Rajasthan BJP Meeting: राजस्थान में इस साल नवंबर अंत विधानसभा चुनाव हो सकते हैं, जिसको लेकर पूरे राजस्थान में राजनीतिक सरगर्मी उफान पर है. एबीपी न्यूज को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राजस्थान बीजेपी में राज्य की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और केंद्रीय नेतृत्व के बीच सबकुछ ठीक नहीं था, लेकिन बुधवार (27 सितंबर) को दोनों नेताओं (अमित शाह-वसुंधरा राजे) के बीच मीटिंग हुई और वसुंधरा राजे यह कहते हुई निकलीं कि मीटिंग बहुत अच्छी रही. 


बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक शुरू होने के बाद जब बैठक की तस्वीरें सामने आईं तो लोगों की निगाह सिर्फ वसुंधरा के हाव-भाव पर थी. लोग उनकी बॉडी लैंग्वेंज को देखना और समझना चाह रहे थे. वीडियो में दिख रहा है कि वसुंधरा के एक तरफ गजेंद्र सिंह शेखावत बैठे हैं और दूसरी तरफ राज्यवर्धन राठौड़. ये सिटिंग अरेजमेंट तब तक का है, जब तक अमित शाह और जेपी नड्डा मीटिंग के लिए पहुंचे नहीं थे. जैसे ही दोनों नेता मीटिंग के लिए पहुंचे सिटिंग अरजमेंट बदल गया.


6 घंटे से भी अधिक चली बीजेपी की बैठक
शाम करीब साढ़े सात बजे शुरू हुई यह बैठक रात दो बजे तक चलती रही. उम्मीदवारों से लेकर प्रचार की रणनीति तक पर चर्चा हुई. कोर ग्रुप की बैठक में अमित शाह और जेपी नड्डा समेत राज्य और केंद्र सरकार के करीब 17-18 लोग मौजूद थे. जब मीटिंग खत्म हुई और नेता होटल से बाहर निकलने लगे तो मीडिया के कैमरे में वसुंधरा, गजेंद्र सिंह शेखावत और कुलदीप बिश्नोई नजर आए. पत्रकारों ने वसुंधरा से सवाल पूछना चाहा, लेकिन उन्होंने दिलचस्पी नहीं दिखाई. वो ये कहते हुए गाड़ी में बैठ गईं कि मीटिंग बहुत अच्छी रही. 


क्या वाकई में मीटिंग ने वसुंधरा को रेस में वापस ला दिया? 
एबीपी न्यूज के विश्वस्त सूत्रों की मानें तो बुधवार की मीटिंग में बनी रणनीति ने वसुंधरा को फिर से रेस में वापस ला दिया है. बुधवार की रात कोर कमेटी की मीटिंग के बीच अमित शाह, जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष के बीच गुप्त मीटिंग हुई. माना जा रहा है कि इस मीटिंग में वसुंधरा को भरोसा दिया गया है कि पार्टी चुनाव में उनके सम्मान का पूरा खयाल रखेगी. ऐसे में सवाल है कि क्या राजस्थान में इस बार वसुंधरा राजे एक बार फिर चुनावी कमान संभालेंगी. क्या प्रदेश में एक बार फिर से उनके चेहरे को कमान दी जाएगी. 


राजस्थान में क्यों अहम हैं वसुंधरा?
राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा बीजेपी की सबसे बड़ी नेता हैं. प्रदेश में अब भी उनको भीड़ जुटाने वाली नेता के तौर पर जाना जाता है. पार्टी पॉलिटिक्स में वो भले ही खुद को साइड लाइन समझ रहीं थीं, लेकिन समर्थकों के बीच उनकी लोकप्रियता बनी हुई है और माना जा रहा है कि इसी लोकप्रियता की बदौलत उन्होंने चुनावी रेस में वापसी की है. माना जा रहा है कि आरएसएस नेताओं ने वसुंधरा की पैरवी की है.


संघ का भी मानना है कि बिना क्षेत्रीय क्षत्रप को आगे रखे सिर्फ प्रधानमंत्री के नाम पर विधानसभा का चुनाव नहीं जीता जा सकता. कर्नाटक की हार के बाद संघ के मुखपत्र में ये बातें कही गईं थीं. राजस्थान में आरएसएस की जड़ें गहरी हैं. 


एबीपी न्यूज के सर्वे में भी वसुंधरा ज्यादा लोकप्रिय 
एबीपी न्यूज के सर्वे में 36 फीसदी लोगों ने माना था कि वसुंधरा ही पार्टी का सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं, जबकि गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम लेने वाले महज 9 फीसदी लोग ही थे. वहीं राजेंद्र राठौर और अर्जुन मेघवाल का नाम 7 फीसदी लोगों ने लिया था. 
 
बीजेपी नहीं चाहती कि चुनाव से पहले किसी भी सूरत में आपसी गुटबाजी का असर चुनाव के नतीजों पर पड़े. यही वजह है कि प्रधानमंत्री के चेहरे को ही आगे रखकर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई जा रही है. बाकायदा मोदी के चेहरे को भुनाने के लिए राजस्थान बीजेपी ने एक गाना भी तैयार किया है. 


हालांकि 200 सीटों वाले राजस्थान में सिर्फ इतने से काम नहीं चलने वाला और ये सच्चाई पार्टी भी समझती है. बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व जानता है कि राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा की जड़ें काफी गहरी हैं. इसलिए उनको नजरअंदाज करके सत्ता हासिल करना आसान नहीं रहने वाला. शायद यही वजह है कि वसुंधरा को साध रखने के लिए नेतृत्व ने नई रणनीति बनाई है. अब ये रणनीति क्या है इसका खुलासा होना बाकी है.


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