Rajasthan Political Crisis Inside Story: कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव (Congress President Election) से पहले राजस्थान (Rajasthan) में मुख्यमंत्री बदलने की कोशिश में गांधी परिवार (Gandhi Family) की जबरदस्त किरकिरी हुई है. अगला सीएम (Rajasthan Next CM) तय करने के लिए सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को अधिकृत करवाने के प्रस्ताव पर विधायक दल की मुहर लगवाने जयपुर गए अजय माकन (Ajay Maken) और मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) बैठक तक नहीं करवा पाए. हालांकि, इसकी कोशिश जारी है. 


वहीं, गहलोत गुट के 90 से ज्यादा विधायकों ने सचिन पायलट (Sachin Pilot) को सीएम बनाने की कोशिश के खिलाफ सामूहिक त्यागपत्र विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी (CP Joshi) को सौंप दिया है. ये सबकुछ अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) की मर्जी के बिना संभव नहीं हो सकता. बड़ा सवाल है कि अब तक गांधी परिवार के विश्वासपात्र माने जाने वाले गहलोत ने बगावत क्यों की?


गहलोत का फार्मूला


सूत्रों के मुताबिक, कुछ हफ्तों पहले जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत से पार्टी की कमान संभालने की बात कही थी तभी उन्हें एहसास हो गया था कि ऐसी परिस्थिति में उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी होगी. गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर अपनी सहमति तो दे दी लेकिन अपने उत्तराधिकारी के तौर पर उन्होंने सोनिया गांधी के सामने सीपी जोशी के नाम का प्रस्ताव रख दिया. 


गांधी परिवार का प्रोजेक्ट पायलट


दरअसल, गहलोत को अंदाजा था कि उनकी जगह गांधी परिवार सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना सकता है. इसी वजह से उन्होंने अपनी पसंद और नापसंद आलाकमान के सामने रख दी. सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान से भरोसा मिलने के बाद वह राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में पर्चा भरने को तैयार हुए. शुरुआत में उन्होंने बयान दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीत कर भी कोई सीएम, मंत्री रह सकता है लेकिन जब राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उदयपुर संकल्प के तहत 'एक व्यक्ति एक पद' की पैरवी की तो उनसे मिलने के बाद गहलोत भी इसी लाइन पर आ गए. गहलोत ने दोनों बयान एबीपी न्यूज से बातचीत में दिए. उन्होंने बाद में मुख्यमंत्री का पद छोड़ने की बात भी कही लेकिन उसकी प्रक्रिया का जिम्मा आलाकमान पर छोड़ दिया. 


अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव तक सीएम बने रहना चाहते थे लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन से भी पहले केंद्रीय नेतृत्व ने जिस तरह पर्यवेक्षक भेज कर अपनी चलाने की कोशिश की, गहलोत ने 'प्रोजेक्ट पायलट' भांप लिया और अपनी ताकत दिखा दी.


पायलट को क्यों नापसंद करते है गहलोत?


दरअसल, सचिन पायलट गहलोत को फूटी आंख नहीं सुहाते! अदावत की ये कहानी तब से चली आ रही है जब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया होने के बाद 2014 की शुरुआत में पायलट को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. यूपीए सरकार में केंद्र में मंत्री रह चुके पायलट गांधी परिवार के सीधे संपर्क की वजह से राजस्थान के पुराने नेताओं को ज्यादा महत्व नहीं देते थे. 


2017 में सरकार बनने के समय पायलट सीएम की कुर्सी के लिए अड़ गए और गहलोत का पत्ता काटने की कोशिश की. विवाद चरम पर तब पहुंचा जब करीब दो साल पहले डेढ़ दर्जन विधायकों के साथ गुरुग्राम में डेरा डालकर सचिन पायलट ने जयपुर में तख्ता पलटने की कोशिश की. तब जैसे-तैसे पायलट को मनाया गया और गहलोत सरकार बची लेकिन इसके बाद भी पायलट अपनी पार्टी की सरकार को आईना दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते. 


सूत्रों के मुताबिक, राज्य में कानून-व्यवस्था को पर पायलट की बयानबाजी को लेकर गहलोत खासे चिढ़े रहते थे क्योंकि गृह मंत्रालय खुद सीएम के पास था. कुल मिलकर गहलोत के मन में पायलट की छवि 'गद्दार' की बनी हुई थी. जब उन्होंने महसूस किया कि विधायक दल की बैठक के बहाने उनकी कुर्सी पर पायलट को बिठाने की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है तो उन्होंने विधायकों पर अपना 'जादू' चलाकर सबको हैरान कर दिया.


आगे क्या होगा?


रविवार शाम के घटनाक्रम के बाद कांग्रेस आलाकमान को गहलोत से बात करनी होगी. गहलोत इस बातचीत में हावी रहेंगे. फॉर्मूला यह निकल सकता है कि गहलोत फिलहाल सीएम बने रहें और कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अपने मुताबिक राजस्थान का नया सीएम बनाएं. दूसरी स्थिति हो सकती है कि गहलोत सीएम के रूप में काम करते रहें और राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए कोई और चेहरा सामने आए. इसके अलावा किसी बात पर समाधान निकलता नहीं दिख रहा. लग यही रहा है कि आलाकमान के दबाव में भी पर्यवेक्षक जितनी कोशिश कर लें, पायलट का सीएम बनना मुश्किल है. 


अशोक गहलोत के करीबी सूत्रों के मुताबिक, सीएम ने कहा है कि विधायकों ने जो किया वो सही नहीं था, उन्हें सोनिया गांधी के भेजे पर्यवेक्षकों के सामने विधायक दल की बैठक में आना चाहिए था. गहलोत चाहते थे कि सभी विधायक पर्यवेक्षकों के सामने आकर विधायक दल की बैठक में अपनी राय रखें, उसके बाद फैसला सोनिया गांधी के विवेक पर छोड़ दें. गहलोत ने सियासी घटनाक्रम को लेकर पर्यवेक्षकों से अफसोस जताया लेकिन ऐसा क्यों हुआ, इस पर भी गौर करने को कहा है.


इस 'कलाबाजी' से गहलोत ने खुद को तो राजस्थान में मजबूत कर लिया है लेकिन माना जा रहा है कि देशभर के कांग्रेसजनों के बीच उनकी साख कमजोर हुई है.


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