रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अगले हफ्ते पूर्वी लद्दाख में चीन सीमा से सटे रेजांगला वॉर मेमोरियल जाकर वीरगति को प्राप्त सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे. इस दौरान वे सेना द्वारा तैयार किए गए नवीनीकृत रेजांगला वॉर मेमोरियल को देश को समर्पित करेंगे. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 18 नबम्बर को रेंजागला वॉर मेमोरियल पहुचेंगे. खास बात ये है कि उसी दिन रेंजागल लड़ाई को 59 साल पूरे हो रहे हैं. 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के दौरान भले ही भारत को मुंह की खानी पड़ी हो, लेकिन रेजांगला के युद्ध में भारतीय सेना की कुमाऊं रेजीमेंट ('13 कुमाऊं') के सैनिकों ने चीनी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे.


नए वॉर मेमोरियल पर रेजांगला युद्ध के वीर सैनिकों के नाम तो होंगे ही साथ ही पिछले साल यानी 2020 में चीना सेना के साथ हुए गलवान घाटी की हिंसा में सर्वोच्च बलिदान देने वाले सैनिकों के नाम भी लिखे जाएंगे.


रेजांगला की लड़ाई में अदम्य साहस और वीरता के लिए भारतीय टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था. लड़ाई के बाद मेजर शैतान सिंह के पार्थिव शरीर को जब युद्धस्थल से उठाया गया था तो उनकी उंगली अपनी राइफल के ट्रिगर पर थी. यानी मरते दम तक वे चीनी सैनिकों से लोहा लेते रहे थे. कहा जाता है कि रेजांगला की लड़ाई में चीन के खिलाफ लड़ते हुए मेजर शैतान सिंह और उनके सभी साथियों का एम्युनेशन यानी गोलियां और गोला-बारूद खत्म हो गया था. इसके बाद भी कुमाउं रेजीमेंट की इस 'सी' कंपनी ने चीनी सैनिकों के सिर पकड़-पकड़कर पहाड़ देकर मौत के घाट उतार दिया था. लेकिन बाद में चीनी सेना की तादाद ज्यादा होने के चलते 120 में से 114 सैनिकों वीरगति को प्राप्त हो गए और बाकी 6 सैनिकों को चीन की पीएलए सेना ने युद्धबंदी बना लिया था. बाद में इस सी कंपनी को हमेशा के लिए रेजांगला कंपनी का नाम दे दिया गया. ये भारतीय सेना की एकमात्र ऐसी कंपनी है जो किसी नाम से जानी जाती है. अन्यथा सभी कंपनियों के नाम ए, बी, सी इत्यादि होते हैं.


रेजांगला की लड़ाई की याद में मशहूर गीतकार प्रदीप ने 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाना लिखा था. इस गाने को जब लता मंगेशकर ने गाया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखे भर आई थीं.


पिछले साल यानी 2020 में जब भारत और चीन का एलएसी पर तनाव एक बार फिर से शुरू हुआ था तो भारतीय सेना ने चीन के खिलाफ इसी चुशूल सेक्टर के रेचिन ला दर्रा सहित कैलाश हिल रेंज पर 'प्री-एम्टिव स्ट्राइक' कर चीन की पीएलए सेना के छक्के छुड़ा दिए थे. इस प्री-एम्टीव स्ट्राइक का ही नतीजा था कि चीनी सेना फिंगर एरिया से पीछे हटने के लिए तैयार हुई थी. उस दौरान भारतीय सेना ने अपनी टैंक ब्रिगेड और मैकेनाइज्ड व्हीकल्स को भी वहां तैनात किया था. हालांकि, इसी साल के शुरूआत में दोनों देशों के बीच हुए पहले चरण के डिसइंगेजमेंट एग्रीमेंट के बाद दोनों देशों की सेनाओं ने अपने अपने टैंक और मैकेनाइज्ड कॉल्मस पीछे कर लिए थे.


गौरतलब है कि 1962 के युद्ध के दौरान भारतीय सेना को पूर्वी लद्दाख के रेजांगला और चुशुल इलाके में टैंकों की कमी बेहद खली थी. उस वक्त वायुसेना के एएन-32 विमान के जरिए कुछ विमानों को भेजा जरुर गया था, लेकिन उनमें बेहद दिक्कत आई थी.


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