Kota NEET JEE Coaching: सपनों के शहर कोटा में छात्र लड़ रहे जिंदगी की जंग!
Kota Neet Jee Coaching: अपने उज्ज्वल भविष्य के सपने लेकर स्टूडेंट्स राजस्थान के कोटा शहर पहुंचते हैं लेकिन एक समय पर आकर यही छात्र अपनी जिंदगी की जंग हार जाते हैं.
Kota Neet Jee coaching: कहने को तो कोटा स्वर्णिम भविष्य की तलाश में जुटे छात्रों के लिए सपनों का शहर है. वह इसलिए कि यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में छात्र-छात्राएं NEET और JEE की परीक्षाएं क्रैक करके अपने उज्ज्वल भविष्य की तैयारी करने आते हैं. इसमें से अधिकांश के सपने तो साकार हो जाते हैं. बावजूद इसके कुछ ऐसे भी छात्र होते हैं जो किन्हीं कारणोंवश मिली असफलता के चलते अपनी जिंदगी की जंग तक हार जाते हैं.
हाल के दिनों में डिप्रेशन या अन्य किसी वजह से इनके आत्महत्या के केस बढ़ते जा रहे हैं. जिसके चलते कोचिंग की यह कोटा फैक्ट्री अब छात्रों की आत्महत्या का हब भी बनती जा रही है. आइए डालते हैं एक नजर स्वर्णिम भविष्य के इस सपनों के शहर की क्या है पूरी कहानी है.
2023 में अभी तक 18 छात्र कर चुके हैं आत्महत्या
बीते 6 महीने में इस साल विभिन्न कारणों से अभी तक कुल 18 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं. इनमें कुछ छात्राएं भी हैं. कोटा में कोचिंग की शुरूआत 1980 में हो गई थी. उस समय यहां पर एक-दो ही कोचिंग सेंटर थे. धीरे-धीरे यह बढ़ते और विगत 40 सालों में कोटा शहर देश में कोचिंग का बड़ा हब बन गया. इस समय यहां 150 से अधिक कोचिंग सेंटर चल रहे हैं.
इतना ही नहीं यहां अभी तक छात्रों के लिए हॉस्टल की 3800 बिल्डिंग तैयार हैं और अगले साल तक 500 और बनकर तैयार हो जाएंगी. पहले आत्महत्या के मामले बहुत कम, साल में एक या दो आते थे. अब जब कोचिंग सेंटर और कोचिंग हॉस्टल की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है तो छात्रों की आत्महत्या के केस भी बढ़ते जा रहे हैं. एक आंकड़े के मुताबिक पिछले 10 सालों में कोचिंग करने के लिए आने वाले छात्रों में से 150 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं.
पढ़ाई का तनाव
एक्सपर्ट का इस बारे में मानना है कि अत्यधिक पढ़ाई का तनाव इसकी एक वजह हो सकती है. अधिकांश बच्चे अपने जिलों या स्कूल से टॉप करके यहां कोचिंग के लिए आते हैं. काफी मेहनत करने के बावजूद टफ कंपटीशन के चलते वह दो-तीन प्रयास में भी जब सफल नहीं हो पाते वह उसका तनाव नहीं झेल पाते और गलत कदम उठा लेते हैं.
परिवार का सपोर्ट नहीं मिलना
कोटा में कोचिंग के लिए जो बच्चे आते हैं वह अधिकांश 16 या 17 साल की उम्र के होते हैं. माता-पिता अच्छा हॉस्टल और कोचिंग मे एडमिशन दिलाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेते हैं. इस बारे में मनोचिकित्सकों का मानना है कि कभी-कभी कोई बच्चा मानसिक रूप से उतना मजबूत नहीं हो पाता कि वह अकेले रहकर इतनी बड़ी परीक्षा की तैयारी कर सके. इसलिए यह बहुत आवश्यक होता है कि माता-पिता कोचिंग और हॉस्टल में डालने के बाद भी अपने बच्चों का पूरा ध्यान रखें.
घर की परिस्थितियां और माता-पिता का दबाव
कई बच्चों के साथ ऐसा भी होता है कि घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के चलते पैरेंट्स कर्जा या लोन लेकर बच्चों को मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए भेजते हैं. बच्चों सामने जाने-अंजाने वह इस कर्ज और लोन की बातें भी कई बार कर जाते हैं. जिसके चलते बच्चे पर अनावश्यक दबाव बढ़ जाता है. उसके अंदर डर बैठ जाता है और फेल होने पर वह गलत कदम उठा लेता है.
करियर के लिए प्लान बी भी जरूरी
विशेषज्ञों की मानें तो बच्चों का करियर बनाने के लिए पैरेंट्स को प्लान बी भी लेकर चलना जरूरी है. वह इसलिए कि कई बच्चों में नीट और जेईई क्रैक करने की क्षमता नहीं होती है. इसके बाद भी स्टेटस सिंबल के खातिर उनके माता-पिता जबरदस्ती कोटा में कोचिंग के लिए भेज देते हैं. जब वह बच्चा दो-तीन बार के प्रयास में भी क्वालीफाई नहीं कर पाता तो उसके पास दूसरा विकल्प नहीं होता. जिसके कारण उसके अंदर डर बैठ जाता है. चूंकि उसके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता तो वह मजबूरी में आत्महत्या करने की तरफ बढ़ जाता है.
कई अन्य कारण भी हैं आत्महत्या के
पढ़ाई और माता-पिता के दबाव के अलावा भी अन्य कारण हैं. जिनके चलते छात्रों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती है. हॉस्टल चला रहे संचालकों का मानना है कि कोचिंग करने के लिए आने वाले छात्रों में कुछ शुरुआत में ही गलत संगत में पड़ जाते हैं. जिसके कारण उनका मन पढ़ाई से बिल्कुल हट जाता है. वह नशा करने लग जाते है. इसके अलावा अन्य गलत गतिविधियों में लिप्त होकर अपना अलग गैंग बना लेते हैं. इस कारण उनके पास धीरे-धीरे पैसों का संकट भी आने लगता है और वह नशे की लत के कारण डिप्रेशन में चले जाते हैं. अंत में उन्हें आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प नजर आने लगता है.
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