Sachin Pilot And Ashok Gehlot Row: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए चुनाव जीता है. अब सीएम को लेकर पार्टी के अंदर माथापच्ची चल रही है. उधर 5 महीने बाद जिस राजस्थान में चुनाव होने हैं वहां कांग्रेस की टेंशन बढ़ गई है. सचिन पायलट का मूड देखकर लगता नहीं कि वो आसानी से मानने वाले हैं. अजमेर से निकली उनकी पद यात्रा जयपुर में खत्म हो गई लेकिन तेवर वही पुराने वाले हैं.
सचिन पायलट अपनी ही पार्टी के नेता और सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं और अगर यही स्थिति रही तो फिर पार्टी के लिए चुनाव में मुश्किल खड़ी हो सकती है. साल 2018 में जब सचिन पायलट पार्टी के अध्यक्ष थे तब उनके नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में आई थी लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने, तब पायलट को डिप्टी सीएम के संतोष करना पड़ा लेकिन 2020 में पायलट सरेआम बागी हो गए. अब उन्होंने कहा है कि बातें अगर नहीं मानी गई तो आंदोलन करेंगे.
सचिन पायलट क्या बोले?
सचिन पायलट ने कहा, “हमारा संघर्ष किसी नेता के खिलाफ नहीं है. ये भ्रष्टाचार के खिलाफ है. ये कहां की नीति है कि अपनी पार्टी के लोगों को बदनाम और बीजेपी के लोगों का गुणगान करें. मेरी इस जन संघर्ष यात्रा का उद्देश्य भ्रष्टाचार की जांच को करना है. क्या परिस्थिति पैदा हुई, क्या घटनाक्रम हुआ कि हमें यात्रा निकालनी पड़ी. साल 2013 में हमारी सिर्फ 21 सीट रह गईं. तब मुझे अध्यक्ष बनाया गया. हमने साल 2018 तक खूब संघर्ष किया.”
वहीं, अशोक गहलोत सरकार में राज्य मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा का कहना है, “हमारी सरकार का एलाइनमेंट खराब हो गया है. सरकार भ्रष्टाचार के उन सभी मानकों को पूरा कर चुकी है, जो देश में हो चुके हैं.” उन्होंने कहा कर्नाटक में बीजेपी की 40 परसेंट कि करप्शन की सरकार के आगे भी यहां की सरकार जा चुकी हैं.
पायलट की अनदेखी पड़ेगी भारी?
पायलट की अनदेखी कांग्रेस को क्यों भारी पड़ सकती है इसको समझने के लिए राज्य की राजनीति के जातीय गणित को भी समझना जरूरी है. राजस्थान में सवर्ण 19 प्रतिशत, ओबीसी 40 प्रतिशत, एससी 18 प्रतिशत, एसटी 14 प्रतिशत और मुस्लिम 9 प्रतिशत हैं. राज्य की राजनीति पर मुख्य रूप से 4 जातियों का दबदबा रहता है और फिर इन्हीं जातियों का समीकरण राज्य के चुनाव को हर पांच साल पर जीत हार में बदल देता है.
कौन सी हैं वो 4 जातियां?
राजस्थान की राजनीति जिन 4 जातियों पर टिकी है उनमें जाट जो 9 प्रतिशत, मीणा जो 7 प्रतिशत, राजपूत जो 6 प्रतिशत और गुर्जर जो 5 प्रतिशत हैं. ज्यादातर विधायक इन्हीं जातियों से जीतकर आते हैं और अपने अपने इलाके में यही जातियां जीत हार की ताकत रखती हैं. सचिन पायलट गुर्जर समाज से आते हैं. राज्य की राजनीति में सचिन पायलट के सियासी उभार से पहले इस जाति के वोट बैंक पर बीजेपी की पकड़ थी लेकिन 2018 में सचिन पायलट ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए इस वोट बैंक में सेंध लगाई और कांग्रेस सत्ता में आई.
तब माना जा रहा था कि कांग्रेस सचिन पायलट को सीएम बना सकती है लेकिन ऐसा हुआ नहीं और ये टीस रह रहकर सचिन के सीने में उठती रहती है. इतना ही नहीं सीएम गहलोत भी अपने बयानों से पायलट के जख्मों को हरा करते रहते हैं.
कर्नाटक और राजस्थान की कहानी एक जैसी?
कमोबेश कर्नाटक और राजस्थान की कहानी भी एक जैसी दिखती है. कर्नाटक में भी पूर्व सीएम सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डेके शिवकुमार के बीच तलवारें खींचीं हुई हैं. ठीक वैसे ही जैसे राजस्थान में गहलोत और सचिन पायलट एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं. हालांकि कर्नाटक में चुनाव से पहले राहुल गांधी ने सिद्धारमैया और शिवकुमार को एक कर दिया था.
इसके बाद के नतीजे सभी के सामने हैं. कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता में आ चुकी है. ये अलग बात है कि अब फिर से दोनों एक दूसरे के सामने हैं. वहीं, कांग्रेस को राजस्थान में चुनाव जीतना है तो पायलट और गहलोत को साथ लेकर चलना होगा. नहीं तो बीजेपी पहले से ही नजरें गड़ा कर बैठी है.
इस साल के आखिरी में होने हैं चुनाव
राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं. हर पांच साल पर राज्य में सत्ता बदलने का रिवाज चला आ रहा है. कांग्रेस अगर पार्टी को नहीं संभाल पाती तो फिर रिवाज कायम रहने से कोई रोक नहीं पायेगा. कांग्रेस में झगड़ा है तो उधर बीजेपी चुनाव जीतने के लिए अपनी रणनीति बनाने में जुट चुकी है.
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