राज की बात: अफगानिस्तान संकट का भारतीय सिनेमा पर असर, कई फिल्मों की शूटिंग की लोकेशन को पड़ रहा बदलना
अफगानिस्तान संकट का भारीतय सिनेमा पर भी खास असर पड़ा है. अफगानिस्तान में शूट की जानी फिल्मों को लोकेशन बदलनी पड़ रही है.
काबुल में गरजती तोपों, फटते बम और गोलियों की बारिश ने भारतीय सिनेमा के रुपहले परदे को भी जख्मी किया है आप सोच रहे होंगे कि वहां चली गोली बालीवुड तक कैसे पहुंची? तो आपको बता दें कि बालीवुड के दो सुपरस्टार खान की फिल्में “टाइगर” और ”पठान” के साथ-साथ बॉलीवुड के सबसे बड़े देशभक्त कहे जाने वाले सुपरस्टार को भी अफगानिस्तान में शूट करने का सपना वहां चल रही असली शूटिंग के चलते छोड़ना पड़ा.
बारुद के ढेर पर बैठे अफगानिस्तान के एक दर्जन से ज्यादा फिल्मों को अपना शूटिंग का कार्यक्रम और स्थान बपदलना पड़ रहा है. राज की बात में इस जानकारी के साथ आपको बताएंगे. अफगानिस्तान और भारतीय सिनेमा के बीच पुराना रिश्ता भी.
बड़े बजट की फिल्में भी थीं
राज की बात ये है कि कोरोना के कहर के चलते जिस तरह से दुनिया के तमाम देशों में तमाम प्रतिबंध हैं, उसकी तुलना में अफगानिस्तान जैसे मुल्क में इतनी बंदिशें न होतीं. साथ ही अफगानिस्तान दुनिया के तमाम अन्य मुल्कों की तुलना में बहुत ज्यादा परदे पर दिखा भी नहीं है. इसके अलावा खर्च से लेकर स्टोरी की थीम तक निर्माता-निर्देशकों की नजर में यह इलाका चढ़ रहा था कि तब तक ये तालिबान आ गया और सिनेमा जगत का रुपहला परदा एक बार फिर से अफगानिस्तान की वादियों को दिखाने से महरूम रह गया.
राज की बात ये है कि लगभग 15 फिल्मों की शूटिंग अफगानिस्तान की विभिन्न लोकेशन पर प्रस्तावित थीं. सूचना प्रसारण मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के साथ इन फिल्मों की शूटिंग के लिए संवाद चल रहा था. इनमें बड़े बजट की फिल्में भी थीं, जिनमें सलमान की टाइगर श्रंखला की तीसरी फिल्म और शाहरुख खान की बहुचर्चित और प्रतीक्षित फिल्म पठान की शूटिंग भी होनी थी. इसके साथ ही भारतीय फिल्मों में सबसे देशभक्त के रूप में उभर चुके एक और सुपरस्टार अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म की भी शूटिंग शामिल है. यह बात अलग है कि अब इन सभी फिल्मों के मेकर्स औपचारिक रूप से इससे इनकार कर रहे हैं, लेकिन वे मान रहे हैं कि लोकेशन को लेकर रेकी हो चुकी थी और वे काफी थ्रिल्ड भी थे.
धर्मात्मा की शूटिंग अफगानिस्तान में हुई थी
दरअसल, अफगानिस्तान और भारत का सांस्कृतिक रिश्ता बेहद पुराना है. भारतीय फिल्मों में अफगानी करेक्टर अक्सर देखे गए हैं. गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर की कहानी काबुलीवाला पर तो फिल्म बनी ही थी. इसके अलावा अहमद शाह मसूद, दोस्त खान और दोस्तम खान जैसी अफगानी हस्तियों से भारत के पारंपरिक और सांस्कृतिक रिश्ते सबको पता ही हैं. 1978 में पहली भारतीय फिल्म धर्मात्मा की शूटिंग अफगानिस्तान के बामियान इलाके में हुई थी. फिरोज खान और हेमामालिनी जैसे सितारों से सजी इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर धमाल किया था.
इतना ही नहीं 1991 में जब नजीबुल्ला के हाथ में अफगानिस्तान की कमान थी तो मेगास्टार अमिताभ बच्चन और रुपहले परदे की सबसे बड़ी नायिकाओं में से एक श्रीदेवी अभिनीत फिल्म खुदागवाह की भी यहां शूटिंग हुई थी. खास बात है कि तब अमिताभ और श्रीदेवी अफगानिस्तान के स्टेटगेस्ट थे और वहां राष्ट्रपति भवन में उनके रुकने की व्यवस्था हुई थी. इसके अलावा अभी हाल के दिनों में काबुल एक्सप्रेस, एस्केप टू तालिबान जैसी फिल्मों की शूटिंग भी अफगानिस्तान में हुई थी.
भारतीय कलाकार अफगानिस्तान में खासी लोकप्रिय है
राज की बात ये है कि भारत जिस तरह से वहां निवेश कर रहा था. उस निवेश में भारतीय नीतिनियंताओं को लग रहा था की सांस्कृतिक भागीदारी और संबंध इसमें सबसे ज्यादा भूमिका निभा सकते हैं. भारतीय कलाकर और फिल्में अफगानिस्तान में खासी लोकप्रिय हैं. सलमान और शाहरुख को लेकर तो दीवानगी का आलम भी रहा है. वहीं बालीवुड के लिए भी अफगानिस्तान न सिर्फ सस्ता और नजदीक पड़ता, बल्कि उसकी लोकेशंस भी फिल्म और थीम के लिहाज से बेहद सटीक थीं. खासतौर से वारजोन वाले थ्रिलर के लिए अफगानिस्तान की बामियान से लेकर पंजशीर वैली तक बेहद मुफीद बैठती. .
बहरहाल.. भारतीय सिनेमा के जरिये अफगानिस्तान से संबंधों को नई ऊंचाई देने की कवायदों को फिलहाल तालिबानी उद्भव ने रोक कर रख दिया है. वरना वो पंजशीर वैसी जिसे इज्राएल का दर्जा दिया जाता है और जो कभी हारा नहीं. अहमद शाह मसूद का बेटा अहमद मसूद अभी भी तालिबानियों के दांत खट्टे कर रह है. उस पंजशीर यानी पांच पहाड़ियों के बीच छिपी घाटी के अनोखे दृश्य और कुछ नए स्टंट देखने को जो मिल सकते थे, भारतीय सिनेमा प्रेमियों को उससे महरूम रहना पड़ेगा.
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