जयपुर: करीब दस दिनो से राजस्थान में जारी सियासी घमासान में सोमवार का दिन बेहद अहम होगा. अहम इसलिए कि सोमवार को राजस्थान हाई कोर्ट में सचिन पायलट ख़ेमे की तरफ़ से दायर याचिका पर फ़ैसला आ सकता है. अगर सचिन पायलट और उनके अन्य 18 साथियों की याचिका को कोर्ट की मंज़ूरी मिल गई तो इन सभी की विधायकी बच सकती है. लेकिन अगर कोर्ट ने राजस्थान विधानसभा की तरफ़ से जारी नोटिस को सही ठहरा दिया तो इन सभी बाग़ियों की सदस्यता ख़तरे में पड़ जाएगी.


इस मामले में शुक्रवार को हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू हुई थी. पहले पायलट गुट की तरफ़ से नामी वकील हरीश साल्वे और फिर मुकुल रोहतगी ने घंटों तक जिरह की. फिर गहलोत गुट के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी.


शुक्रवार को जब सुनवाई पूरी नहीं हो सकी तो कोर्ट ने सोमवार की सुबह दस बजे अदालत की कार्रवाई फिर से शुरू करने के निर्देश दिए. इस बीच अदालत ने ये निर्देश भी दिए कि मंगलवार शाम साढ़े पांच बजे तक राजस्थान विधानसभा के स्पीकर इन सभी विधायकों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई न करें. अदालत के फ़ैसले से न सिर्फ़ इन बाग़ी विधायकों का भविष्य तय होगा बल्कि ये तस्वीर भी साफ़ हो जाएगी कि आगे अगर गहलोत सरकार को विधान सभा में बहुमत साबित करना पड़ा तो क्या समीकरण होंगे?




  1. अगर इन विधायकों को दिए गए नोटिस को हाईकोर्ट ने उचित बता दिया तो विधान सभा अध्यक्ष को इनकी सदस्यता ख़त्म कर देने का अधिकार मिल जाएगा. ऐसे में अगर इनकी सदस्यता गई तो राजस्थान की 200 सदस्यों वाली विधानसभा में बाग़ी 19 विधायक कम हो जाएंगे और तब कुल सदस्य 181 माने जाएंगे. बहुमत के लिए ज़रूरी आंकड़ा 91 होगा. गहलोत गुट के पास अभी 101 सदस्यों का समर्थन है यानि बहुमत साबित हो जाएगी.

  2. अगर विधानसभा से जारी नोटिस को हाईकोर्ट ने सही नहीं मानकर फ़ैसला पायलट गुट के पक्ष में दिया तो सभी बाग़ी 19 विधायकों की सदस्यता बच जाएगी. लेकिन इस हालत से निपटने के लिए सीएम अशोक गहलोत एक बड़ा दांव खेलने की तैयारी में हैं.


क्या है अशोक गहलोत का 'प्लान'?


अगर अशोक गहलोत ने कोर्ट के फ़ैसले के बाद विधानसभा में बहुमत साबित करने का एलान कर दिया तो बाग़ी गुट के लिए दोहरी मुश्किल हो जाएगी. पहला तो बहुमत साबित करने से पहले कांग्रेस की तरफ़ से व्हिप जारी की जाएगी और तब बाग़ी गुट उसका उल्लंघन कर सरकार के ख़िलाफ़ वोट नहीं दे सकेंगे. यदि उन्होंने ऐसा किया तो उन पर दल बदल क़ानून लागू हो जाएगा और सदस्यता ख़त्म हो जाएगी. दूसरा अगर ये विधायक सदन में आए तो इनमें से कुछ के ख़िलाफ़ आपराधिक मुक़द्दमा दर्ज होने की वजह से उनको गिरफ़्तारी का डर भी रहेगा. ऐसे में इन सभी के सामने ये विकल्प रह जाएगा कि ये बहुमत साबित करने से पहले खुद ही विधायक पद से त्याग पत्र दे दें. यानि सियासत के ‘जादूगर’ अशोक गहलोत ने हर तरफ़ से बाग़ी ख़ेमे की घेरा बंदी कर दी है.


अशोक गहलोत के ख़िलाफ़ 19 कांग्रेसी विधायकों के अलावा 3 निर्दलीय विधायक हैं. इसके अलावा बीजेपी के 72 और हनुमान बेनिवाल के 3 विधायक भी उनके ख़िलाफ़ हैं. ये आंकड़ा 97 हुआ. इसके अलावा सीपीआई के एक विधायक का समर्थन किसी गुट के पास नहीं होने से ये आंकड़ा 98 हुआ. अब साफ़ है कि गहलोत के पास कुल 102 विधायकों का समर्थन है.


सोमवार को ही जयपुर की एक निचली अदालत में एसओजी द्वारा संजय जैन का वॉयस सैम्पल लेने की अर्ज़ी पर भी सुनवाई होगी. संजय जैन अभी एसओजी की चार दिन की रिमांड पर है और एसओजी ने जारी ऑडीयो में आवाज़ का मिलान करने के लिए सैम्पल लेने की अर्ज़ी अदालत में लगाई है. वैसे जानकार सूत्रों के मुताबिक़ गहलोत ने बुधवार को विधानसभा का छोटा सत्र बुलाने की तैयारी कर रखी है ताकि मौजूदा हालात का पूरा फ़ायदा उठा कर वो तमाम बाग़ियों को कम से कम अगले छह महीनों तक के लिए चुप करा दें.


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