Rajasthan Assembly Election 2023: पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए बीजेपी एक नए फॉर्मूले पर काम कर रही है. इस कड़ी में उसने इस बार अपने कई सांसदों व केंद्रीय मंत्रियों को भी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उतारा है. सबसे पहले यह फॉर्मूला मध्य प्रदेश में लागू किया गया. अब राजस्थान और तेलंगाना में भी ऐसा ही किया गया है. पार्टी ने सबसे ज्यादा सांसद राजस्थान में ही उतारे हैं.


बीजेपी की ओर से 9 अक्टूबर को राजस्थान के लिए जारी की गई 41 उम्मीदवारों की पहली सूची में सात सांसदों के भी नाम थे. इनमें से छह लोकसभा से और एक राज्यसभा क सांसद हैं. इसके अलावा पार्टी ने एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी को भी टिकट दिया है. लिस्ट आने के बाद बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर किन वजहों से बीजेपी अपने इतने सांसदों को विधायक चुनाव के लिए उतार रही है. आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही कारण जिनकी वजह से पार्टी को यह फैसला करना पड़ा है.


1. पिछले चुनाव में खराब प्रदर्शन


बीजेपी ने जिन 41 सीटों के लिए उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की है, उन पर 2018 में हुए चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन काफी खराब रहा था. इन 41 में से सिर्फ 1 सीट ही बीजेपी जीत पाई थी. जिस सीट पर पार्टी जीती थी वो विद्याधर नगर थी. यहां से पार्टी के नरपत सिंह राजवी विधायक बने थे. नरपत सिंह राजवी पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के दामाद हैं.


2. ज्यादा सीटें जीतने पर फोकस


भाजपा का पूरा फोकस ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर है. इसलिए पार्टी नए चेहरों को लेकर आई है. राजस्थान में 200 विधानसभा और 25 लोकसभा सीटें हैं. संख्या के हिसाब से देखें तो प्रत्येक सांसद का आठ विधानसभा सीटों पर प्रभाव है यानी एक संसदीय क्षेत्र में करीब 8 सीटें आ रही हैं. ऐसे में पार्टी उम्मीद कर रही है कि सात सांसदों को विधायक का टिकट देकर वह कम से कम 56 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है. चर्चा है कि अभी कुछ और सांसदों को मैदान में उतारा जा सकता है.  


3. अगले लोकसभा चुनाव पर भी नजर


इस साल विधानसभा चुनाव के बाद अगले साल लोकसभा चुनाव भी होने हैं. ऐसे में इन नतीजों का असर आगामी लोकसभा चुनाव के परिणामों पर भी पड़ सकता है. पार्टी पहले ही पंजाब, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में हार का सामना कर चुकी है. अब बड़े इम्तिहान से पहले बीजेपी इनमें से किसी भी स्टेट को हारना नहीं चाहती.


4. सांसदों की लोकप्रियता की परीक्षा


सांसदों को विधायक का टिकट देने के पीछे उनकी लोकप्रियता की परीक्षा लेना भी एक वजह है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि यह चुनाव किसी सांसद की अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोकप्रियता निर्धारित करने में भी मदद करेंगे. यदि पार्टी किसी सांसद के निर्वाचन क्षेत्र में कोई भी सीट हार जाती है, तो आलाकमान उस नेता के भविष्य पर फिर से विचार कर सकता है.


5. मोदी फैक्टर से अलग पर काम


भारतीय जनता पार्टी के सीनियर लीडर जानते हैं कि अभी तक केंद्र से बाहर राज्य चुनाव में भी पार्टी को मोदी फैक्टर का बहुत फायदा मिला है, लेकिन धीरे-धीरे कई राज्यों में मोदी फैक्टर का असर कम होता दिखा है और ऐसे राज्यों में बीजेपी को हार भी मिली है. अब पार्टी मोदी फैक्टर से अलग लोकल लेवल पर भी पॉपुलर नेता खड़ा करना चाहती है. ये भी एक वजह है कि भाजपा ने इस बार किसी भी राज्य में सीएम फेस का ऐलान नहीं किया है. उसने कई बड़े स्थानीय नेताओं को टिकट दिया है, जिससे लास्ट तक लोगों में सस्पेंस बना रहे कि आखिर कौन सीएम होगा.


6. मौजूदा राज्य सरकार के खिलाफ विरोधी लहर


राजस्थान में अभी तक हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है. अगर इस हिसाब से देखें तो कांग्रेस के लिए सत्ता को बचाए रखना आसान नहीं है. ऐसे में बीजेपी सांसदों को चुनावी मैदान में उतार रही है ताकि ये लोग केंद्र सरकार का गुणगान और अपनी पॉपुलैरिटी का फायदा उठाते हुए विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब रहें.


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