अयोध्या: अयोध्या भूमि विवाद का फ़ैसला आने के बाद अगर किसी चीज़ में थोड़ा भी बदलाव नहीं हुआ है तो वो है रामलला की दिनचर्या. पहले की ही तरह भगवान राम जिस स्थान पर विराजमान हैं, वहां आरती, भोग और दर्शन हमेशा की तरह चल रहे हैं. आज हम आपको रामलला की दिनचर्या के बारे में बताएंगे कि कैसे पूरे नियम और विधिविधान से रामलला की देखरेख की जाती है. चाहे वो मंगला आरती हो, भोग जो या फिर विश्राम, रामलला की दिनचर्या हमेशा की तरह सामान्य रखी गई है.


रामलला के मुख्य पुजारी सतेंद्र दास जी महाराज के मुताबिक़ रामलला की दिनचर्या सुबह 5 बजे से शाम 7 बजे तक चलती है. इस दौरान सबसे पहले भगवान के उठने पर मंगला आरती आयोजित की जाती है. इसके बाद भोर के प्रसाद का भोग लगाया जाता है. इन सबमें क़रीब 2 घंटे का समय लगता है.


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फिर सुबह 7 बजे से भगवान अपने भक्तों को दर्शन देते हैं. दर्शन का समय सुबह 7 से 11 बजे तक होता है. इसके बाद 11 बजते ही मंदिर दर्शन के लिए बन्द हो जाता है. 11 बजे भोगराग यानी दोपहर का भोजन दिया जाता है. 11.30 बजे रामलला विश्राम करते हैं. फिर 1 बजे से भगवान का दर्शन पूजन शाम 5 बजे तक चलता है.


शाम 5 बजे फिर से भोग लगाकर आरती होती है. और फिर शाम 7 बजे शयन आरती और भोग का आयोजन होता है. रामलला को किसी तरह की दिक्कत न हो, इसके भी सारे प्रबंध पुजारी की तरफ से किये जाते हैं. ठंड के मौसम में रामलला को गर्म कपड़े दिए जाते हैं तो गर्मियों में रामलला के आगे पंखा लगाया जाता है.


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साथ ही भोग की बात करें तो भगवान को हर तरह के पकवान भोग में चढ़ाए जाते हैं. सुबह मेवा मिश्री के साथ मिठाई दिया जाता है. दोपहर में पूड़ी सब्ज़ी के साथ साथ कभी खीर तो कभी चावल दाल तो कभी सब्ज़ी रोटी भी चढ़ाई जाती है.


रामलला पर आने वाले इस ख़र्च के लिए भी प्रावधान किया गया है. भक्तों की तरफ़ से जो चढ़ावा आता है, उसी में से 30 हज़ार रुपये प्रतिमाह आरती, भोग और प्रसाद के लिए मुख्य पुजारी को दिया जाता है. साथ ही पारिश्रमिक के तौर पर मुख्य पुजारी को 13 हज़ार रुपये, सहायक पुजारियों को 8-8 हज़ार रुपये, भंडारी को 6 हज़ार रुपये दिए जाते हैं.


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ऐसे में कुल ख़र्च एक लाख 2 हज़ार रुपये महीना आता है. इस ख़र्च की निगरानी के लिए एक कमिटी है, जो रोज़ के चढ़ावे को नियमित तौर पर बैंक में जमा कराती है और इसी में से रामलला का पूरा ख़र्च निकाला जाता है.


इसके अलावा रामलला को प्रसाद का भोग लगाने वाले हलवाई हों या फिर माला की आपूर्ति देने वाले माली, सबका कहना है कि उन्हें मंदिर के मुख्य पुजारी की तरफ़ से प्रति माह पैसे दिए जाते हैं, जिससे वो संतुष्ट हैं. हलवाई और माली के मुताबिक रामलला की सेवा का मौका मिलना ही बड़ी उपलब्धि है इसलिए उन्हें ज़्यादा की उम्मीद नहीं है.


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हलवाई को खुरचन पेड़े का प्रति किलो 200 रुपये का ख़र्च मिलता है, वहीं रोज़ आरती के समय 5 माला पुजारी को देने वाले माली को प्रति माह 1000 रुपये मिलते हैं. कुछ ऐसा ही कहना उस टेलर का है, जिसकी 4 पीढ़ियां रामलला के पोषक सिलने में लगी हैं.


शंकर लाल नाम के टेलर की दुकान में सिर्फ भगवान के पोशाक सिले जाते हैं. यहां रामलला के अलावा अन्य मंदिरों के भगवान के पोशाक भी बनाये जाते हैं. टेलर का कहना है कि साल में रामनवमी के मौके पर सरकार की तरफ़ से रामलला के 7 वस्त्र सिलवाये जाते हैं.


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ये सभी 7 पोशाक सातों दिनों के हिसाब से अलग अलग रंग के होते हैं. उन्होंने बताया कि प्रत्येक पोशाक का 500 रुपये सिलाई मिलता है. शंकर लाल और उनके भाई पहाड़ी टेलर का कहना कि कई ऐसे भक्त होते हैं जो चढ़ावा चढ़ाने के लिए पोशाक का कपड़ा लाकर देते हैं, ताक़ि उनके ज़रिए रामलला को पोशाक पहनाई जा सके. टेलर चाहते हैं कि उन्हें स्थायी तौर पर सरकार रामलला के पोशाक सिलने का काम दे दे तो उन्हीं खुशी होगी.