नई दिल्लीः कोरोना के कहर ने देश में जो मौत का मंजर गढ़ा उससे पूरा देश दहल गया. शहर के शहर परेशान हो गए. संक्रमण के साए में फंसे सूबों की सांसें बिना ऑक्सीजन के घुट कर रह गई और अकाल मौत का आकड़ों नें देश के श्मशान और कब्रस्तानों में भी शवों की लाइन लगा कर रख दी. हालात इतनी तेजी से बिगड़े कि संसाधन, संक्रमण के आंकड़ों के सामने बौने पड़ गए.


खासतौर से दूसरी लहर के कहर ने आवाम में दर्द और दहशत का ऐसा बीज बोया कि वो अब सिस्टम और सरकार के खिलाफ गुस्से के तौर फूट कर उभर रहा है. जिन्होंने अपनों को खोया वो नाराज हैं, जो अपनों को अस्पताल दर अस्पताल लेकर भटके वो नाराज हैं, जिन्हें बेहतर इलाज नहीं मिला वो नाराज हैं और इन सबके बीच आने वाला साल चुनावी है लिहाजा केंद्र सरकार से ज्यादा संघ परिवार की टेंशन बढ़ गई है.


संघ परिवार की चिंता मौजूदा हालात में राजनीतिक और सामाजिक रूप से जिस तरह माहौल बदला है, उसको लेकर थी. जाहिर है लोकसभा चुनाव से पहले यूपी समेत 16 राज्यों में चुनाव होने हैं, उससे पहले जनता का भरोसा जीतना और उनकी शिकायतों के समाधान का उपाय ढूढ़ना प्रमुख है.


आज राज की बात में हम आपको बताने जा रहे है कि जनता की नाराजगी को थामने के लिए आखिर कौन सा प्लान देश के सत्ताधारी दल के लिए संघ ने बनाया है.  आज राज की बात में हम आपको बताएंगे कि गुस्से के गुबार में फंस कर रह जाने से बचाने के लिए बीजेपी की लिए क्या प्लान तैयार किया है. संघ परिवार को पूरा भरोसा है कि ब्रांड मोदी की छवि के साथ कुछ कदम उठाकर इससे पार पाया जा सकता है. इसीलिए पीएम मोदी के साथ परिवार और मुखर और प्रखर रूप में न सिर्फ खड़ा रहेगा, बल्कि जनता की शिकायतों के समाधान के लिए अपनी तरफ से पूरी ताकत भी लगाएगा.


तो राज की बात ये है कि भारतीय जनता पार्टी को कोरोनाजनित मुसीबत से उबारने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ औऱ उनके आनुषांगिक संगठनों बीड़ा उठा लिया है. राज की बात ये है कि संघ की चिंतन बैठक में ये तय किया गया है कि 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव और आगे आने वाले चुनावी चुनौतियों को साधने में संघ जनसंपर्क के साथ ही साथ सत्ताविरोधी गुस्से को थामने के लिए ढाल की भूमिका निभाएगा.


राज की बात ये है कि आगामी चुनावों में बीजेपी को कोरोना में अपनों को खो चुके लोगों के गुस्से से बचाने और सत्ता तक पहुंचाने के लिए तीन सूत्रीय रणनीति तैयार की गई है. उन्हीं रणनीतियों को हम आपको आज राज की बात में बताने जा रहे हैं.


बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए संघ की पहली रणनीति ये है कि जनसंपर्क की कमान सबसे पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ संभालेगा. इसकी वजह ये है कि जनता गुस्से में है और संघ के पदाधिकारी उसी गुस्से के तापमान को कम करने की कोशिश करेंगे. इस रणनीति में यह स्पष्ट किया गया है कि सरकार के मंत्री, सांसद, विधायक फिलहाल जनता के बीच नहीं भेजे जाएंगे. क्योंकि इन लोगों के जनता के बीच जाने से गुस्सा बढेगा और हो सकता है कि कहीं हालात बिगड़ जाएं...और किसी जनप्रतिनिधि ने आपा खो दिया तो सियासी तौर पर मामला और बिगड़ जाएगा. जबकि वहीं आरएसएस और इनके आनुषांगिक संगठन  के लोगों को जनता से कनेक्ट होना अच्छे से आता है और वो गुस्से के गुबार को झेलकर थोड़ा कम कर पाएंगे.


एक तरफ संघ जनता के गुस्से को कम करने की कोशिश करेगा, हर पीड़ित परिवार तक पहुंचने की कोशिश करेगा तो वहीं दूसरी रणनीति के तहत जनप्रतिनिधियों को हर परिवार तक राहत और घोषित लाभ पहुंचाने की जिम्मेदारी होगी और पार्टी स्तर पर इसकी समीक्षा की जाएगी ताकि जनप्रतिनिधियों को प्रति शांत होते गुस्से के साथ लोगों का नजरिया थोड़ा बदले. दूसरी रणनीति के ही तहत जब पहले चरण में संघ के पदाधिकारी पीड़ितों तक पहुंच जाएंगे तब पाटी के नेताओं को जनता के बीच भेजा जाएगा.


इन सबके बीच ये किसी से नहीं छिपा की कोरोनाकाल में अधिकारियों की लापरवाही, बड़बोलेपन और आंकड़ेबाजी ने सरकार की मुसीबत कई गुना ज्यादा बढ़ा दी. तीसरी रणनीति इन्हीं अधिकारियो से जड़ी है. सबसे बड़ी राज की बात ये है कि लोगों को राहत पहुंचाने के मामले में अधिकारियों की आंकड़ेबाजी को राह में न आने देने का पूरा प्लान है. यानि कि राहत के कार्य में पूरी तरह से जनप्रतिनिधि लगे होंगे, उसमें अधिकारियों को दखलंदाजी से दूर रखा जाएगा.


राज की बात ये है कि संघ भी ब्रांड मोदी की प्रतिष्ठा को बहाल करने के तरीकों को ढूंढने के लिए अपना सर्वे करा रहा है. इसमें जनता की नाराजगी की टोह ली जा रही है. मसलन किन मुख्य मुद्दों पर नाराज़गी है. उन्हें दूर करने के लिए जनता की सरकार से क्या अपेक्षा है. इसके साथ संघ अपने स्वयंसेवकों को ज़मीन पर उतारकर देश भर में लोगों का मूड जानने का प्रयास कर रहा है. उसका आकलन भी है कि उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार में भी कई मंत्रियों का व्यवहार जनता के प्रति रूखा रहता है. वे अपने ही मतदाताओं से नहीं मिलते हैं, जबकि कुछ मंत्री स्वयं को अन्य मंत्रियों से ऊपर समझते है. कई मंत्री तो संघ के लोगों से भी मिलने की जहमत नहीं उठाते. यह समस्या खासकर कारोबारी मंत्रालयों से जुड़े मंत्रियों के साथ अधिक है. ऐसे में उनके व्यवहार में भी सरलता लाने की सलाह संघ देगा.


हालांकि जो रणनीति भाजपा के लिए बनाई गई है उससे संघ इनकार करता है. उसके सूत्रों का कहना है कि यह बैठक संघ के कार्यों की समीक्षा और आगे की कार्ययोजना को लेकर थी. लेकिन राज की बात यही है कि बीजेपी को सियासी वैतरणी से पार करने का प्लान बन चुका है. जाहिर तौर पर देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश संघ परिवार के रडार पर सबसे ऊपर है, लेकिन फ़ोकस राष्ट्रीय रहेगा. अब देखने वाली बात होगी कि संघ और अनुषांगिक संगठनों का जनसंपर्क बीजेपी की राह चुनाव में कितनी आसान कर पाता है.


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