राजस्थान: सीएम गहलोत के बड़े भाई ईडी के सामने नहीं हुए उपस्थित, अब चार अगस्त को पेश होने के मिले निर्देश
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बड़े भाई अग्रसेन गहलोत स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए प्रर्वतन निदेशालय (ईडी) के समक्ष उपस्थित नहीं हुए. उनसे धन शोधन के एक मामले में पूछताछ की जानी है.
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नई दिल्ली: राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बड़े भाई अग्रसेन गहलोत धन शोधन के एक मामले में पूछताछ के लिये बुधवार को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए प्रर्वतन निदेशालय (ईडी) के समक्ष उपस्थित नहीं हुए. अधिकारियों ने यह जानकारी दी.
हालांकि, उनके बेटे अनुपम गहलोत दिल्ली स्थित ईडी कार्यालय पहुंचे और उनसे, परिवार के प्रवर्तित उर्वरक कंपनी अनुपम कृषि के साथ उनके कारोबारी संबंध के बारे में पूछताछ की गई. अधिकारियों ने बताया कि जांच एजेंसी ने उर्वरक के निर्यात में कथित वित्तीय अनियमितता से जुड़े धन शोधन के मामले के सिलिसले में उनके पिता (अग्रसेन गहलोत) को चार अगस्त को पेश होने के लिये एक नया समन भी सौंपा.
स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए नहीं हुए उपस्थित
ईडी ने अग्रसेन को धन शोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) के तहत दिल्ली में बुधवार को मामले के जांच अधिकारी के समक्ष बयान दर्ज कराने को कहा था. अधिकारियों ने बताया कि अग्रसेन ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया और कुछ समय के लिये सम्मन को स्थगित किये जाने की मांग की.
उल्लेखनीय है कि 22 जुलाई को केंद्रीय एजेंसी ने अग्रसेन के जोधपुर स्थित परिसरों और कुछ अन्य स्थानों पर छापे मारे थे. यह कार्रवाई पीएमएलए के तहत आपराधिक आरोपों में दर्ज मामले के सिलसिले में की गई थी. अधिकारियों ने बताया कि एजेंसी के अधिकारियों ने छापेमारी के दौरान कई दस्तावेज बरामद किये. साथ ही अग्रसेन से इस बारे में उनके उर्वरक कारोबार व उनके सहयोगियों के बारे में पूछताछ किये जाने की जरूरत है.
गहलोत की कंपनी पर 35,000 टन एमओपी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने का आरोप है
मामले में संलिप्त कुछ अन्य लोगों को भी जांच एजेंसी ने इस हफ्ते तलब किया है. जांच एजेंसी ने पुलिस प्राथमिकी के समकक्ष मानी जाने वाली अपनी प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) दाखिल किये जाने पर छापेमारी की कार्रवाई की थी. यह 2007-09 में किसानों को रियायती मूरियेट ऑफ पोटाश (एमओपी) देने में कथित अनियमितताओं को लेकर सीमा शुल्क विभाग के मामले से संबद्ध है. इस मामले की जांच 2013 में पूरी हुई थी.
यह आरोप है कि गहलोत की कंपनी ने 35,000 टन एमओपी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच दिया, जिसका मूल्य 130 करोड़ रुपये है.
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