Rajnath Singh Karwar Visit: देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) भारतीय नौसेना (Indian Navy) के सामरिक बेस (Tactical Base) कारवार के दो दिवसीय दौरे पर गये थे. इस दौरान उन्होंने अंडर वाटर ऑपरेशनल तैयारियों से रूबरू होने के लिए कुछ घंटे आईएनएस खंडेरी (INS Khanderi) में बिताए. रक्षा मंत्री की ये पहली सी-सॉर्टी थी.  


इस दौरान सिंह ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीय नौसेना की कलवरी क्लास सबमरीन खंडेरी में चार घंटे तक सी-शोर्टी कर अंडरवाटर ऑपरेशनल क्षमताओं की समीक्षा की. आपको बता दें कि हाल के सालों में हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की पनडुब्बियां लगातार देखी जा सकती हैं. यही वजह है कि भारतीय नौसेना को सजग रहने की जरूरत है.


नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार भी थे साथ
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह कर्नाटक में कारवार में नौसेना के सामरिक बेस से आईएनएस खंडेरी में सवार हुए थे. रक्षा मंत्री को चार घंटे से अधिक समय तक स्टेल्थ सबमरीन में समंदर के अंदर के ऑपरेशन्स की क्षमताओं को दिखाया गया. रक्षामंत्री ने कार्रवाई संबंधी अनेक अभ्यासों को देखा. समुद्री यात्रा में रक्षा मंत्री को दुश्मन की एंटी सबमरीन ऑपरेशन्स का जवाब देने में स्टेल्थ सबमरीन की क्षमताओं को भी दिखाया गया. इस अवसर पर नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार तथा भारतीय नौसेना और रक्षा मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.


भारत के सामने है क्या चुनौती ?
आईएनएस खंडेरी में समुद्री यात्रा के बाद संवाददाताओं से बातचीत करते हुए श्री राजनाथ सिंह भारतीय नौसेना को आधुनिक, शक्तिशाली तथा विश्वसनीय, सतर्कता सक्षम, पराक्रमी तथा सभी स्थितियों में विजेता बल बताया. उन्होंने कहा कि आज भारतीय नौसेना की गणना विश्व की अग्रणी नौसेनाओं में की जाती है. उन्होंने कहा कि आज विश्व की सबसे बड़ी समुद्री शक्तियां भारत के साथ काम और सहयोग करने के लिए तैयार हैं. लेकिन आपको बता दें कि हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी के बीच भारतीय नौसेना को अपने जंगी बेड़े को बढ़ाने की एक बड़ी चुनौती है. चीनी नौसेना के पास इस समय 75-80 पनडुब्बियां हैं.


चीन कहां पर कर रहा है अपने मिलिट्री बेस का निर्माण ?
हाल ही में भारतीय नौसेना के आईएफसी-आईओआर की रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ने वाला स्ट्रेट ऑफ मलक्का एंड सिंगापुर (एसओएमसी) पायरेसी हब यानी समुद्री-लुटेरों का गढ़ बनता जा रहा है. क्योंकि चीन का 80 प्रतिशत तेल और दूसरा व्यापार इसी समुद्री मार्ग से होकर गुजरता है ऐसे में इस क्षेत्र में चीन की पीएलए-नौसेना की गतिविधियां बढ़ सकती हैं.


हिंद महासागर में श्रीलंका, बर्मा, पाकिस्तान और जिबूती में चीन अपने बंदरगाह और मिलिट्री-बेस तैयार कर रहा है जिसके कारण चीनी नौसेना के युद्धपोतों की मौजूदगी भी भारत की समुद्री-सीमाओं के पास बढ़ गई है. इसके अलावा पाकिस्तान के लिए भी चीन आठ (08) पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है.


भारत के पास हैं कितनी पनडुब्बियां ?
मौजूदा समय में भारतीय नौसेना के पास 17 पनडुब्बियां हैं जिनमें दो परमाणु पनडुब्बी हैं. इनमें से एक परमाणु ऊर्जा से चलने वाले पनडुब्बी, आईएनएस चक्र है जो भारत ने रूस से लीज पर ली है. प्रोजेक्ट 75 के तहत जिन छह स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन का निर्माण मझगांव डॉकयार्ड में चल रहा है उसमें से चार नौसेना की जंगी बेड़े में शामिल हो चुकी हैं. एक अन्य सबमरीन के समुद्री ट्रायल चल रहे हैं और एक को हाल ही में समंदर में लॉन्च किया गया था.


एक अनुमान के मुताबिक, भारतीय नौसेना को पूरे हिंद महासागर क्षेत्र की सुरक्षा के लिए कुल 28 पनडुब्बियों की जरूरत है. इनमें से कम से कम 18 कन्वेंशन सबमरीन होनी चाहिए यानी किलर सबमरीन (एसएसके), 06 परमाणु संचालित पनडुब्बी (न्यूक्लियर सबमरीन यानि एसएसएन) और कम से कम 04 परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियां ( न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन यानी एसएसबीएन) की जरूरत है.


कहां खड़ी है भारतीय नौसेना ?
लेकिन भारतीय नौसेना के सबमरीन प्लान को हाल ही में एक बड़ा झटका लगा है. रक्षा मंत्रालय के प्रोजेक्ट 75 आई (इंडिया) के तहत जिन पांच विदेशी कंपनियों को आरएफपी (रिक्यूसेट फॉर प्रपोजल) दी गई थी उनमें तीन ने अपना नाम वापस ले लिया है. इन पांच कंपनियों को भारत की दो कंपनियों, एमडीएल या एलएंडटी में से किसी एक को चुनकर भारत में ही इन छह सबमरीन का निर्माण करना था.


करीब 49 हजार करोड़ के इस प्रोजेक्ट 75 आई को पिछले साल यानी अप्रैल 2021 को रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिए छह नई स्टेल्थ-पनडुब्बियों के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली रक्षा खरीद परिषद ने स्ट्रेटेजिक-पार्टनरशिप मॉडल के तहत ‘प्रोजेक्ट-75 इंडिया’ (पी-75 आई) को हरी झंडी दी थी. इसके बाद जुलाई 2021 में अब रक्षा मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट के तहत छह ‘कन्वेंशनल’ स्टेल्थ सबमरीन के लिए आरएफपी जारी की थी.




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