Rajasthan Political Crisis: राजस्थान में सियासी संकट थमने का नाम नहीं ले रहा है. अभी तक मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई अंतिम फैसला कांग्रेस (Congress) आलाकमान ने नहीं लिया है. जब अशोक गहलोत  (Ashok Gehlot) अध्यक्ष पद के चुनाव की तैयारी कर रहे थे तो पायलट के सीएम बनने की पूरी संभावना थी, लेकिन उन्होंने 92 विधायकों का इस्तीफा दिलवाकर शक्ति प्रदर्शन किया और नतीजतन वे अध्यक्ष पद की रेस से बाहर हो गए. 


इस दौरान गहलोत को सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से माफी तक मांगनी पड़ी. इस सबके बाद आलाकमान ने राजस्थान के सीएम पद पर फैसला करने के लिए 48 घंटे लिए, जिसकी मियाद अब पूरी हो चुकी है. ऐसे में अब ये समझना बेहद जरूरी हो जाता है कि अशोक गहलोत, सचिन पायलट और सोनिया गांधी के पास अब क्या नया प्लान होगा?


सीएम को लेकर अभी भी असमंजस?


कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर तो स्थिति स्पष्ट हो चुकी है. मल्लिकार्जुन खड़गे, शशि थरूर और झारखंड के पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी ने अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नामांकन भर दिया है, लेकिन यहां राजस्थान में सीएम को लेकर असमंजन अभी भी बना हुआ है. चलिए इस पूरे घटनाक्रम पर राजनीतिक विश्लेषक विजय विद्रोही के एनालिसिस को समझते हैं.


अशोक गहलोत के मन में क्या चल रहा है?


राजनीतिक विश्लेषक विजय विद्रोही ने बताया कि राजस्थान के मुख्यमंत्री के फैसले पर अभी भी असमंजस बरकरार है. उन्होंने कहा कि ये जलेबी जैसी राजनीति हो गई है. विजय विद्रोही ने कहा कि एक तरफ अशोक गहलोत कहते हैं कि वे किसी पद पर रहें या ना रहें, लेकिन राजस्थान की सेवा करते रहेंगे और दूसरी तरफ वे कहते हैं कि जिन 92 विधायकों ने कांग्रेस विधायक दल की बैठका बहिष्कार किया वो अपने आप में अभूतपूर्व घटना है, जिसके लिए मैं माफी भी मांग चुका हूं, लेकिन इस घटना पर रिसर्च होनी चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों हुआ.


विजय विद्रोही ने कहा कि खुद ही अपने ट्वीट में यह भी कहा कि मेरी बातों के कुछ मायने होते हैं. ऐसे में क्या मायने होते हैं ये किसी को समझ नहीं हो रहा है. राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि एक तरफ वे बजट पेश करने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ किसी पद पर ना रहने की बात भी बोल रहे हैं. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर आलाकमान ने नए मुख्यमंत्री के बारे में विचार किया तो क्या गहलोत घर बैठ जाएंगे, या नई पार्टी बनाएंगे और या फिर राजनीति छोड़ देंगे.



राजनीतिक विश्लेषक विजय विद्रोही ने कहा कि अशोक गहलोत का प्रकरण निपटते हुए दिख नहीं रहा है. गहलोत कुल मिलाकर आश्वस्त हैं कि कुछ नहीं बिगड़ने वाला क्योंकि वे खुले तौर पर यह बात भी कह चुके हैं कि आलाकमान की ओर से आए पर्यवेक्षकों ने सही काम नहीं किया. इसी के साथ गहलोत ने यह भी नहीं कहा कि अगर सीएलपी की अगली बैठक हुई तो वे इस बात की गारंटी लेते हैं कि बैठक का बहिष्कार नहीं होगा. गहलोत ने कहा जो हुआ सही नहीं हुआ और फिर विधायकों को क्लीन चिट भी दे दी. राजनीतिक विश्लेषक ये भी मानते हैं कि गहलोत को इस बात का यकीन है कि अगर उनका कुछ बिगड़ा तो भी सचिन पायलट अगले 6 महीने तो सीएम नहीं बनने वाले हैं. विजय विद्रोही ने कहा कि उनका मानना है कि गहलोत सीएम पद से हटने वाले नहीं हैं.


सचिन पायलट के मन में क्या चल रहा है?


सचिन पायलट के हाथ से सत्ता की कढ़ाई दूरी होती जा रही है. 2018 में जब नतीजे आए थे तो पायलट के दोनों हाथों में लड्डू थे. उनके सीएम बनने के आसार भी थे और अध्यक्ष तो वो थे ही. उसके बाद भी उनके हाथ में डेढ़ लड्डू रहा, लेकिन आज की तारीख में उनके दोनों हाथ खाली हैं. ऐसे माहौल में सचिन पायलट सोनिया गांधी से मिलकर निकलते हैं और उनके चेहरे पर मुस्कान नजर आती है. ऐसे में सचिन पायलट क्या कर सकते हैं?


विजय विद्रोही ने कहा कि क्या सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ने का प्लान बना रहे हैं और या फिर वे नई पार्टी बनाने की सोच रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहली बात तो यह है कि अगर वे कुछ विधायकों के साथ पार्टी छोड़ते हैं तो सरकार तो नहीं गिरने वाली और दूसरी बात यह है कि क्या सचिन पायलट नई पार्टी बनाकर बीजेपी के साथ कोई समझौता कर सकते हैं. कुछ लोगों का ये भी मानना है कि अगर राजस्थान में आम आदमी पार्टी भी पैर पसारने की कोशिशों में लगी है, तो क्या सचिन केजरीवाल के साथ जा सकते हैं. इस पर विजय विद्रोही ने कहा कि सचिन पायलट ऐसी बेवकूफी नहीं करेंगे, क्योंकि एक मयान में एक ही तलवार रह सकती है. जितना घमंडी सचिन पायलट को कहा जाता है, उतने ही घमंडी केजरीवाल भी हैं और इसके कई उदाहरण भी हैं. 


सोनिया गांधी का प्लान?


विजय विद्रोही का मानना है कि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को बड़ा दिल रखने की बात कह रहा है. सोनिया गांधी भी शायद सचिन पायलट को यह समझा रही होंगी कि जैसे दिल्ली में उन्होंने कांग्रेस की बैठक में कहा था कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को सब्र रखना चाहिए और कांग्रेस की सबसे बड़ी खासियत ये है कि कांग्रेस में सबका टाइम आता है और सबका नंबर आएगा और सचिन पायलट का भी नंबर आएगा, लेकिन सवाल यही है कि क्या तब तक इनता सब्र रह जाएगा. 


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