राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई संगठन से आगे बढ़कर अब सीधे सत्ता संग्राम तक पहुंच गई है. सचिन पायलट ने इस बात को स्वीकार भी कर लिया है कि उनकी यह लड़ाई संगठन के साथ नहीं, बल्कि गहलोत की सत्ता के खिलाफ है.
दरअसल राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट आर-पार के मूड में आ गए हैं. उन्होंने बीते मंगलवार यानी 12 अप्रैल को जयपुर में एक दिन का अनशन किया. अपने अनशन के साथ ही उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के शासन में हुए घोटालों की जांच कराने की भी मांग की. हकीकत ये है कि उन्होंने सूबे के मुख्यमंत्री गहलोत के साथ अपने पुराने विवाद को एक बार फिर से ताजा कर दिया.
मुश्किल से राज्य में 8 महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में सचिन पायलट के बगावती तेवर के साथ ही टू पार्टी स्टेट कहे जाने वाले राजस्थान में 'थर्ड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे' की चर्चाएं छेड़ दी है.
वहीं तीसरे मोर्चे की चर्चा ने न सिर्फ कांग्रेस को बल्कि राज्य की दूसरी बड़ी पार्टी बीजेपी को भी चिंता में डाल दिया है. दरअसल दोनों पार्टियों को डर है कि अगर सचिन बगावती तेवर अपनाते हुए तीसरे मोर्चे में शामिल होते हैं तो इसका सीधा असर आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के वोट प्रतिशत पर पड़ेगा.
तीसरा मोर्चे की चर्चा क्यों
साल 2023 में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव में अगर तीसरा मोर्चा बनता है तो राजस्थान की राजनीति में बेहद अहम रोल अदा करेगा. तीसरा मोर्चा बनाने की तैयारी की खबर को राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) प्रमुख हनुमान बेनीवाल ने हवा दी है. दरअसल पिछले दिनों हनुमान बेनीवाल सचिन पायलट को अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दे दिया था.
दरअसल अपनी पार्टी के खिलाफ अनशन से राजस्थान की राजनीति गरमा गई है. इस बीच राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के प्रमुख हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को कांग्रेस का साथ छोड़ने की सलाह दी है. रालोप प्रमुख बेनीवाल ने कहा, 'सचिन पायलट के लिए अब कांग्रेस में कुछ नहीं बचा है. पार्टी पर उनके अनशन से किसी तरह का असर नहीं पड़ेगा.
हनुमान बेनीवाल आगे कहते हैं कि पायलट को अब बिना समय खराब किए कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बना लेनी चाहिए. उन्होंने यहां तक प्रस्ताव दे दिया कि अगर पायलट कांग्रेस छोड़ नई पार्टी बनाने का फैसला लेते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव में वह सचिन के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे.
बेनीवाल ने कहा, 'पूर्व उपमुख्यमंत्री अब किसी पर कितने भी आरोप लगाएं कुछ होने वाला नहीं है'. बेनीवाल ने ये भी दावा किया कि अनशन पर बैठ सचिन पायलट उनकी काफी दिनों से बैठकर बात तो नहीं हुई. लेकिन टेलीफोन पर बातचीत होती रहती है.
तीसरा मोर्चा बना तो कौन-कौन शामिल हो सकता है?
कल यानी 12 अप्रैल को 'आप' पार्टी के राजस्थान प्रभारी विनय मिश्रा ने पायलट के अनशन का समर्थन किया. इस समर्थन के साथ ही सियासी गलियारे में चर्चा होने लगी कि पायलट कांग्रेस का साथ छोड़ आने वाले विधानसभा चुनाव में आप के साथ मिल सकते हैं.
वहीं दूसरी तरफ आएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल, जिन्होंने सचिन पायलट को कांग्रेस छोड़ अपनी पार्टी बनाने की सलाह दी थी, उनकी मार्च महीने में अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ तस्वीरें सामने आईं थीं. दरअसल आम आदमी पार्टी ने बीते मार्च में राजस्थान में बड़ी सभा का आयोजन किया था. ऐसे में उनकी तस्वीरें हनुमान बेनीवाल के साथ आना भविष्य के नए गठबंधन के तौर पर देखा जा रहा है. कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर तीसरा मोर्चा बनता है तो उसमें सचिन पायलट, आम आदमी पार्टी और आरएलपी साथ हो सकते हैं.
वहीं निर्दलीय पार्टी के तौर पर राजस्थान में इस बार आप, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी), भारतीय ट्राइबल पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और एआईएमआईएम जैसी पार्टियां चुनाव लड़कर अलग-अलग क्षेत्र से सीटें जीतने की कोशिश करेंगी.
तीसरा मोर्चा कितने सीटों पर असरदार?
अगर राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सचिन पायलट आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, भारतीय ट्राइबल पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और AIMIM जैसी पार्टियां के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तो ये मोर्चा लगभग 75 सीटों को प्रभावित कर सकता है. इसे विस्तार से समझिए...
1. सचिन पायलट- सचिन पायलट की पूर्वी और मध्य राजस्थान में मजबूत पकड़ है. पूर्वी राजस्थान में 8 जिले दौसा, करौली, भरतपुर, टोंक, जयपुर, अलवर, सवाई माधोपुर और धौलपुर में विधानसभा की कुल 58 सीटें हैं. इन 58 सीटों में से 15 तो गुर्जर बाहुल्य सीटें हैं. वहीं 20 ऐसी सीटें हैं जहां गुर्जर समुदाय के वोटर दूसरे या तीसरे स्थान पर हैं. कुछ सीटों पर तो मुस्लिम और गुर्जर समुदाय काफी प्रभावी हैं और सचिन पायलट की इनपर अच्छी पकड़ रखते हैं.
साल 2013 में बीजेपी ने इन 58 में से 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी. हालांकि साल 2018 में पायलट ने गणित बदलते हुए बीजेपी को 11 सीटों पर सिमटा दिया था. वहीं मानेसर में जो 20 विधायक गए थे उनमें से अधिकांश विधायक पूर्वी राजस्थान के थे.
राजस्थान में चल रही अंदरूनी लड़ाई से नाराज होकर पायलट अगर अपना अलग खेमा बनाते हैं तो इसका सीधा नुकसान बीजेपी और कांग्रेस को होगा. हालांकि बीजेपी से ज्यादा असर कांग्रेस पर ही देखने को मिलेगा.
2. आम आदमी पार्टी: अगर राजस्थान में तीसरे मोर्चे का गठबंधन होता है और आम आदमी पार्टी उसमें शामिल होती है तो आप पार्टी राज्य में पंजाब से सटे इलाके और ब्राह्मण-वैश्य प्रभाव वाली सीटों पर जनता को लुभाने की कोशिश कर सकती है. आप ने लगातार कांग्रेस और बीजेपी के शासन पर सवाल उठाया है. ऐसे में आम आदमी पार्टी का निशाना उन सीटों और प्रत्याशियों पर होगा जो निर्दलीय चुनाव जीतते हैं. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इसके बूते पार्टी 10 से 15 सीटों पर फोकस करेगी.
3. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी: इस पार्टी ने साल 2018 के हुए विधानसभा में तीन सीटें अपने नाम की थीं. इस पार्टी की हर बीतते साल के साथ राज्य में पकड़ मजबूत हो रही है. साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में आरएलपी ने बीजेपी के साथ गठबंधन करके नागौर से हनुमान बेनीवाल सांसद भी बने. आरएलपी के साथ सचिन का गठबंधन कांग्रेस और बीजेपी के वोट प्रतिशत को कम कर सकता है क्योंकि राजस्थान में हुए उपचुनावों में आरएलपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था.
75 सीटों को प्रभावित कर सकता है तीसरा मोर्चा
कुल मिलाकर अगर राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद तीसरा मोर्चा बनता है तो लगभग 75 सीटें प्रभावित हो सकती है. अगर ये पार्टियां एकजुट होकर मैदान में उतरती हैं तो इन 75 सीटों पर जीत भी दर्ज कर सकती है. वहीं तीसरे मोर्चे के गठबंधन से दोनों ही पार्टी यानी कांग्रेस और बीजेपी को 75 सीटों पर नुकसान पहुंच सकता है.
राजस्थान क्यों कहलाता है टू स्टेट पार्टी
राजस्थान में साल 1980 से पहले सिर्फ कांग्रेस की ही सरकार थी. उसके बाद इस राज्य में कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस की सरकार सत्ता में आती रही. साल 1998 से लेकर साल 2018 तक इस राज्य में केवल दो ही मुख्यमंत्री रहे हैं. यही कारण है कि अगर तीसरा मोर्चा बनता है जो राज्य की जनता एक मौका उन्हें भी जरूर देना चाहेगी. राजस्थान में तीसरे मोर्चे की सरकार तो अब तक नहीं बन पाई लेकिन चुनावों में निर्दलीय पार्टियों अच्छा प्रदर्शन करती आई है.
सचिन पायलट ने अचानक अपनी सरकार ही को कटघरे में क्यों ला खड़ा किया?
बता दें कि राज्य में आने वाले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस बीच एक तरफ जहां उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट अपनी वजूद के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना ताना-बाना बुनते हुए राजस्थान में योजनाओं के माध्यम से अपने वर्चस्व को जमाने की कोशिश की है. यही सब सोचकर सचिन पायलट ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ अनशन किया. अनशन कर उन्होंने उस मुद्दे को उन्होंने सामने खड़ा किया जो कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समय घोटाले का है.
अशोक गहलोत ने इस मामले को खुद ही उठाते हुए ये कहा था कि वे इसकी जांच कराएंगे. लेकिन जैसे ही सत्ता उनके हाथ में आई वे ये बात भूल गए. सचिन पायलट का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री गहलोत को 2 पत्र भी लिखे. लेकिन, पत्र लिखने के बाद जब जवाब नहीं आया तो फिर पायलट को लगा कि इस मुद्दे को सामने लाना चाहिए. क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान जब जनता उनसे अपने वादों को लेकर जवाब मांगेगी तो उनके पास कहने को कुछ नहीं होगा.
वहीं 12 अप्रैल को अनशन पर बैठे सचिन पायलट ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा कि वे कांग्रेस छोड़ना चाहते हैं या फिर कांग्रेस से नाराज हैं. उन्होंने बस इतना कहा कि वे चाहते हैं कि उस मुद्दे को जो उन दोनों ने उठाए थे, पहली कैबिनेट की बैठक में जन घोषणा पत्र को दोनों ने सरकारी दस्तावेज के तौर पर शामिल किया था, उसी की जांच कराना चाहते हैं.