राज ठाकरे ने एक उत्तर भारतीय को बनाया पार्टी का महासचिव, बदल रही है एमएनएस
पार्टी के महासचिव जैसे बड़े पद पर एक उत्तर भारतीय की नियुक्ति ने सभी को चौंकाया जरूर है, लेकिन ये इस बात की ओर भी इशारा करता है कि राज ठाकरे अब प्रांतवाद और भाषाई कट्टरता की सियासत से खुद को धीरे धीरे अलग कर रहे हैं.
मुंबई: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने वागीश सारस्वत को अपनी पार्टी का महासचिव बनाया है. वागीश सारस्वत उत्तर प्रदेश के अलीगढ में पले बढे हैं. सारस्वत की नियुकित पार्टी में हो रहे बदलाव की ओर इशारा करती है. एमएनएस का उत्तर भारतीयों के प्रति हिंसा का इतिहास रहा है. हाल ही में राज ठाकरे ने एलान किया था कि अब उनकी पार्टी हिंदुत्व का मुद्दा अपनाएगी. सारस्वत कि नियुकित भी उसी नजरिये से देखी जा रही है.
सोमवार को राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस का नवी मुंबई में अधिवेशन था, जहां बतौर महासचिव वागीश सारस्वत के नाम का एलान हुआ. वागीश सारस्वत अब तक पार्टी के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता रहे हैं. 1996 में जब राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर अपनी पार्टी की स्थापना की थी, तबसे वे उनसे जुडे हुए हैं. राजनीति में आने से पहले वे हिंदी अखबार नवभारत में शिवसेना की बीट कवर किया करते थे. राज ठाकरे ने जब 2008 में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसक आंदोलन शुरू किया तब भी वे ठाकरे के साथ रहे.
पार्टी के महासचिव जैसे बड़े पद पर एक उत्तर भारतीय की नियुक्ति ने सभी को चौंकाया जरूर है, लेकिन ये इस बात की ओर भी इशारा करता है कि राज ठाकरे अब प्रांतवाद और भाषाई कट्टरता की सियासत से खुद को धीरे धीरे अलग कर रहे हैं. इसी साल 23 जनवरी को पार्टी के एक अधिवेशन में उन्होने एमएनएस के नये झंडे का विमोचन किया. पार्टी का पुराना झंडा चौरंगा था, जिसे कि सोशल इंजीनियरिंग के मद्देनजर अपनाया गया था, लेकिन नया झंडा पूरी तरह से भगवा रंग का है, जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज की राजमुद्रा अंकित है. अपना झंडा बदलने के साथ ही ठाकरे ने पार्टी के भगवाकरण का भी ऐलान किया और कहा कि उनकी पार्टी अब हिंदुत्व के लिए लड़ेगी.
दरअसल ठाकरे को मराठी का मुद्दा उठाकर कोई फायदा नहीं मिल रहा था. 2014 में और 2019 में उनकी पार्टी सिर्फ एक सीट ही जीत सकी. ऐसे में 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना ने जब बीजेपी को छोडकर कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के लिए हिंदुत्व के मुद्दे को दरकिनार किया, तो राज ठाकरे को अपनी पार्टी पुनर्जीवित करने का एक मौका नजर आया. सियासी हलकों में चर्चा है कि आगे चलकर हिंदुत्व के मुद्दे पर एमएनएस, बीजेपी के साथ भी हाथ मिला सकती है.
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