(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
राज्यसभा उपसभापति चुनाव: किस कन्फ्यूज़न में फंसी हैं मायावती
पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से ही बीएसपी की चाल ढाल बदली हुई है. पार्टी कई मौक़ों पर बीजेपी के साथ खड़ी नज़र आई. सच तो ये है कि बीएसपी धर्म संकट में है. उसे कांग्रेस का अभी विरोध करना है और बीजेपी का भी.
नई दिल्ली: एक बार फिर बीएसपी ऐन मौक़े पर पलट गई. उसने विपक्षी एकता की हवा निकाल दी. राज्यसभा में उपसभापति के चुनाव में पार्टी के एमपी वोट डालने नहीं आए. इस बार विपक्ष ने एकजुट होकर आरजेडी के मनोज झा को उम्मीदवार बनाया था. ये फ़ैसला कई पार्टियों ने मिल कर किया था. कांग्रेस की तरफ़ से सबसे बात भी कर ली गई थी. जानकारी मिली है कि विपक्ष के उम्मीदवार को जिताने के लिए कांग्रेस ने बीएसपी से बात कर ली थी. मनोज झा ने भी बीएसपी के बड़े नेताओं से बात कर समर्थन की अपील की थी.
उपसभापति के चुनाव को लेकर आज मतदान हुआ. लेकिन उससे पहले ही बीएसपी सुप्रीमो मायावती का फ़ोन आ गया. फ़ोन पर बहनजी ने वोटिंग में ग़ैर-हाज़िर रहने को कहा. बीएसपी के सांसदों के सदन में रहने या न रहने से नतीजों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. लेकिन मायावती ने एक बार फिर विपक्षी एकता का माहौल बिगाड़ दिया.
राज्यसभा में वोटिंग के तुरंत बाद कांग्रेस के एक सांसद ने कहा कि मायावती पर कैसे भरोसा करें. उनका व्यवहार तो बीजेपी की बी टीम जैसा होता जा रहा है. ये पहला मौक़ा नहीं है जब मायावती ने अपने फ़ैसले से सबको चौंकाया है. राज्यसभा में तीन तलाक़ के बिल पर भी पार्टी का यही रुख रहा. शुरुआत में ऐसा लगा और बताया गया कि बीएसपी इसके ख़िलाफ़ वोट करेगी. लेकिन राज्यसभा में जब बिल आया तो पार्टी के सभी सांसद ग़ायब रहे. किसी ने बीमारी का बहाना बनाया तो किसी ने समय पर न पहुंच पाने का. मायावती ने खुले तौर पर न तो तीन तलाक़ का समर्थन किया न ही विरोध.
पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से ही बीएसपी की चाल ढाल बदली हुई है. पार्टी कई मौक़ों पर बीजेपी के साथ खड़ी नज़र आई. सच तो ये है कि बीएसपी धर्म संकट में है. उसे कांग्रेस का अभी विरोध करना है और बीजेपी का भी. मायावती को लगता है कि अगर यूपी में कांग्रेस मज़बूत हुई तो फिर उसका दलित वोट खिसक सकता है. बीजेपी पहले ही उसका स्टेपनी यानी अति पिछड़ों का वोट ले जा चुकी है. ऐसे में मायावती को न माया मिलेगी न राम. लेकिन इस चक्कर में बीएसपी कन्फ़्यूज़ हो गई है.
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