नई दिल्ली: राज्यसभा में सोमवार को इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (संशोधन) बिल पास हो गया जो निगमित दिवाला समाधान प्रक्रिया (CORPORATE INSOLVENCY RESOLUTION PROCESS) को समयबद्ध ढंग से पूरा करने और शेयरधारकों के हितों के बारे में अधिक स्पष्टता देने के उद्देश्य से लाया गया है. विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से मूल कानून में किये गये संशोधनों की काफी समय से जरूरत महसूस की जा रही थी. उन्होंने कहा कि विधेयक के जरिये सात खंडों का संशोधन किया जाएगा. इनका मकसद कानून की अस्पष्टता को दूर करना है. वित्त मंत्री के जवाब के बाद उच्च सदन ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया.
इससे पहले वित्त मंत्री ने कहा कि बदलते भारत की भावना में हमें इस तरह के कानूनों की जरूरत है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि मूल कानून के जरिये चूककर्ताओं को कानून का सामना करना ही पड़ेगा. सीतारमण ने स्पष्ट किया कि समाधान प्रक्रिया हो जाने के बाद किसी कंपनी या उद्यम के नये बोलीदाता या चलाने वालों पर टैक्स अधिकारियों का कोई दबाव नहीं रहेगा क्योंकि पुराना ऋण या अपराध उनका नहीं है बल्कि कंपनी चलाने वाले पुराने लोगों या व्यक्ति का है. उन्होंने कहा कि विधायिका संविधान में प्रदत्त अधिकारों के तहत इस विधेयक के जरिए संशोधन ला रही है. उन्होंने कहा कि हम अपने अनुभवों के आधार पर समय-समय पर मूल संहिता में संशोधन ला रहे हैं.
वित्त मंत्री ने कहा कि समाधान के तहत हमारा मकसद मर्जर, पुनर्विलय आदि की प्रक्रिया में स्पष्टता लाना हैं. उन्होंने कहा कि सीआईआरपी (निगमित दिवाला समाधान प्रक्रिया) 330 दिनों में होगी. विधेयक के कारणों और उद्देश्यों के अनुसार मूल कानून में प्रस्तावित संशोधनों से आवेदनों को समय रहते स्वीकार किया जा सकेगा और निगमित दिवाला समाधान प्रक्रिया को समय रहते पूरा किया जा सकेगा. विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि संबंधित प्राधिकार द्वारा किसी आवेदन को 14 दिनों के भीतर स्वीकार या खारिज नहीं किया गया तो उसे इसके बारे में लिखित में कारण बताना पड़ेगा.
विधेयक में सीआईआरपी (निगमित दिवाला समाधान प्रक्रिया) के पूरा होने की एक समय सीमा तय की गयी है जिसमें 330 दिनों की कुल सीमा रखी गयी है. इसी सीमा के भीतर मुकदमे और अन्य न्यायिक प्रक्रिया शामिल होंगी.
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