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राजू पाल हत्याकांड: प्रयागराज में 18 साल पहले लोगों ने ऐसा मर्डर सिर्फ फिल्मों में देखा था

25 जनवरी, 2005 को राजू पाल स्वरूप रानी नेहरू (एसआरएन) अस्पताल से अपने घर लौट रहे थे. तभी स्कॉर्पियो कार पर सवार कुछ हमलावरों ने राजू पाल पर धड़ाधड़ गोलियां चला दी.

उत्तर प्रदेश में अपराध और राजनीति साथ-साथ चलते हैं.  इसका एक उदाहरण 24 फरवरी को देखने को मिला. जब प्रयागराज में उमेश पाल की हत्या तीन अज्ञात हमलावरों ने गोली मार कर कर दी. उमेश पाल साल 2005 में राजू पाल की हत्या के एकलौते गवाह थे. 

उमेश पाल राजू पाल के साले थे और 18 साल पहले 25 जनवरी 2005 को हुई हत्या के मुख्य गवाह थे. लगभग दो दशकों से चल रहे इस मामले में अगले 6 हफ्तों में एमपी/एमएलए कोर्ट का फैसला भी आना था. 

उमेश पाल की हत्या के मामले में यूपी पुलिस ने अतीक के भाई, उसकी पत्नी सहिस्ता परवीन और उसके बेटों अहजान और अबान के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.  पुलिस ने अतीक अहमद के बेटे समेत कुल 14 लोगों को भी पूछताछ के लिए हिरासत में लिया है. मामले में आरोपियों को पकड़ने के लिए प्रयागराज के संयुक्त सीपी के नेतृत्व में कुल 10 टीमों का गठन किया गया है.

उमेश पाल की पत्नी जया ने आरोप लगाया कि , 'अतीक अहमद के बेटे गुड्डू मुस्लिम और गुलाम ने मेरे पति पर हमला करवाया है, उन्होंने गोलियां चलाईं और उन पर देसी बम फेंके. हमले के बाद उमेश को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. 

उमेश पाल की हत्या के दिन क्या हुआ था?

सीसीटीवी फुटेज रिकॉर्डिंग के मुताबिक उमेश पाल और उनके दो बॉडीगार्ड सफेद हुंडई क्रेटा में बैठे थे, तभी छह हमलावर कार के पास आए और गोलियां चलानी शुरू कर दी. उमेश पाल ने भागने की कोशिश की लेकिन तब तक उमेश पर हमला किया जा चुका था. जिससे उनकी मौत हो गई. 

राजू पाल मर्डर केस क्या था ?

तीन दिन पहले यानी 24 फरवरी को उमेश पाल के साथ जो हुआ, उसके तार 2005 की घटनाओं से जुड़े हैं. राजू पाल एक नेता थे जो प्रयागराज में अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी अतीक अहमद और उनके परिवार के खिलाफ अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत करना चाहते थे.

 
2002 के विधानसभा चुनाव में राजू पाल ने प्रयागराज पश्चिम सीट से अतीक अहमद के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. 2004 में यही सीट अतीक के इस्तीफे से खाली हुई थी, उस समय अतीक लोकसभा चुनाव में फूलपुर सीट से सांसद बने थे. अतीक ने अपने भाई खालिद अजीम उर्फ मोहम्मद अशरफ को अपनी सीट संभालने के लिए चुना. चूंकि अतीक पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के करीबी सहयोगी थे, इसलिए राजू पाल को यादव की कट्टर प्रतिद्वंद्वी मायावती का समर्थन मिला और  उनको बीएसपी से टिकट मिल गया.

पाल ने खालिद अजीम को 4,818 सीटों के मामूली अंतर से हराया. अब चूंकि अतीक 1989 के बाद से पांच बार इस सीट से जीत चुके थे, और राजू पाल की वजह से पहली बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसलिए अतीक के परिवार ने इस हार को अपनी आन पर ले लिया. 

पहले कार से किया पीछा, फिर चला दी दनादन गोलियां 

25 जनवरी, 2005 को राजू पाल स्वरूप रानी नेहरू (एसआरएन) अस्पताल से अपने घर लौट रहे थे. राजू पाल इस हॉस्पिटल में एक लड़के के शव का पोस्टमार्टम जल्दी करने को कहने आए थे. लड़का राजू पाल के निर्वाचन क्षेत्र का ही था. रिपोर्टस ये दावा करती हैं कि दोपहर से ही दो कारें राजू पाल का पीछा कर रही थी.

राजू पाल अस्पताल से निकले और टोयोटा क्वालिस में बैठे. राजू कार खुद ड्राइव कर रहे थे. स्कॉर्पियो कार से कुछ लोग उनका पीछा कर रहे थे. 
रास्ते में पाल अपने समर्थक सादिक की बहन रुकसाना को लिफ्ट देने के लिए रुके. नेहरू पार्क में सुलेम सराय से लगभग कुछ मीटर की दूरी पर कार में सवार हमलावरों ने राजू पाल की कार को कब्जे में ले लिया और सेकंड के भीतर ही धड़ाधड़ फायरिंग शुरू हो गयी. उस दिन राजू पाल को मारने के लिए लगभग 25 शार्प शूटर आए थे और उनके पास सभी तरह के अत्याधुनिक हथियार थे.

चश्मदीदों के मुताबिक फायरिंग के बाद राजू पाल को लोग टेंपों में डालकर अस्पताल की ओर भागे. मर्डर करने आए शॉर्प शूटरों को लगा कि शायद विधायक राजू पाल बच गए हैं. वे फिर आए और कई किलोमीटर तक टेंपों पर फायरिंग करते रहे. अस्पताल पहुंचते-पहुंचते राजू पाल का शरीर छलनी हो चुका था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में 15 से ज्यादा गोलियां लगने की बात सामने आई. राजू पाल की मौके पर ही मौत हो गई. उनके साथ उनके दो बॉडीगार्ड संदीप यादव और देवीलाल की भी मौत हो गई.

विधायक राजू पाल की 9 महीने पहले ही शादी हुई थी. बीएसपी कार्यकर्ताओं को जब विधायक राजू पाल की हत्या की खबर मिली तो पूरे शहर में तोड़फोड़ शुरू कर दी. राजू की मौत के बाद हुए फूलपुर विधानसभा उपचुनाव में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को अतीक के भाई अशरफ के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. लोगों का कहना था कि कोई भी अतीक से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता था. ऐसे में किसी को उनके भाई के खिलाफ वोट डालने की हिम्मत नहीं हो रही थी.

पाल की मौत के बाद 9 लोगों के खिलाफ एफआईआर हुई थी दर्ज 

पाल की मौत के तुरंत बाद, उनकी पत्नी पूजा पाल ने अतीक अहमद और उनके भाई मोहम्मद अशरफ और अतीक के आदमियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई. इसमें फरहान, आबिद, रंजीत पाल, गुफरान का नाम शामिल था. कुल मिलाकर, कई आरोपों के तहत 9 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गयी. 

राजू पाल पर पहले भी हुआ था हमला

हैरानी की बात यह है कि यह पहली बार नहीं था जब राजू पाल पर अतीक अहमद के आदमियों ने हमला किया था. चुनाव जीतने के बाद अतीक के आदमियों ने पाल पर दो बार हमला किया था . राजू को अतीक से डर था इसलिए उन्होंने अपने लिए सुरक्षा की मांग भी की थी. लेकिन राजू को जो सुरक्षा मिली वो काफी नहीं थी. 

राजू पाल की मौत के बाद फूलपूर सीट किसे मिली

राजू पाल की मौत यह सीट खाली रह गई थी. 2005 में उपचुनाव हुए तो अतीक के भाई ने इस सीट पर फिर से जीत दर्ज की थी. 2007 में इस सीट पर अपना दल की टिकट से पूजा पाल ने जीत दर्ज की.  साल 2012 में भी पूजा पाल ने अतीक अहमद को हरा दिया. 2017 में पूजा पाल बीजेपी के सिद्धार्थ नाथ सिंह से हार गई.  2022 में, पूजा पाल को समाजवादी पार्टी की तरफ से टिकट मिला और उन्होंने चायल निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की . 

उमेश पाल की हत्या के पीछे की गुत्थी

उमेश पाल की हत्या के पीछे की कहानी बहुत रहस्यमयी है. वजह यह है कि उमेश पाल अतीक अहमद के काफी करीबी हो गए थे. उनके अपनी बहन पूजा पाल के साथ रिश्तों में खटास थी. भाई-बहन ने 2005 से 2016 तक एक-दूसरे से बात नहीं की.  एक समय उमेश ने कोर्ट में अतीक अहमद के पक्ष में बयान भी दिया था. इससे पूजा पाल नाराज हो गईं.

पूजा पाल के मुताबिक, दोनों  भाई -बहन के  बीच बातचीत का सिलसिला तब शुरू हुआ जब साल 2016 में उमेश कुछ साथियों के साथ उनके घर पर माफी मांगने आए. फिर भी पूजा पाल अतीक अहमद से अपने भाई के संबंध पूरी तरह से नहीं तोड़ने की बात को लेकर नाराज थी. पूजा को उमेश पाल के अंतिम संस्कार में उनके परिवार के साथ बहस करते हुए भी देखा गया था .

अतीक की हिस्ट्री जानिए 

अतीक फिल्हाल गुजरात की जेल में बंद है. अतीक पर सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज के कर्मचारियों पर हमला कराने का आरोप है. उनका राजनीतिक सफर 1989 में तब शुरू हुआ था जब उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में प्रयागराज पश्चिम से विधायक सीट जीती थी. अगले दो विधानसभा चुनावों में अपनी सीट बरकरार रखने के बाद, अहमद सपा में शामिल हो गए और 1996 में लगातार चौथी बार जीत हासिल की.  तीन साल बाद, वह अपना दल का हिस्सा बन गए और 2002 में एक बार फिर सीट जीती.

2004 में सपा में लौटने के बाद फूलपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने, जो एक सीट कभी भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के पास थी. 

अतीक को पहला बड़ा झटका तब लगा जब उनका नाम राजू पाल की हत्या के मामले में आया. उनपर FIR दर्ज हो गयी.  इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक राजनीतिक और पुलिस के दबाव की वजह से, अतीक अहमद ने 2008 में आत्मसमर्पण कर दिया और 2012 में रिहा हो गया. इसके बाद उन्होंने सपा के टिकट पर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए.  इस दौरान अतीक के रिश्ते सपा के साथ खराब होना शुरू हो गए और अतीक के हालात बदतर होने लगे.  

अखिलेश यादव ने आपराधिक रिकॉर्ड की वजह से अतीक अहमद से दूरी बना ली थी. फरवरी 2017 में, अतीक को प्रयागराज में सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज के कर्मचारियों पर हमला करने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था.  जेल में होने के बावजूद अतीक ने 2019 में वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा और उन्हें  महज 855 वोट मिले.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, 60 साल के अतीक अहमद पर हत्या, हत्या के प्रयास, आपराधिक धमकी और हमले के 70 से ज्यादा मामलों पर केस दर्ज है. 

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