अयोध्या विवाद: मध्यस्थ नियुक्त किये जाने पर श्री श्री रविशंकर ने कहा- सबका सम्मान करना लक्ष्य
अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यों का एक पैनल नियुक्त किया है. जिसमें श्री श्री रविशंकर भी शामिल हैं. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि समाज में समरसता बनाए रखना, इस लक्ष्य की ओर सबको चलना है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए पूर्व जस्टिस एफएम खलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यों का पैनल गठित किया है. इस पैनल में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचु हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल और सदस्यों को शामिल कर सकता है और इस संबंध में किसी भी तरह की परेशानी पर वह शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को जानकारी दे सकता है.
मध्यस्थ नियुक्त किये जाने पर श्रीश्री रविशंकर ने पहली प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ''सबका सम्मान करना, सपनों को साकार करना, सदियों के संघर्ष का सुखांत करना और समाज में समरसता बनाए रखना - इस लक्ष्य की ओर सबको चलना है.''
मध्यस्थता का रामलला विराजमान और अन्य संगठन विरोध कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट में पिछली सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने भी मध्यस्थता का विरोध किया था. वहीं बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी, सुन्नी वक्फ बोर्ड इसके पक्ष में है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने दावा किया है कि निर्मोही अखाड़ा इसके समर्थन में है.
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि मध्यस्थता कार्यवाही उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में होगी और यह प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर शुरू हो जानी चाहिए. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
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पीठ ने कहा कि मध्यस्थता करने वाली यह समिति चार सप्ताह के भीतर अपनी कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट दायर करेगी. पीठ ने कहा कि यह प्रक्रिया आठ सप्ताह के भीतर पूरी हो जानी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने कहा कि मध्यस्थता कार्यवाही की सफलता सुनिश्चित करने के लिए ‘अत्यंत गोपनीयता’ बरती जानी चाहिए और प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस कार्यवाही की रिपोर्टिंग नहीं करेगा.
पीठ ने कहा कि मध्यस्थता समिति इसमें और अधिक सदस्यों को शामिल कर सकती है और इस संबंध में किसी भी तरह की परेशानी की स्थिति में समिति के अध्यक्ष शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को इसकी जानकारी देंगे.
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 याचिकाएं दायर हुई हैं. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांट दी जाए.