आज जब राम मंदिर का भूमि पूजन होने जा रहा है तो एक मशहूर शायर अल्लामा इकबाल को याद करना जरूरी हो जाता है. उन्होंने राम के नाम एक नज्म ‘एमाम-ए-हिंद राम’ लिखकर गंगा-जमुनी तहजीब का परिचय दिया. शायर-ए-मशरिक ने अपनी नज्म में राम की कल्पना इमाम से की.


लबरेज है शराब-ए-हकीकत से जाम-ए-हिंद


सब फलसफी हैं खित्ता-ए-मगरिब के राम-ए-हिंद


ये हिंदियों की फिक्र-ए-फलक-रस का है असर


रिफअत में आसमां से भी ऊंचा है बाम-ए-हिंद


इस देश में हुए हैं हजारों मलक सरिश्त


मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिंद


है राम के वजूद पे हिन्दुस्तां को नाज


अहल-ए-नजर समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद


एजाज इस चराग-ए-हिदायत का है यही


रौशन तर-अज-सहर है जमाने में शाम-ए-हिंद


तलवार का धनी था शुजाअत में फर्द था


पाकीजगी में जोश-ए-मोहब्बत में फर्द था


1908 में शायर-ए-मशरिक की लिखी नज्म प्रसिद्ध संग्रह ‘बांग-ए-दरा’ में शामिल है. जिसमें अल्लामा इकबाल पूर्वाग्रह के पर्दे से हटकर राम के बारे में लोगों को चिंतन का पैगाम देते हैं. उन्होंने राम के व्यक्तिव को बताने के लिए अहले नजर और इमाम जैसे शब्दों का सहारा लिया है. अहले नजर के जरिए इकबाल की मंशा आंखों की नजर नहीं बल्कि रूहानी नजर है. रूहानी नजर वाला व्यक्ति ही सही को सही और गलत को गलत कहने, समझने की ताकत रखता है. वक्त के धारे के आगे उसकी बात अटल होती है. फिर उन्होंने राम को इमाम से भी मुखातिब किया है. इमाम का अर्थ होता है नेतृत्वकर्ता लेकिन इकबाल की नजर में इमाम का अर्थ बहुत ऊंचा है. उनका मतलब एक ऐसा शख्स जो लोगों को सही मार्ग दिखाए. उन्हें अंधेरे रास्ते की भूलभुलैयों से निकालकर उजाले की तरफ लाए. इकबाल की नजर में राम एक ऐसे नेतृत्वकर्ता हैं जो लोगों को नेकी और सच्चाई का मार्ग दिखानेवाले हैं.


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