछे नीयत क्या है.
आंदोलन के नाम पर हो रही मनमानी
इस पूरे मामले में एक राज की बात और है. राज की बात ये कि दिल्ली में चुनाव से पहले शाहीन बाग की सड़कों पर कब्जा किया गया और आंदोलन के नेता बीजेपी के खिलाफ बिगुल फूंकने के लिए उतर गए. ठीक उसी तरह दिल्ली के अलग अलग बॉर्डर पर कब्जा करके बैठे किसान नेताओं ने चुनाव आते ही चुनावी राज्यों में कूच कर दिया. मतलब साफ है कि आंदोलन के नाम पर मनमानी का किला गढ़ने वाले दोनों आंदोलन की क्रोनोलाजी एक है. लेकिन सवाल केवल आंदोलन के नाम पर हो रही मनमानी पर ही नहीं. सवाल इन मनमानियों को रोकने वालों पर भी है. सवाल उन किसानों पर भी है जो आंदोलन तो मुफलिसी के नाम पर कर रहे हैं. लेकिन उनकी व्यवस्था दिल्ली की चकाचौध को भी शर्मिंदा कर रही है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि दिल्ली की सीमाओ पर जिनका जमघट लगा है वो क्या किसान ही हैं. या फिर किसानों के रूप मे राजनीतिक रार की एक पटकथा लिख दी गई जिसमें कानून को तोड़ने वाले किसान जैसे दिखने लगे हैं.