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राजस्थान: कांग्रेस को गहलोत और बीजेपी को वसुंधरा के 'फेस' पर भरोसा क्यों नहीं?

राजस्थान में अब से कुछ महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं. कांग्रेस और बीजेपी इस चुनाव में बिना किसी सीएम चेहरे के मैदान में उतरने की रणनीति पर काम कर रही है. आखिर क्यों?

कुछ महीने बाद ही राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस सहित सभी स्थानीय पार्टियों ने भी अपनी तैयारी तेज कर दी है. अब खबरें आ रही है कि राज्य में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के मैदान में उतर सकती है.

एक तरफ जहां कांग्रेस विधानसभा चुनाव में बिना सीएम चेहरे के मैदान में उतरने का औपचारिक ऐलान कर चुकी है, तो वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी भी बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के मैदान में उतरने की तैयारी में है.

सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि बीजेपी के पास वसुंधरा राजे और कांग्रेस के पास अशोक गहलोत जैसे दिग्गज नेता मौजूद हैं फिर भी दोनों पार्टियां सीएम पद के चेहरे के बिना चुनाव में क्यों उतरना चाहती है?

बात पहले सत्ताधारी कांग्रेस की...
राजस्थान के स्थानीय पत्रकार रहीम खान कहते हैं, 'कांग्रेस की बात करें तो वहां अशोक गहलोत के अलावा सचिन पायलट भी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं. लेकिन अगर अशोक गहलोत के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया तो पायलट गुट के लोग कांग्रेस में रहकर ही कांग्रेस को हराने का काम करेंगे.'

रहीम खान आगे कहते हैं- दूसरा पायलट जिस गुर्जर समुदाय से आते हैं उसकी नाराजगी भी उठानी पड़ेगी. कुछ लोगों में अभी भी इस बात को लेकर नाराजगी है कि साल 2018 का चुनाव पायलट के नेतृत्व में लड़ा गया था लेकिन बहुमत मिलने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बनाया गया.

उन्हें लगता है कि पिछली बार पायलट के साथ पार्टी आलाकमान ने धोखा किया है. इस बार उन्हें यह उम्मीद है कि अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री पायलट को बनाया जाएगा. इसलिए किसी एक को मुख्यमंत्री का चेहरा बना कर कांग्रेस पार्टी अभी किसी की भी नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती है.

एक और स्थानीय पत्रकार कहते हैं, 'कांग्रेस में गहलोत चेहरा तो है, लेकिन पिछला रिकॉर्ड देखें तो गहलोत की छवि अच्छे मैनेजर की जरूर रही है लेकिन चुनाव जिताऊ के मामले में उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया है. बताया जा रहा है कि इस बार इतना जोर लगाने के पीछे भी यही कारण है गहलोत 1998 का अपना टैग हटाना चाहते हैं. इसके अलावा पायलट फैक्टर भी एक वजह है जहां चुनावों से पहले फेस बनाने से गुर्जर वोट बैंक छिटक सकता है.

बीजेपी में सीएम दावेदार की लंबी लिस्ट
रहीम खान कहते हैं कि अगर बीजेपी की बात की जाए तो इस पार्टी में फिलहाल वसुंधरा राजे सिंधिया के अलावा मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की एक लंबी लिस्ट है जो अपने अपने क्षेत्र में प्रभाव रखते हैं. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया 4 साल तक प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहे हैं और वो खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार समझ रहे थे. ले

हालांकि, कुछ महीने पहले अचानक से उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. इस एक्शन को लेकर जाट समुदाय में नाराजगी है. इस नाराजगी को कम करने के लिए ही उन्हें विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है लेकिन किसी और को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर देने से जाटों की नाराजगी और बढ़ सकती है.

रहीम आगे कहते हैं कि इसके अलावा नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ भी सीएम पद के दावेदार हैं. केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह, सांसद राज्यवर्धन सिंह, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला भी सीएम पद के दावेदार बताए जा रहे हैं. अभी हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए सांसद सीपी जोशी भी खुद को सीएम पद की दौड़ में मान रहे हैं.

वसुंधरा राजे भी समय समय पर शक्ति प्रदर्शन कर अपनी ताकत का एहसास करवाती रहती हैं. कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के भले ही सिर्फ दो दावेदार हैं लेकिन भाजपा में एक लंबी लिस्ट है, ऐसे में किसी एक को मुख्यमंत्री का चेहरा बना कर पार्टी बाकी सब की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती है.

जानकारों के मुताबिक 2023 के चुनावों में दोनों ही दलों के बिना किसी चेहरे के चुनावों में उतरने के अपने-अपने कारण है. बीजेपी जहां केंद्रीकरण कल्चर ज्यादा है वह राजस्थान के मामले में रिस्क नहीं लेना चाहती है, क्योंकि वसुंधरा राजे अगर इस बार जीतती है तो वह काफी मजबूत हो जाएंगी. इसके अलावा गहलोत सरकार की योजनाओं के सामने पीएम मोदी की योजनाओं को खड़ा करना सियासी फायदे का सौदा हो सकता है.

पहले भी सीएम फेस के बिना मैदान में उतर चुकी है कांग्रेस
इससे पहले साल 2018 में विधानसभा चुनाव हुए थे, कांग्रेस ने उस चुनाव में भी परिणाम से पहले सीएम के चेहरे का ऐलान नहीं किया था. जीत के बाद पार्टी ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया था. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी की तरफ से वसुंधरा राजे सिंधिया को मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश किया गया था.

इससे पहले यानी साल 2013 में विधानसभा चुनाव हुए. उस वक्त चुनाव से पहले ही अशोक गहलोत सीएम के चेहरे के रूप में सामने थे, जबकि बीजेपी ने उस वक्त भी वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया था.

उसके पहले भी लगभग हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी की तरफ से कोई न कोई सीएम के चेहरे के रूप में पेश किया जाता रहा है. देखा जाए तो ये पहली बार होगा जब दोनों ही प्रमुख पार्टियां बिना चेहरे के मैदान में उतर रही हैं.  

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