Rajasthan Congress Crisis: कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के बहाने राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत एक बार फिर एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हो गए. पायलट को सीएम बनता देख गहलोत ने शक्ति प्रदर्शन किया और बताया कि उनका कद अब भी बड़ा है. इसका नतीजा ये रहा कि गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष की रेस से बाहर हो गए और सोनिया से माफी भी मांगनी पड़ी. इसके बाद अब राजस्थान पर सभी की निगाहें टिकी हैं, सवाल ये है कि गहलोत सीएम बने रहेंगे या फिर पायलट को राजस्थान की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी. कुल मिलाकर राजस्थान में असली पिक्चर अभी बाकी है.
गहलोत की ताकत और आलाकमान का फैसला
अब राजस्थान में दो चीजों पर गौर करना जरूरी होगा. पहला ये कि कांग्रेस आलाकमान गहलोत को लेकर क्या फैसला ले सकता है और दूसरा ये कि अगर उनके खिलाफ फैसला लिया गया तो क्या होगा. अशोक गहलोत को राजनीति का एक शातिर खिलाड़ी माना जाता है, कांग्रेस के लिए करीब 4 दशकों से ज्यादा वक्त से राजनीति कर रहे गहलोत को किनारे करना इतना आसान नहीं होगा.
जब गहलोत को अध्यक्ष बनाने की बात सामने आई और पायलट की ताजपोशी की तैयारी की गई तो राजस्थान में क्या हुआ ये सबने देखा. गहलोत ने परदे के पीछे से पूरा गेम कर दिया और पार्टी तक सीधे मैसेज पहुंचाया कि पायलट का कद उनके सामने क्या है. इस दौरान 90 विधायकों ने इस्तीफे की पेशकश कर सोनिया को बड़ी चेतावनी दे डाली.
दिख सकती है गहलोत की जादूगरी
अब 200 सीटों वाली विधानसभा में 92 विधायकों को अपने पीछा खड़ा करने वाले गहलोत एक बार फिर अपना जादू दिखा सकते हैं. मुमकिन है कि अशोक गहलोत को बचाने के लिए उनके कुछ करीबियों को बलि का बकरा बनाया जाए. संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल, मुख्य सचेतक महेश जोशी और आरटीडीसी अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर पहले ही रडार पर आ चुके हैं. पूरा इल्जाम उन पर है कि राजस्थान में पायलट के खिलाफ जो कुछ हुआ, उसके सूत्रधार यही थे. गहलोत का नाम खुलकर कहीं नहीं आया. प्रभारी अजय माकन और पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे ने जो रिपोर्ट सोनिया को सौंपी थी, उसमें भी इन्हीं तीनों के नाम शामिल थे. वहीं गहलोत ये बोलकर बच निकले थे कि जो कुछ हुआ, उसमें उनका कोई हाथ नहीं है.
सोनिया से मुलाकात के बाद गहलोत का बयान
अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद भी अपने बयान से ये साफ कर दिया कि राजस्थान की पिक्चर में उनका कोई रोल नहीं था. गहलोत ने सोनिया से मुलाकात के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि, "कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया जी के साथ मैंने बैठकर पूरी बात की, मैंने पिछले 50 साल तक कांग्रेस के लिए वफादारी के साथ काम किया, मैं सोनियां गाधी के आशीर्वाद से तीसरी बार सीएम बना. परसों की घटना ने हम सब को हिलाकर रख दिया, पूरे देश में मैसेज गया कि मैं मुख्यमंत्री बना रहना चाहता हूं, मैंने सोनिया जी से माफी मांगी."
यानी सटीक रणनीति के तहत अशोक गहलोत सोनिया के सामने अपना दांव चल चुके हैं. उन्होंने अपने बयान से ये बताया कि राजस्थान की घटना से वो भी हिलकर रह गए. यानी उन्हें दूर-दूर तक इसकी भनक नहीं थी. इस दौरान उन पर लगे आरोपों का जिक्र भी गहलोत ने कर दिया. अब इंतजार इस बात का है कि सोनिया गांधी उन्हें वाकई में माफ कर देती है या फिर राजस्थान में कुछ अलग देखने को मिल सकता है. कांग्रेस पंजाब चैप्टर को राजस्थान में दोहरा सकती है.
सचिन पायलट को लेकर कई सवाल
अब बात सचिन पायलट की करें तो उन्हें लेकर भी कई अटकलें लगाई जा रही हैं. पायलट कांग्रेस में पहले ही बागी कहलाते हैं. ऐसे में सवाल ये है कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री का पद नहीं दिया जाता तो उनका अगला मूव क्या होगा? पायलट की हालत देख लोग मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया वाले चैप्टर को याद करने लगे हैं. जिसमें कमलनाथ के साथ टसल के बाद आखिरकार सिंधिया को पार्टी छोड़नी पड़ी और वो बीजेपी में आ गए.
क्या सिंधिया की राह चलेंगे पायलट?
अब इस सवाल का जवाब अगर दें कि क्या पायलट भी सिंधिया की राह चलने के लिए तैयार हैं? इसके लिए थोड़ा पीछे चलकर देखना होगा. साल 2020 में सचिन पायलट गहलोत से इतना नाराज हो गए कि उन्होंने बगावत छेड़ दी. अपने समर्थक करीब 18 विधायकों के साथ वो हरियाणा चले गए. इस दौरान कई दिनों तक सियासी ड्रामा चलता रहा, लेकिन आखिराकर कांग्रेस ने पायलट को कई शर्तों के साथ मना लिया और सरकार ने फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित किया. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पायलट शायद ही इस चैप्टर को फिर से दोहराएंगे. इसके पीछे भी एक बड़ा कारण है.
2023 चुनावों तक इंतजार
कांग्रेस सचिन पायलट को मनाने के लिए ये रणनीति बना सकती है कि उन्हें एक साल तक चुप रहने को कहा जाए. यानी राजस्थान चुनाव तक गहलोत साइलेंट मोड में रहें और अपने क्षेत्र में काम करते रहें. चुनाव से ठीक पहले उन्हें सीएम उम्मीदवार बनाया जा सकता है. सचिन पायलट ने सोनिया के साथ मुलाकात के बाद जो बयान दिया, उससे इसी बात के संकेत मिल रहे हैं.
पायलट ने कहा, "हमारा उद्देश्य है कि राजस्थान में जो परिपाटी है कि हर 5 साल बाद सरकार बदलती है उस परिपाटी को छोड़ना है. सबको मिल-जुलकर चुनाव लड़ना है. मेरा फोकस राजस्थान है. चुनाव में 10 से 12 महीने बचे हैं हम सब लोग मिलकर लड़ेंगे. हम सबको मिलकर काम करना पड़ेगा, राजस्थान के मामले में जो भी फैसला होगा, वो सबको स्वीकार्य होगा. हम लोग कड़ी मेहनत करके कांग्रेस की सरकार लाएंगे."
सचिन पायलट ने जो कहा है, उससे ये साफ हो गया है कि उन्हें अब 2023 का इंतजार है. चुनाव के लिए कड़ी मेहनत और साथ मिलकर काम करने वाली बात से यही पता चलता है कि पायलट की उम्मीदें बरकरार हैं. कुल मिलाकर राजस्थान में जो कुछ दिखा, वो सिर्फ ट्रेलर था. आने वाले वक्त में पूरी पिक्चर और उसका क्लाइमेक्स देखना बाकी है.
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