Ram Mandir Inauguration: आगामी 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले देश के चुनिंदा राम मंदिरों में अयोध्‍या से कलश भेजे गए हैं. मार्तंड सूर्य मंदिर भी उनमें से एक है, जहां पर कलश स्थापना की गई. इस कलश स्‍थापना उत्सव में शामिल होने के लिए न सिर्फ बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित, बल्कि देश के कई हिस्सों से श्रद्धालुओं ने श‍िरकत की. 


इस अवसर पर मंद‍िर सम‍ित‍ि की तरफ से एक खास पूजा का आयोजन भी किया गया और कलश को मंदिर के अंदर रखा गया. वहां मौजूद लोगों ने देश में शांति और समृद्धि के लिए विशेष प्रार्थना की. 


अनंतनाग में एक और मार्तंड मंदिर है, जो 1700 साल पुराना है. हालांकि, इसके सिर्फ अवशेष बचे हैं. जिस तरह बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई थी. उसी तरह 7वीं-8वीं शताब्दी में इसे भी मुगलों ने तोड़ दिया था. पहले ये मंदिर काफी समृद्ध और सूर्य उपासकों के लिए आस्था का केंद्र हुआ करता था. 


धार्मिक आयोजन की मेजबानी का मंदिर को म‍िला बड़ा सम्मान


मार्तंड मंदिर मट्टन के अध्यक्ष अशोक कुमार ने धार्मिक आयोजन की मेजबानी के लिए मंदिर को दिए गए महत्वपूर्ण सम्मान पर बल द‍िया. इसको लेकर उन्‍होंने विशेषाधिकार और सौभाग्य की गहरी भावना व्यक्त की. उन्होंने मंदिर की वैश्विक प्रसिद्धि पर प्रकाश डाला और खुलासा किया कि 'कलश' सीधे अयोध्या मंदिर से भेजा गया था. 


22 जनवरी को सूर्य मंदिर में होने वाले आगामी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए लोगों को जागरूक करने और प्रोत्साहित करने के लिए पवित्र 'कलश' को इलाके के हर घर में ले जाया जाएगा. 


सूर्य मंदिर में एक दिवसीय 'पूजा' का आयोजन


अशोक कुमार ने कहा कि अयोध्या मंदिर में बड़े कार्यक्रम वाले शुभ दिन पर एक विशेष 'पूजा' आयोजित करने का निर्देश दिया गया. सूर्य मंदिर में एक दिवसीय 'पूजा' का आयोजन किया भी गया, जहां भक्तों के लिए 'कलश' प्रदर्शित किया गया. आस-पास के क्षेत्रों के हिंदुओं ने एकता और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रदर्शन करते हुए धार्मिक कार्यवाहियों में सक्रिय रूप से भाग लिया. 


भारत के सबसे पुराने सूर्य मंदिरों में से एक मार्तंड मंदिर


8वीं शताब्दी का मार्तंड मंदिर, भारत के सबसे पुराने सूर्य मंदिरों में से एक है. मंदिर के प्रमुख ने इस महत्वपूर्ण आयोजन को लेकर अपनी खुशी व्यक्त की. सभी समुदाय के लोगों को 22 जनवरी को उत्सव में शामिल होने के लिए आमंत्रित भी किया गया, जहां 'दीये' जलाना और विशेष 'पूजा' करना स्मरणोत्सव का केंद्र होगा.  


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