नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव नजदीक है और एक बार फिर राम मंदिर का मसला बहस के केंद्र में है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को आज यह तय करना है कि अयोध्या के मसले पर विस्तृत सुनवाई कब हो. इससे पहले अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख जनवरी के पहले हफ्ते तक के लिए टाल दिया था. तभी से एक पक्ष सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठा रहा है. उनका कहना है कि राम मंदिर पर फैसलों में हो रही देरी की वजह से हिंदू आस्था को चोट पहुंची है.


वीएचपी, शिवसेना और आरएसएस राम मंदिर को लेकर सरकार पर कानून लाए जाने का दबाव बना रही है. हालांकि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ-साफ कह दिया है कि सरकार अध्यादेश नहीं लाएगी.


पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था, ''राम मंदिर पर हमारी सरकार अध्यादेश नहीं लाएगी. कानूनी प्रक्रिया के बाद ही राम मंदिर पर फैसला किया जाएगा. राम मंदिर को लेकर जब तक कानूनी प्रक्रिया चल रही है तब तक अध्यादेश लाने का विचार नहीं है."


उन्होंने कांग्रेस पर देरी करने के आरोप लगाए. मोदी ने कांग्रेस के पूर्व सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की ओर इशारा करते हुए कहा कि कानूनी प्रक्रिया इसलिए धीमी है, क्योंकि वहां कांग्रेस के वकील हैं जो सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में रुकावट पैदा कर रहे हैं.


प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद मिलीजुली प्रतिक्रिया मिल रही है. सत्तापक्ष में बैठी पार्टियां बयान का स्वागत कर रही हैं तो वहीं विरोधी नेता धोखा देने का आरोप लगा रहे हैं.


आरएसएस
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने प्रधानमंत्री के बयान के बाद ट्वीट कर कहा, ''हमें आज का प्रधानमंत्री जी का वक्तव्य मंदिर निर्माण की दिशा में सकारात्मक कदम लगता है. प्रधानमंत्री ने अयोध्या में श्रीराम के भव्य मंदिर बनाने के संकल्प का अपने साक्षात्कार में पुनः स्मरण करना यह बीजेपी के पालमपुर अधिवेशन (1989) में पारित प्रस्ताव के अनुरूप ही है.''


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वीएचपी
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार अनंत काल तक नहीं कर सकते. हमने पीएम से मिलने का समय मांगा है. वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष आशोक कुमार ने कहा कि हम राम मंदिर पर पीएम मोदी के बयान से सहमत नहीं हैं. हमारे पास पीएम मोदी पर दबाव बनाने का अधिकार है.


शिवसेना
शिवसेना बीजेपी की मंशा पर सवाल उठाए हैं. शिवसेना का कहना है कि मोदी के लिए भगवान राम कानून से बढ़कर नहीं हैं. शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा, ''सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राम मंदिर तत्काल रूप से देखने के लिए महत्वपूर्ण विषय नहीं है, पीएम मोदी ने अलग क्या कहा? भूमिका स्पष्ट करने के लिए मोदी का अभिनंदन, राम मंदिर के लिए अध्यादेश नहीं निकालेंगे, इनका संवैधानिक तरीके का अर्थ ऐसा कि प्रभु श्रीराम कानून से बड़े नहीं हैं.''


इकबाल अंसारी
अयोध्या मामले पर पीएम मोदी के बयान पर बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा कि हम उनके बयान का स्वागत करते हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट में है लिहाजा इस पर अध्यादेश या कानून की कोई जरूरत नहीं है. कानून पहले से ही बना है, जो भी फैसला होगा दोनों पक्षों को मान्य होगा.


रामविलास पासवान
एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्ट (एलजेपी) अध्यक्ष रामविलास पासवान ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात को दोहराया. उन्होंने कहा, ''हम पहले से ही कहते रहे हैं कि कोर्ट से या आम सहमति से ही राम मंदिर का समाधान हो सकता है और सरकार कोई अध्यादेश या बिल नहीं लाएगी.'' इसके साथ ही पासवान ने कांग्रेस पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की नीति इस मुद्दे पर दोहरी है. कांग्रेस को बताना चाहिए कि वो पीएम के बयान का स्वागत करती है कि नहीं.


कांग्रेस
कांग्रेस प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने कहा कि कोर्ट के फैसले को ही माना जाएगा. हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नजदीक से नजर बनाए हुए हैं. यह एक कानूनी प्रक्रिया है.


जेडीयू
राम मंदिर पर एनडीए में शामिल नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने अपने पुराने रुख को दोहराया है. जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि हमने पहले भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला है और यह कोर्ट ही सुलझाए. हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए.