नई दिल्ली: देश के पांच राज्यों में चुनावी तारीख की घोषणा हो गई है. राजस्थान में 7 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे और 11 दिसंबर को नतीजे आएंगे. चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राजस्थान में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. राजस्थान में इस बार जहां मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के ऊपर पार्टी को सत्ता में वापस लाने की जिम्मेदारी है. राजस्थान में साल 1998 से ही हर चुनाव के बाद सीएम पद की गद्दी मुख्य विपक्षी पार्टी को मिल जाती है. ऐसे में मुख्यमंत्री वसुंधरा के सामने इस मिथक को तोड़ना और सचिन पायलट का इस मिथक को बरकरारा रखते हुए पार्टी को वापस गद्दी में लाना सबसे बड़ी चुनौती है.


वसुंधरा राजे सिंधिया-


वसुंधरा राजे सिंधिया 2013 में प्रदेश की 13वीं मुख्यमंत्री बनीं थीं. वसुंधरा राजे इस कार्यकाल को मिलाकर दूसरी बार सीएम पद पर अपना कार्यकाल पूरा करेंगी. वह प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री भी हैं. ग्वालियर राजघराने से ताल्लुक रखने वाली वसुंधरा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1984 में बीजेपी ज्वाइन करने के बाद की थी. उन्हें शुरुआत में ही पार्टी के राष्टीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया और बाद में वो राजस्थान बीजेपी युवा मोर्चा का प्रदेश उपाध्यक्ष बनी थीं. वसुंधरा 1985 में पहली बार आठवीं राजस्थान विधानसभा चुनाव में धौलपुर से विधायक चुनी गईं. वह कई बार संसद भी रह चुकी हैं और वो 1989 में पहली बार संसद बनी थीं.


लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले इन आखिरी विधानसभा चुनाव से प्रदेश के लोगों के राजनीतिक झुकाव का पता चलेगा. ऐसे में सीएम वसुंधरा के लिए बड़ी मुश्किल यही है कि किसी भी तरह वह बीजेपी को सत्ता में बनाए रखे. वसुंधरा राजे इसके लिए पूरा जोर भी लगा रही हैं. पिछले डेढ़ महीने से वो पूरे प्रदेश में गौरव यात्रा के बैनर तले घूम रही हैं. इस यात्रा के तहत सीएम वसुंधरा ने 40 दिनों में प्रदेश की 200 विधानसभा सीटों में से 165 विधानसभा सीटों का सफर तय किया है. इस यात्रा में 6 हजार किमी का सफर तय किया गया है और सीएम ने 135 रैलियां की हैं. आज सीएम वसुंधरा के प्रदेशव्यापी गैरव यात्रा का अंतिम दिन है इसके लिए राजस्थान के अजमेर में प्रधानमंत्री मोदी की रैली का आजोजन किया गया है.


सचिन पायलट-


सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के युवा तेजतर्रार नेता हैं और प्रदेश कांग्रेस की कमान अभी उन्हीं के हाथों में है. कांग्रेस केन्द्रीय नेतृत्व ने इस चुनाव में सबसे ज्यादा उनपर भरोसा किया है और उन्हें निर्णय लेने की खुली छूट मिली हुई है. यह कारण है कि पार्टी में चुनाव समिति के लिए अध्यक्ष के लिेए लंबे समय चली आ रही अटकलें भी खत्म हो गई हैं और यह पद भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को ही दी गई है. हालांकि, प्रदेश में अशोक गहलोत कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं और वो अभी पार्टी महासचिव रहते हुए केन्द्रीय नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. इस कारण कांग्रेस पार्टी की तरफ से सचिन पायलट मुख्यमंत्री के उम्मीदवार माने जा रहे हैं.


सचिन पायलट राजस्थान दौसा लोकसभा सीट से पहली बार 2004 में संसद बने और 2009 में वो अजमेर से लोकसभा के लिए दूसरी बार चुने गए. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी वो अजमेर से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. सचिन पायलट केन्द्र में भी भूमिका निभा चुके हैं वो यूपीए-2 में कॉरपोरेट मंत्री के पद पर थे. सचिन पायलट को राजनीति विरासत में मिली. उनके पिता राजेश पायलट कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता थे.


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