नई दिल्ली: सात साल बाद अयोध्या के जमीन विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई लेकिन सुनवाई अब 5 दिसंबर तक टल गई. 5 दिसंबर की तारीख इसलिए अहम है कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा था. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वो पहले इस केस के मुख्य पक्षकारों रामलाल विराजमान, निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड को सुनेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से 3 महीने में दस्तावेजों का अनुवाद करने को कहा. मामले से जुड़े पक्ष उन दस्तावेजों का अनुवाद करेंगे जिन्हें उन्होंने हाई कोर्ट में रखा था. यूपी सरकार हाई कोर्ट में हिंदी में रखी गई दलीलों का अनुवाद करेगी.

मुख्य बातें
* कोर्ट ने कहा, हम पहले मुख्य पक्षों को सुनेंगे. अर्ज़ी दाखिल करने वाले दूसरे लोगों को सुनने पर बाद में फैसला होगा
* सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 7 भाषाओं में मौजूद मूल दस्तावेजों का अब तक अनुवाद न होने का हवाला दिया
* कोर्ट ने कहा- जो पक्ष जिस दस्तावेज का हवाला देना चाहता है, वो खुद उसका अनुवाद कराए. अगर दूसरा पक्ष अनुवाद पर एतराज़ करेगा तो विशेषज्ञ से पूछेंगे
* राम लला विराजमान के वकील ने 1 महीने में अनुवाद की बात कही. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा- उसे कम से कम 4 महीने लगेंगे.

क्या है अयोध्या भूमि विवाद :-

हिन्दू पक्ष ये दावा करता रहा है कि अयोध्या में विवादित जगह भगवान राम का जन्म स्थान है. जिसे बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1530 में गिरा कर वहां मस्ज़िद बनाई. मस्ज़िद की जगह पर कब्जे को लेकर हिन्दू-मुस्लिम पक्षों में विवाद चलता रहा. दिसंबर 1949, मस्जिद के अंदर राम लला और सीता की मूर्तियां रखी गयीं.

जनवरी 1950 में फैजाबाद कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ. गोपाल सिंह विशारद ने पूजा की अनुमति मांगी. दिसंबर 1950 में दूसरा मुकदमा दाखिल हुआ. राम जन्मभूमि न्यास की तरफ से महंत परमहंस रामचंद्र दास ने भी पूजा की अनुमति मांगी. किनका क्या है दावा? अब तक क्या हुआ है फैसला...हर वो कहानी जिसे आपको जरूर जानना चाहिए यहां क्लिक करके पढ़ें